अवचेतन मन
by
मिथिलेश - Mithilesh
on
09:42

शहर के एक क्षेत्र में 'देशी प्याज' बेचने बिल्कुल सुबह-सुबह दो बन्दे आ धमकते थे. देशी प्याज के फायदे, उसके गुणों का बखान करता हुआ उनके ट्रैक्टर पर तेज आवाज में लॉउडस्पीकर बजता था और चूँकि वह बाजार भाव से 10 रूपये तक कम लगाता था तो ट्रैक्टर पर भीड़ लगी रहती थी. श्रीमतीजी की कई दिन की लगातार टोकाटाकी के बाद, अपनी नींद में खलल डालकर मैं भी पांच किलो एक साथ ले आता था, हालाँकि वह रोज या एक दिन छोड़कर आ ही जाता था, मगर रोज अपनी सुबह की प्यारी नींद कौन ख़राब करे? इधर कब प्याज की कीमत आसमान छूने लगी, मगर मेरे अवचेतन मन में वह देशी प्याज वाला ही बना हुआ था, जिसका अहसास मुझे तब हुआ जब एक एनजीओ के मित्र ने मुलाकात में मुझसे कहा, यार! प्याज का रेट आसमान छू रहा है. मेरे मुंह से तत्काल मेरे मोहल्ले के देसी प्याज वाली बात निकल गयी कि मेरे यहाँ तो 100 रूपये की पांच किलो है. बस मित्र महोदय ने तत्काल 100 का नोट हाथ में पकड़ाते हुए बनावटी कातर स्वर में बोले, यार 5 किलो मेरे लिए लेते आना और मैंने अवचेतन मन के प्रभाव में वह नोट पकड़ भी लिया. बस फिर क्या था, तभी से न उनके दफ्तर जा रहा हूँ और दुआ कर रहा हूँ कि कहीं किसी जगह उनसे सामना न हो जाय...
अवचेतन मन ने धोखा जो दे दिया था.