सड़क के किनारे बैठा मैं देख रहा था बरसात की फुहारें लोग भाग रहे थे मानो भीग कर पछता रहे थे रुकने का नाम नहीं था शायद, जल्दी कोई काम वहीँ था …एक व्यक्ति तेजी से दौड़ा, सड़क के उस पार जा रहा था जल्दबाजी में उसकी जेब से पेन गिरी गिरी क्या, सड़क पर मरी! गाड़ियाँ दौड़ती रहीं, पेन पहियों से दबकर उछलती रही मैं देखता रहा बरसात का मजा जाता रहा कितना निर्दयी था वह पथिक छोड़ गया बीच राह उसे कुचल जाने के लिए, दबने के लिए मरने के लिए आह निकली उस निर्जीव के लिए सोचता रहा, बस सोचता रहा… सड़क हादसों में जाने वाले के लिए।