Monday 21 December 2015

पुरुषार्थ उद्यम के सहारे 'यज्ञ' कर - Purusharth, udyam ke sahare yagya kar

चादर तान कर किसको
सोना अच्छा नहीं लगता
अधखुली आँख से तब और
सपने बेहतर से दिखते हैं

आह! मगर ज़िन्दगी के थपेड़े
जगाते हैं, झिंझोड़कर अचानक
टूटते हैं तब 'दिवा-स्वप्न' बरबस
और मजबूर होते हैं सब, क्योंकि

वह खोजते रहे पल ख़ुशी के
पिछली दुनिया की लड़ियों में
जोड़ते रहे ख्वाब को कड़ियों में
ख्वाब की ही तरह फिसले यूं पल

आओ जलाएं दीप हम अब अभी
दिख जाये रौशन राह उनको कभी
करो बात और ना 'अनभिज्ञ' बन
पुरुषार्थ उद्यम के सहारे 'यज्ञ' कर

Purusharth, udyam ke sahare yagya kar, 
past, present, future, bhoot, vartmaan, bhavishya, reality, do real, face to face

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