Sunday 26 July 2015

कैसे लें अपनी वर्डप्रेस वेबसाइट का बैकअप, हिंदी में जानकारी - How to take backup of your wordpress website, know in hindi

by on 08:59
वेबसाइट में सबसे महत्वपूर्ण काम इसका बैकअप(File backup) लेते रहना है. इंटरनेट की दुनिया में विभिन्न कारणों से ऐसा करना आवश्यक है, क्योंकि वायरस(Virus), सर्वर का बदलाव(Server shifting), फाइल करप्ट(File corruption) होना जैसे वाकये होते ही रहते हैं और यदि इस स्थिति में आपके पास बैकअप नहीं होता है तो आपका काम कई गुना न सिर्फ बढ़ जाता है, बल्कि कई बार यह शर्मिंदगी और भारी डेटा-लॉस(Data loss) का कारण भी बन जाता है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि वर्डप्रेस एक पॉपुलर सीएमएस(cms) के रूप में सर्वाधिक प्रचलित है. इस लेख में हम इसी प्लेटफॉर्म में बैक अप लेने के विभिन्न उपायों पर चर्चा करेंगे:

मैन्युअल बैकअप(Manual Backup):

  1. यदि आप सीपैनल(cPanel) इस्तेमाल करते हैं तो आप डेटाबेस बैकअप के लिए PhpMyAdmin ओेपन कीजिये और सीधे “Export” टैब को क्लिक कीजिये, फिर मनचाहा कम्प्रेसन फॉर्मेट क्लिक करें और गो दबाते ही फाइल आपके कंप्यूटर में सेव होने लगेगी.
  2. इसके अतिरिक्त, आप सीपैनल में सीधे जाकर, फाइल सेक्शन के अंतर्गत, बैकअप पर क्लिक करें. इस सेक्शन में न केवल डेटाबेस का, बल्कि इसके साथ-साथ पूरी वेबसाइट(Website backup) का या होम डाइरेक्ट्री का या ईमेल फारवर्डर, ईमेल फिल्टर का भी बैकप लिया जा सकता है. इस सेक्शन में आपको यह सब रिस्टोर(Restore) करने का ऑप्शन भी दिखेगा.
  3. इसके आलावा, सीपैनल के फाइल सेक्शन में ही, बैकअप विज़ार्ड नाम से दूसरा ऑप्शन मिलेगा, जहाँ आप सिंगल क्लिक से ही वेबसाइट का पूरा या पार्शियल बैकअप(Partial backup) ले सकते हैं.
  4. फाइल सेक्शन में ही आप 'फाइल मैनेजर'(File manager) को क्लिक करेंगे तो खुलने वाली विंडो में सर्वर पर मौजूद सभी फाइल्स, फोल्डर की लिस्ट आपको दिखने लगेगी. आप यहाँ पर अपनी सुविधानुसार राइट क्लिक करके आसानी से फ़ोल्डर्स को मनचाहे फॉर्मेट में कम्प्रेस कर सकते हैं और फिर उसे डाउनलोड करके अपने कम्प्यूटर की हार्डडिस्क में सेव कर सकते हैं.
इसके अतिरिक्त, यदि आप सीपैनल में कम्फर्टेबल नहीं हैं तो आप वर्डप्रेस एडमिन में निम्नलिखित प्लगइन की सहायता से आसानी से काम चला सकते हैं. इनका इस्तेमाल आसान है और यदि कोई तकलीफ होती है तो इस नाम से यूट्यूब पर वीडियो देखना न भूलिए:
  1. https://wordpress.org/plugins/backwpup/
  2. http://austinmatzko.com/wordpress-plugins/wp-db-backup/
  3. https://wordpress.org/plugins/dropbox-backup/
  4. https://wordpress.org/plugins/backup-wp/




सर्विसिंग (हिंदी लघु कथा)

by on 05:12
साहब! बाइक की सर्विसिंग आप लेट मत कराया कीजिये, इंजिन को नुकसान पहुँचता है, देखिये बहुत कम तेल बचा है और इसका लुब्रिकेशन भी खत्म हो चुका है. हाँ! हाँ! अगली बार जल्दी करा लूंगा, कहकर राहुल ने अपने मुंहलगे मैकेनिक से पल्ला झाड़ लिया. वह अक्सर अपनी बाइक उसी मैकेनिक से ठीक कराया करता था. आदतन, अगली बार भी उसने सर्विसिंग में काफी लेट किया तो उसकी पुरानी बाइक का साइलेंसर धुंआ फेंकने लगा. उसने सोचा कि, अब सर्विस करा लेना चाहिए, लेकिन टालमटोल की आदत से मजबूर था, इसलिए आजकल पर टालता ही रहा. एक दिन वह सुबह-सुबह किसी से मिलने तेजी से जा रहा था कि उसकी गाडी चलते-चलते बंद हो गयी अचानक! उसने सोचा कि पेट्रोल खत्म हुआ होगा, इसलिए 'रिजर्व' में लगा कर किक मारने की फिर कोशिश की, लेकिन यह क्या! किक तो हिल भी नहीं रही थी.... उसने फिर ज़ोर लगाया, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही रहे! सुबह का समय था और आस पास किसी मैकेनिक की दुकान भी नहीं खुली थी. पूछते-पूछते आधे किलोमीटर दूर किसी मेकेनिक की दुकान तक बाइक को धक्के लगाता हुआ पहुंचा. दो घंटे के इन्तेजार के बाद मैकेनिक ने दुकान खोली तो राहुल ने चैन की सांस ली. हालाँकि, उसका चैन तब बेचैनी में बदल गया जब मैकेनिक ने बताया कि आपका इंजिन 'सीज़' हो गया है क्योंकि इसमें इंजिन-आयल खत्म हो चुका था. खर्चा कितना लगेगा, राहुल के मुंह से पहला शब्द निकला!
यही करीब, चार हजार से पैंतालीस सौ के आस पास पड़ जायेगा.
क्या? सहसा राहुल को विश्वास ही नहीं हुआ, तीन सौ के इंजिन ऑयल के बदले इतना ज्यादा खर्चा!
कुछ कम में जुगाड़ कर दो भाई, उसने रिक्वेस्ट की !
इसमें कोई जुगाड़ नहीं हो सकता, पूरा इंजिन खोलना पड़ेगा और पूरा दिन लग जायेगा साब!
राहुल को फिर भी विश्वास नहीं हुआ, उसने सोचा कि सुबह का समय पाकर यह मैकेनिक उसे ठग रहा है. तब तक दिन चढ़ चुका था और गर्मी की धूप अपनी चढ़ान पर थी. चूँकि, मोटे खर्चे की बात थी, इसलिए पूछते पूछते वह पास की मार्किट में अपनी बाइक को धक्के लगाता हुआ पहुंचा. एक मैकेनिक की दूकान पर उसने बाइक खड़ी कर दी. मैकेनिक ने पहले किक चेक किया, फिर तेल की टंकी उतारी, फिर इंजिन खोलना शुरू किया और उसने भी वही सारी बात कही, जिसका डर था. इंजिन जाम हो चुका था. पिस्टन, गरारियां, गराद और न जाने किन किन शब्दों से उसका परिचय एक के बाद एक से होता जा रहा था, साथ में मैकेनिक उसको यह भी याद दिलाता जा रहा था कि यदि उसने टाइम पर सर्विसिंग करा ली होती तो आज यह स्थिति न आती. घड़ी की सुइयां खिसकती जा रही थीं और ऑटोमोबाइल दूकान पर खड़ा राहुल सोच रहा था कि बाइक की 'सर्विसिंग' कराने में देरी ने उसे अच्छा सबक दिया आज! उसकी सोच का दायरा बाइक से हटकर, कार - सर्विसिंगbike, car, servicing, mechanic, lifestyle, service, views, vichar, mithilesh2020, laghukatha, short stories, hindi kahani और फिर 'जीवन की सर्विसिंग' पर घूमने लगीं. कार तक तो बात ठीक थी, किन्तु 'मानव जीवन की सर्विसिंग' पर वह कन्फ्यूज हो गया कि सच में ऐसी कोई सर्विसिंग होती है क्या? यदि हाँ! तो उसमें लापरवाही की सजा कितनी बड़ी होगी ... ??
इन विचारों से वह जब तक बाहर निकलता तब तक शाम के चार बज चुके थे और मैकेनिक उसे फिर समझा रहा था कि इंजिन खुलने के बाद बाइक को 500 किलोमीटर चलाते ही सर्विसिंग जरूर करा लीजियेगा, उसके बाद रेगुलर,यानि...
यानि 1500 किलोमीटर पर ही सर्विसिंग जरूरी है, मैकेनिक की बात राहुल ने पूरी कर दी और मुस्कुरा उठा!
घर आते समय उसके मन में कई शब्द और विचार गड्डमगड्ड हो रहे थे, लेकिन एक बात साफ़ थी कि बाइक की सर्विसिंग टाइम से जरूर करायेगा, नहीं तो इंजिन 'सीज़' हो जायेगा!
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
bike, car, servicing, mechanic, lifestyle, service, views, vichar, mithilesh2020, laghukatha, short stories, hindi kahani

Hindi short story by mithilesh, based on servicing, bike and human life

Friday 3 July 2015

माननीयों की 'विशिष्टता' एवं सेलरी का अंकगणित

by on 10:04
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ दिनों से 'घरेलु गैस' के ऊपर सब्सिडी छोड़ने की ज़ोरदार अपील कर रहे हैं. देश के विकास के लिए चिंतित हमारे पीएम इस अपील को कई कई बार दोहरा चुके हैं. हालाँकि, देश की संसद के सदस्य और खुद भाजपा से जुड़े नेता भी इस अपील पर कितना ध्यान दे रहे हैं, यह देखने वाली बात है. सब्सिडी छोड़ने की बात आयी तो, प्रत्येक मुद्दे की तरह सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा होनी स्वाभाविक ही थी. बात होते - होते किसी ने संसद के कैंटीन में मिल रही जबरदस्त सरकारी सब्सिडी (80 फीसदी से भी ज्यादा) पर चर्चा छेड़ दी, यह मुद्दा भी गरम हो गया और लोग प्रधानमंत्री से संसद-कैंटीन को दी जा रही सब्सिडी रद्द करने की मांग करने लगे. इस से सम्बंधित समिति के एक सांसद ने तो कह दिया कि 'सांसदों' के पेट पर लात नहीं मारने दिया जायेगा, जबकि हमारे समझदार प्रधानमंत्री ने अब चुप रहना सीख ही लिया है, इसलिए उन्होंने दोबारा सब्सिडी के मुद्दे पर अपना मुंह नहीं खोला. खैर, यह तो एक बात थी, लेकिन दूसरी मुख्य बात यह है कि गोरखपुर से भाजपा-सांसद योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली एक समिति ने सांसदों के वेतन और पूर्व सांसदों की पेंशन में भारी बढ़ोतरी की सिफारिश कर दी. अब लोगों के जले पर नमक तो पड़ना ही था, क्योंकि लगभग हर तरह की सुख - सुविधा और पावर के साथ चलने वाले लोग भी सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ डालने को तत्पर रहेंगे तो देश में बाकी भूखों का क्या होगा? अभी हाल ही में आयी एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट में साफ़ कहा गया था कि भारत में 20 करोड़ से ज्यादे लोग आज भी भूखे सोने को मजबूर हैं. पंद्रह जून से सैनिक जंतर मंतर पर वेतन और पेंशन के लिए भूख हड़ताल कर रहे हैं लेकिन हमारे सांसद कितनी सहजता से अपनी सुख सुविधा और वेतनमान बढ़ाने का प्रस्ताव भेज देते हैं, यह अपने आप में आश्चर्य उत्त्पन्न करने वाला प्रश्न है. एक राष्ट्रीय अख़बार में ख़बर छपी कि संसदीय कमिटी ने सांसदों की तनख्वाह डबल करने का सुझाव दिया है. एक संसद सदस्य के ऊपर सामान्य रूप से कितना खर्च होता है, इसकी रूपरेखा कुछ यूं होती है, लोकसभा की वेबसाइट से एक सांसद की मार्च 2015 की सैलरी का हिसाब निकाला, तो  कुछ ऐसी तस्वीर बानी: मार्च 2015 में उन 'माननीय' को कुल 3 लाख 8 हज़ार 666 रुपये मिले थे, जिसमें बेसिक - 50,000, संसदीय क्षेत्र भत्ता - 45000, आफिस का खर्चा - 15000, सहायक की सैलरी - 30000, यात्रा और दैनिक भत्ता - 1,68,666. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि दुसरे क्षेत्रों से तुलना करने पर इनका वेतनमान पहले ही कितना अधिक है. कमेटी ने सुझाव दिया है कि बेसिक को 50,000 से बढ़ाकर 1 लाख कर दिया जाए. पूर्व सांसद के पेंशन को 20,000 से बढ़ाकर 35,000 कर दिया जाए. सहायक को भी सांसद के साथ रेल में प्रथम श्रेणी एसी का फ्री टिकट मिले. पूर्व सांसद को भी एक साल में हवाई यात्रा के लिए 20-25 टिकट फ्री मिले. सवाल यह है कि सिर्फ सांसदों को ही सरकारी दामाद क्यों बनाया जाय? क्या वास्तव में लोकतान्त्रिक प्रणाली में वह किसी नागरिक से ज्यादा सुविधाओं के हकदार हैं? हालाँकि, इसके पीछे उनके ऊपर तमाम जिम्मेवारियों का लेखा - जोखा दिखाकर सेलरी की बात को जस्टिफाई करने की कोशिश की जा सकती है. लेकिन, यहाँ बताया जाना चाहिए कि देश में किस नागरिक या कर्मचारी के ऊपर जिम्मेवारियों का बोझ नहीं है. आखिर, दुसरे सार्वजानिक क्षेत्रों से अलग व्यवस्था माननीयों के लिए क्यों रहना चाहिए? इसके सन्दर्भ में यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि एक बार सांसद या विधायक चुने जाने के बाद कई माननीय बंगला और दूसरी सरकारी सुविधाओं पर ताउम्र जमे रहते हैं, जिसके कई उदाहरण आपको आसानी से मिल जायेंगे. और सिर्फ माननीय ही क्यों, बल्कि उनके परिवार के साथ उनके चाहने वालों को भी वगैर नियम कानून के लाभ पहुँचाया जाता रहा है. समस्या यह है कि सरकारी कार्यों के अतिरिक्त, अनेक व्यक्तिगत कार्यों का बोझ भी ये माननीय सरकारी ख़ज़ाने पर डालना अपना संवैधानिक अधिकार क्यों समझते हैं. कई बार तो सिर्फ अपने महिमा - मंडन के लिए नेतागण कुख्यात हो जाते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री ने हाल ही में अपने बजट में कई गुणा बढ़ोतरी की है, जिसे लेकर उनकी आलोचना हो रही है. इसी महिमा-मंडन के सन्दर्भ में उच्चतम न्यायालय का फैसला भी आया है, लेकिन उसकी मनमानी व्याख्या करके धज्जियां उड़ाने में कई मंत्री, मुख्यमंत्री कई कदम आगे हैं. इससे आगे बढ़कर कहा जाय तो अपने कई पिछले चुनावों का खर्च भी 'माननीय' 5 साल के दौरान ही वसूल लेना चाहते हैं. यह एक तथ्य है कि चुनाव सुधार के वगैर इस व्यवस्था में तमाम विकृतियां बनी ही रहेंगी, क्योंकि चुनावों में करोड़ों करोड़ रूपये एक माननीय के द्वारा खर्च किये जाते हैं और इसके मद में जीता हुआ कैंडिडेट अपनी बाकी उम्र और परिवार के लिए सुविधाओं की गारंटी दिमाग में बिठाकर चलता है. आखिर सरकारी अधिकारियों, आईएएस या सेना के ऑफिसर्स से ज्यादा वेतनमान और सुविधाएं किसी सांसद या विधायक को क्यों होनी चाहिए? और किसी नेता द्वारा चुनाव में जबरदस्त खर्च क्यों किया जाता है? जब तक इन प्रश्नों का हल नहीं ढूंढ लिया जाता है, तब तक इस तरह के प्रस्ताव आते ही रहेंगे और हमारे 'माननीय' करदाताओं के पैसे को कभी घोटालों के माध्यम से तो कभी बेतहाशा सब्सिडी के माध्यम से अपनी जेब में भरते ही रहेंगे. यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि किसी नेता का विदेशी टूर और दुसरे ऑफिसियल खर्चे पहले ही सरकार द्वारा वहां किये जाते हैं. अब कोई सांसद अपनी ससुराल पूरे लाव-लश्कर सहित जाय, या फिर कोई विधायक किसी शादी समारोह में जाए तो इन खर्चों को सरकारी कैसे माना जा सकता है? इन बातों की चर्चा होते समय एक अख़बार के संपादक महोदय ने मुझसे कहा कि सांसदों को बहुत लोगों से मिलना - जुलना होता है, इसलिए उनके वेतनमान में बढ़ोतरी का प्रस्ताव ठीक हो सकता है. उनकी बातों में सांसदों के प्रति 'विशिष्टता' को बोध देखकर मुझे गहरी पीड़ा हुई. लेकिन, यह एक सच्चाई और बिडम्बना है कि हमारे देश में 'नेता-वर्ग' को विशिष्ट भाव से देखा जाता है और 'माननीय' खुद भी स्वयं को विशिष्ट समझ कर राजनीति करते हैं, जबकि अमेरिका इत्यादि देशों में आपको यदि कोई सीनेटर अपनी गाड़ी साफ़ करता मिल जाए तो आश्चर्य नहीं होगा. समस्या इनको भी 'आम' बनाने की है, मगर 'आम' बनाये कौन? क्योंकि यह कार्य बिल्ली के गले में घंटी बांधने से भी ज्यादे कठिन लगता है, तभी तो आज तक संभव नहीं हो पाया है.


leaders, neta, mp, mla, special, increment of salary, citizens, ias officers, army officers

hindi article on increment for salary of our member of parliament, mithilesh2020

Thursday 2 July 2015

भारत में सोशल मीडिया, मतलब क्या ?

by on 06:45
आज के समय में सोशल मीडिया के इस्तेमाल न सिर्फ स्टेटस सिम्बल के लिए, बल्कि एक जरूरत के रूप में आकार ले चूका है. इस बात में कोई शक नहीं है कि इंटरनेट क्रांति के दौर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के रूप में दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा मिला है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सप्प, पिंटरेस्ट, टंब्लर, गूगल प्लस और ऐसे ही अनेक प्लेटफॉर्म पूरे विश्व को एक सूत्र में पिरोने की ताकत रखते हैं. यह बात कोई हवा हवाई नहीं है, बल्कि इन प्लेटफॉर्म्स ने विभिन्न अवसरों पर अपने महत्त्व को साबित भी किया है. चाहे देशी चुनाव हो अथवा विदेशी धरती पर कोई आंदोलन हो या फिर पर्सनल ब्रांडिंग ही क्यों न हो, आज लाइक्स, फालोवर्स, शेयर जैसे शब्द हर एक जुबान पर छाये हुए हैं. एक स्टडी के अनुसार 2014 में भारत के लोकसभा चुनाव में लगभग 150 सीटों पर सोशल मीडिया ने जीत में अपनी भूमिका निभाई थी, वहीं दिल्ली राज्य के बहुचर्चित चुनाव में अरविन्द केजरीवाल द्वारा नवगठित पार्टी ने अपना 80 फीसदी कैम्पेन सोशल मीडिया के माध्यम से ही किया, और परिणाम पूरी दुनिया ने देखा. इसके अतिरिक्त मिश्र देश में हुए आंदोलन में सोशल मीडिया की भूमिका हम सब जानते ही हैं और व्यक्तिगत ब्रांडिंग के लिए भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल नेताओं, खिलाडियों, अभिनेताओं द्वारा धड़ल्ले से किया जा रहा है. थोड़ा और आगे बढ़ा जाय, तो बड़े नेताओं के साथ छुटभैये नेता भी फेसबुक, ट्विटर प्रबंधन और मेलिंग के लिए आईटी- प्रोफेशनल्स से संपर्क साध रहे हैं, या फिर अपने किसी रिश्तेदार, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हो, या जॉब कर रहा हो, उससे इस सम्बन्ध में सहायता ले रहे हैं. आप चाहे गाँव में ही क्यों न हों, आपको तमाम नवयुवक अपने फेसबुक और जुड़े मित्रों से सम्बंधित गतिविधियाँ शेयर करते नजर आएंगे. पर इन सकारात्मक दृश्यों के पीछे एक कड़वी परत भी दिखती है, जिसमें सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है. मुज़फ्फरनगर में पिछले दिनों हुए दंगों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खबरें बड़ी तेजी से फैली थीं, तो जम्मू कश्मीर में भी आये दिन इस तरह की खबरें देखने को मिलती ही रहती हैं. इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों में नफरत भरे संदेशों को सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाया जा रहा है, कई बार इरादतन और संगठित रूप में तो कई बार बहकावे में युवक - युवतियां ऐसे कदम उठा देते हैं, जो उनकी गिरफ़्तारी तक जा पहुँच जाता है. हालाँकि, इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जिसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी गयी है, उससे इन माध्यमों का गलत इस्तेमाल करने वालों द्वारा फायदा उठाने की सम्भावना भी बढ़ सकती है. अभी हाल ही में कविता कृष्णन और बॉलीवुड के आदर्शवादी 'बाबूजी' कहे जाने वाले सीनियर अभिनेता आलोक नाथ के बीच ट्विटर पर गाली - गलौच किये जाने का शो हावी रहा, जिसको लेकर सोशल मीडिया यूजर्स ने ज़ोरदार, मगर नकारात्मक सक्रियता दिखाई. इसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना वह दर्द नहीं छुपा पाये, जिसे उन्होंने एक लम्बे समय तक झेला है. एक खबर के अनुसार पीएम ने सोशल मीडिया पर सक्रिय अपने 100 समर्थकों से बातचीत के दौरान कहा, 'सोशल मीडिया पर मुझे जिन भद्दे और गाली जैसे शब्दों का सामना करना पड़ा है, यदि उनके प्रिंट निकाले जाएं तो पूरा ताजमहल ढंक जाएगा.' इसके बावजूद पीएम मोदी ने आलोचनाओं को शालीनता से सुनते हुए अपने समर्थकों से परिपक्व बर्ताव करने की नसीहत दी, जिसे सराहा ही जाना चाहिए. वैसे, मजाक में कहा जा सकता है कि शायद सोशल मीडिया पर गाली - गलौच झेलने के बाद ही नरेंद्र मोदी इसके प्रति सीरियस हुए होंगे और तभी उनको इसकी मजबूती का अहसास भी हो गया होगा. वो कहते हैं न कि अपने ऊपर फेंके हुए पत्थरों से जो घर बना ले, असली विजेता वही है. नरेंद्र मोदी के मामले में यह बात चरितार्थ होती दिखी है. वैसे, यह एक बात है लेकिन प्रधानमंत्री की दूसरी बात पर गौर करना भी उतना ही आवश्यक है, जिसमें पीएम ने कहा है कि उनके समर्थक सकारात्मक सोच रखें, क्योंकि गलत भाषा का इस्तेमाल सोशल मीडिया जैसे रोमांचक माध्यम के लिए खतरा हो सकती है. यह बात दूरदर्शी होने के साथ साथ उतनी ही तथ्यात्मक भी है, क्योंकि गाली-गलौच होने से आम जनमानस की रुचि धीरे-धीरे कम होने लगती है और अंततः समाप्तप्राय हो जाती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री की अपील का असर न सिर्फ उनके समर्थकों, बल्कि विरोधियों और ट्विटर इत्यादि को विवादित स्थल बनाने का प्रयास करने वाले सेलेब्स पर भी पड़ेगा. शायद इससे सोशल मीडिया का असली उद्देश्य समझने में सहायता मिलेगी और उसके सही प्रयोग की दिशा में हम एक कदम बढ़ा सकने में सफल होंगे. आखिर, सोशल मीडिया को विवादित बनाने में आम आदमी ही नहीं, बल्कि सेलेब्स भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. आपको गायक अभिजीत भट्टाचार्य का वह विवादित ट्वीट तो याद ही होगा, जिसमें उन्होंने गरीब आदमी को 'कुत्ता' कहते हुए ट्विटर पर लिखा कि 'कुत्ता सड़क पर सोयेगा तो मरेगा ही, सड़क गरीब के बाप की नहीं है.' वह बिचारे सलमान खान की चापलूसी या समर्थन कर रहे थे, लेकिन ट्विटर को खामख्वाह बदनाम कर गए. इसके अतिरिक्त आजकल देश से फरार, पूर्व क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के ट्वीट्स ने देश की राजनीति में उथल-पुथल मचा रखी है. कहने का तात्पर्य यह है कि हम आज भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल विवाद फ़ैलाने में या अपनी कुंठित सोच को जाहिर करने में करते हैं, मगर हमें उन लोगों से प्रेरणा लेने में जाने क्यों संकोच हो जाता है, जो बेहतरीन नेटवर्किंग और ब्रांडिंग में इन प्लेटफॉर्म्स का बेहतरीन उपयोग करते नजर आते हैं. अपने देश में खुद प्रधानमंत्री इसके बेहतरीन उदाहरण हैं, जो अपने प्रत्येक मंतव्य को इंटरैक्टिव ढंग से लोगों के बीच ज़ोरदार ढंग से पहुँचाने की कोशिश करते हैं. दुसरे उदाहरणों के रूप में हम पर्सनल स्टाइल ब्लॉगर डैनियला बर्नस्टेन का नाम ले सकते हैं, जिन्हें एक इंस्टाग्राम पोस्ट के लिए करीब 10 लाख रुपये तक मिलते हैं. उन्हें यह पैसा वे ब्रैंड्स देते हैं जो चाहते हैं कि उनके प्रॉडक्ट्स को वे 9,92,000 लोग फॉलो करें जो ऐप पर बर्नस्टेन को फॉलो करते हैं. समझा जा सकता है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल इस युवा लड़की ने किस प्रकार किया है. विदेशी उदाहरणों की ओर थोड़ा और बारीक दृष्टि से देखें तो एक - एक पेज की वेबसाइट बना बनाकर छोटे व्यापारी भी अपने प्रोडक्ट को वर्ल्डवाइड फैला देता हैं, जो संभव होता है सोशल मीडिया के माध्यम से. ब्लॉग, तस्वीर, पोस्ट, ट्वीट इत्यादि शब्दावलियाँ कितनी ताकतवर हो सकती हैं, हम इन उदाहरणों से समझ सकते हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक और ट्विटर पर गाली-गलौच करने वाले हमारे देश के युवा क्या बेहतरीन ब्लॉगर बनकर सूचना के संसार में अपनी जगह नहीं बना सकते हैं? इन माध्यमों पर बौद्धिक विलास करने वाले बुद्धिजीवियों से पूछा जाना चाहिए कि वह खुद इस माध्यम पर मात्र पार्टीबाजी ही करते हैं अथवा युथ के लिए कुछ इंस्पिरेशन छोड़ने में सक्षम हो पाते हैं. समस्या सोच बदलने की है, जिससे सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म्स हमारे लिए वाकई बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं. जरूरत है इसकी उपयोगिता समझने की और इसको अपने जीवन में उपयोगी तरीके से ढालने की और इसके लिए नकारात्मकता हमें छोड़नी ही होगी, क्योंकि इसके सिवा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है.




Social Media use in India, hindi article on misuse of twitter, facebook by mithilesh2020

facebook, twitter, tumblr, technical article, hindi lekh, mithilesh2020, modi, online branding, slaze, gaali galauch, celebs conspiration, arvind kejriwal, importance of social media, website, foreign users of fb, twitter

Wednesday 1 July 2015

आईटी 'यूथ' के लिए डिजिटल इण्डिया में क्या ?

by on 08:04
नौ-सूत्रीय अजेंडे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  ने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना डिजिटल-इंडिया को लांच कर दिया है. इस प्रोग्राम में मुख्य रूप से ब्रॉडबैंड हाइवेज, यूनिवर्सल एक्सेस तो फोन्स, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम, ई-गवर्नेंस, ई-क्रांति, सभी के लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, आईटी फॉर जॉब्स और अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम की चर्चा की गयी है. हालाँकि, तमाम शोर-शराबे के बावजूद इस 'डिजिटल इण्डिया' प्रोग्राम से आईटी यूथ कितना प्रभावित होगा, यह कहना मुश्किल है. एक बड़े प्रोग्राम में, तमाम सीनियर मंत्रियों और ब्यूरोक्रेट्स के साथ शीर्ष उद्योगपतियों की उपस्थिति में नरेंद्र मोदी ने इस प्रोग्राम को धूम - धड़ाके से लांच किया और यह उनके प्रबंधन का ही कमाल है कि देश के अनेक उद्योगपतियों ने भी इस प्रोग्राम में बड़े निवेश की घोषणा भी तत्काल कर दी. रिलायंस इंडस्‍ट्रीज डिजिटल इंडिया में 2,50,000 करोड़ का निवेश करेगी, तो आदित्य बिड़ला ग्रुप अगले पांच साल में 7 बिलियन डॉलर का निवेश करेंगे. टाटा सहित दुसरे ग्रुपों ने भी डिजिटल इंडिया में अपने योगदान को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री की जमकर तारीफ़ की. इस कड़ी में प्रधानमंत्री की इस बात के लिए तारीफ़ करनी होगी कि वह पुराने सामानों को बेहतरीन पैकिंग के साथ जोश-खरोश के साथ पेश करते हैं, जो सहयोगियों में नए उत्साह उत्पन्न करने में काफी हद तक सहायक होता है, लेकिन एक साल तैयारी करने के बाद इस प्रोग्राम में और भी बहुत कुछ शामिल किया जा सकता था. डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के कई भाग, मसलन देश को ब्रॉडबैंड से जोड़ना, मोबाइल फोन्स पर इंटरनेट की उपलब्धता, सभी के लिए सूचना इत्यादि पहले ही चल रहे हैं. यदि कुछ नए सिरे से जोड़ने की कोशिश की गयी है तो वह है गाँवों को भी ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़ने की घोषणा, जिसे 'ब्रॉडबैंड हाइवेज' नाम के जुमले से सम्बोधित किया गया है. हालाँकि, यह लक्ष्य कैसे पूरा होगा, इसकी चर्चा नहीं की गयी है. ऐसे में जिन गांवों में रोजगार नहीं हैं, कृषि छोड़कर लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं, ऐसे में यह लक्ष्य हवा - हवाई ज्यादा दिखता है. इसके अतिरिक्त घर-घर इंटरनेट पहुँचाने में सबसे बड़ी बाधा नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क का प्रोग्राम है, जो निर्धारित समय से तीन-चार साल पीछे चल रहा है. सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव तार बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो पिछले 50 साल से कुछ और बिछा रहे हैं. आपको वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क के महत्त्व को समझते हैं और प्रतिबद्धता से अपने काम को पूरा करने की जिम्मेवारी उठाने का माद्दा रखते हैं. वैसे, शहरों में ई- गवर्नेंस को मजबूत करने के लिए मोदी सरकार ने कुछ कदम जरूर उठाये हैं और पब्लिक से इंटरेक्शन करने हेतु कुछ बेहतरीन वेबसाइट का निर्माण भी कराया है, जिनमें मायजीओवी.इन और डिजिटललॉकर जैसी सुविधाएं उल्लेखनीय हैं. इसमें मायजीओवी जहाँ यूथ को सरकारी प्रोग्राम्स के बारे में जानकारी देने और सुझाव लेने का बेहतरीन प्लेटफॉर्म बनता जा रहा है, वहीं डिजिटल लॉकर भी आने वाले समय में बेहद उपयोगी साबित हो सकता है. हालाँकि, इस तरह के प्राइवेट प्रोग्राम्स जैसे ड्रॉपबॉक्स, गूगल ड्राइव इत्यादि उपलब्ध हैं, किन्तु सरकारी वेबसाइट 'डिजिटल लॉकर' अपनी विश्वसनीयता के साथ-साथ आधार-कार्ड से लिंक की वजह से और दुसरे सरकारी विभागों से होने वाले सिंक्रोनाइजेशन के लिहाज से सर्वोत्तम विकल्प साबित हो सकती है. नयी बन रही वेबसाइट के लिए मोदी सरकार की इसलिए भी तारीफ़ करनी होगी कि वह पुरानी, थकी हुई सरकारी वेबसाइटों की तुलना में हज़ार गुना बेहतर और इंटरैक्टिव है, जो किसी निजी कंपनी से मुकाबला करती नजर आती है. सूचना के स्तर पर खुद प्रधानमंत्री का ऑफिस बेहद इंटरैक्टिव हो गया है और जनता से सीधे जुड़ने की कोशिश करता नजर आता है. इस प्रोग्राम की अगली कड़ी 'इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन' का लक्ष्य भी कुछ कम कठिन नहीं है. देश में अधिकतर विदेशी कंपनियों ने इस क्षेत्र में लगभग कब्ज़ा कर रक्खा है, चाहे मोबाइल हो, कम्प्यूटर हो या चिप-निर्माण ही क्यों न हो, भारत का स्थान इसमें कहीं नहीं दिखता है. कुछेक कंपनियां अपने देश में भी सक्रीय जरूर हैं, लेकिन वह असेम्ब्लिंग का काम ही ज्यादा करती हैं, बजाय कुछ ओरिजिनल पेश करने के अथवा विदेश में बनने वाले प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग और सर्विस भर करके संतुष्ट हो लेती हैं. इस प्रोग्राम की अगली कड़ी 'आईटी फॉर जॉब्स' का महत्त्व जरूर गिनाया जा रहा है, लेकिन सरकार इस क्षेत्र को समझ भी पायी है, इसमें संदेह दिखता है. आईटी में अब तक अपने देश ने बेहतर प्रगति की है, इसलिए गली कूचे से लेकर बड़े शहरों तक कम्प्यूटर-शिक्षा के साथ छोटे-छोटे रोजगार के बृहद अवसर उभरे हैं. मसलन डेटा-इंट्री जॉब्स, सोशल मीडिया एनालिसिस, डिज़ाइन एंड डेवलपमेंट जॉब्स इत्यादि महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभरे हैं. बिना किसी बड़ी कम्पनी की सहायता के भी भारतीय युवा बेहतर तरीके से वैश्विक बाजारों में 'फ्रीलांसर' के रूप में अपना मजबूत दखल रखते हैं. लघु उद्योग के इस स्वरुप को समझकर संरक्षित करने की आवश्यकता थी, जो बिलकुल नहीं किया गया. इस क्षेत्र को थोड़ा और स्पष्ट किया जाय तो बड़ी कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति से आप इसे समझ सकते हैं. गूगल 'एडसेंस' के माध्यम से तो अमेजन, फ्लिपकार्ट और दूसरी बड़ी कंपनियां अफिलिएट प्रोग्राम के माध्यम से 'फ्रीलांसर्स' तक सीधी पहुँच बना कर अपने वैश्विक कारोबार में बढ़ोतरी कर रही हैं. ऐसे में डिजिटल इण्डिया के सपने में, भारत सरकार द्वारा यह हिस्सा छूट गया लगता है. हालाँकि, मोदी सरकार की इस बात के लिए सराहना करनी चाहिए कि देश में पहली बार सूचना प्रोद्योगिकी को लेकर एकीकृत प्रयास करने की कोशिश हुई है, जो निश्चित रूप से भविष्य के लिए फलदायी साबित होगा. पर क्या यह बेहतर नहीं होता कि विदेशों से धन लाने वाले फ्रीलांसर्स को भी सहूलियतें दी जातीं. अपने निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि बाहर से आने वाले फ्रीलांसर्स के पैसे पर 'बैंकिंग रवैया' बिलकुल ठीक नहीं है. पिछले दिनों गूगल एडसेंस की 100 - 100 डॉलर की पेमेंट मैंने दो बैंकों में मंगाई, जिसमें एक बड़ा प्राइवेट बैंक था तो एक सरकारी बैंक, पर दुर्भाग्य के साथ बताना पड़ रहा है कि दोनों ने एक बड़ा अमाउंट कमीशन के रूप में अपने आप काट लिया, जिसे मेरी पास-बुक में भी नहीं चढ़ाया गया. इसके अतिरिक्त, दिल्ली जैसे शहर में भी पैसे अकाउंट में आने में लगभग सप्ताह भर का समय लग गया. डिजिटल इण्डिया में बड़ा योगदान करने वाले आईटी यूथ की इसी तरह की दूसरी व्यवहारिक समस्याएं भी हैं, मसलन यदि किसी फ्रीलांसर की पेमेंट कहीं फंसती है (जो कि होता ही रहता है), तो वह बेचारा मन मसोसकर रह जाता है. जरूरत इस इंडस्ट्री को पहचान देने की है, जिससे फ्रीलांसर्स अपने भविष्य को सुरक्षित महसूस कर सकें और मुख्य धारा में अपने योगदान को पहचान सकें. सिर्फ विदेशी काम ही क्यों, बल्कि देश में भी डेटा-एनालिसिस इत्यादि के कामों का बड़े स्तर पर ठेका किसी विदेशी कंपनी को देकर छुटकारा पा लिया जाता है. क्या वाकई, इससे देश का सशक्तिकरण होता है? क्या ऐसे प्रोग्राम्स में आईटी यूथ को शार्ट-टर्म के लिए हायर किया जा सकता है, जिन्हें जरूरत पड़ने पर ट्रेनिंग देकर सशक्त बनाया जा सके. इन सभी बातों पर ध्यान देने से अभी काफी कुछ गुंजाइश नजर आती है, लेकिन हिंदी कहावत 'नहीं मामा से काना मामा अच्छा' के हिसाब से देखें तो 'डिजिटल इण्डिया' शुरुआती स्तर पर एक महत्वपूर्ण प्रोग्राम है, जिसकी जरूरत वाकई इंडिया को थी और इसके साथ यह भी सच है कि प्रत्येक प्रोग्राम की तरह आने वाले समय में इसमें सुधार की गुंजाइश भी बनी रहेगी.



modi, digital india program, it youth, free lancers, mygov.in, digital locker, broadband highways, internet access to all, it for jobs, hindi technical article, takniki blog, affiliate program, mithilesh2020

Digital India and IT Youth Expectations, hindi article by mithilesh2020

Labels

Tags