सुबह जागने और साधारण सीख के अध्यायों से लेकर, तितली, रेल, चिड़ियाघर की सरल जानकारी और पेड़, उपवन के फूल, देश हमारा, मैया मैं भी कृष्ण बनूँगा आदि कविताओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति को बड़े सटीक और सहज स्वरुप में प्रस्तुत करने का श्रेय ठकुरेला जी को जाता है. एक और बात जो मुझे इस किताब में अच्छी लगी, वह इसका आकार है. कुल ३२ पृष्ठों में इस किताब को समेटकर आपने निश्चित रूप से 'गागर में सागर' भरने का प्रयास किया है. बाज़ार में या ऑनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध साहित्यों की बात करें या टेलीविजन पर आने वाले बाल-धारावाहिकों की तरफ दृष्टिपात करें, उसकी भाषा, बच्चों पर उसके द्विअर्थी वाक्यों का असर सही प्रकार से नहीं पड़ता है. ऐसी स्थिति में यह किताब बच्चों के लिए सही कंटेंट न होने की निराशा को कुछ हद तक ही सही, दूर करती है. मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि ठकुरेला जी इस प्रकार की असरकारी रचनाओं से समाज को लाभ पहुंचते रहेंगे. इसके साथ सरकार में उच्च पदों पर बैठे शिक्षण के कर्ताधर्ताओं का ध्यान इस पुस्तक की तरफ आकृष्ट करना चाहूंगा कि इस तरह की पुस्तकों को पाठ्यक्रम में शामिल करना हर प्रकार से, सभी के लिए हितकर साबित होगा. हमारे समाज में नैतिकता का बहुत ऊँचा मानदंड स्थापित रहा है. वर्तमान में जो कुछ गिरावट आयी है, उसे "नया सवेरा" जैसे साहित्य और 'त्रिलोक सिंह ठकुरेला' जैसे साहित्यकारों द्वारा नयी दिशा मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है.

शुभकामनाओं सहित -
- मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली-११००५९
(उप-संपादक, राष्ट्र किंकर साप्ताहिक समाचार-पत्र)
Naya Savera, Book by Trilok singh Thakurela
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