त्रिलोक सिंह ठकुरेला एक जाने माने साहित्यकार हैं. उनके द्वारा प्रकाशित रचनायें मैंने पहले पढ़ी थीं, जिनमें कुण्डलिया कानन प्रमुख है. संयोग से उनकी राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किताब 'नया सवेरा' को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त नहीं हुआ था. ठकुरेला जी की यह किताब हाथ लगते ही पन्ने पलटते गए और एक के बाद एक, कुल २८ बाल - कविताएँ, मुझे २८ वर्ष पीछे मेरे बालपन में लेकर चले गए. बिलकुल वही भाव जो मेरी दादी मुझे सुनाया करती थीं, और ठीक वही सीख जो बालपन में मेरी माँ मुझे दिया करती थीं. शुरूआती कक्षाओं में जो मेरे आचार्य ने जिज्ञासा उत्पन्न की थी, 'अंतरिक्ष की सैर', जैसी कविताओं ने उसे पुनर्जीवित कर दिया. यूं तो देशभक्ति की भावना किस भारतीय में नहीं होगी, किन्तु मेरे घर में मेरा पापा, मेरे चाचा आर्मी से सेवानिवृत्त हुए हैं, तो सैनिक, सीमा, लड़ाई बचपन से मेरे लिए सुपरिचित शब्द रहे हैं. 'वर दो, लड़ने जाऊँगा' जैसी कविता ने उस देशभक्ति की भावना और पिता की सुनाई कठिन कहानियों की लड़ियाँ पेश कर दीं. इस किताब की अन्य खूबियों के साथ, सरल और सटीक चित्र देकर ठकुरेला जी ने बच्चों के मनोविज्ञान को समझने में सफलता पायी है, ऐसा प्रतीत होता है.
सुबह जागने और साधारण सीख के अध्यायों से लेकर, तितली, रेल, चिड़ियाघर की सरल जानकारी और पेड़, उपवन के फूल, देश हमारा, मैया मैं भी कृष्ण बनूँगा आदि कविताओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति को बड़े सटीक और सहज स्वरुप में प्रस्तुत करने का श्रेय ठकुरेला जी को जाता है. एक और बात जो मुझे इस किताब में अच्छी लगी, वह इसका आकार है. कुल ३२ पृष्ठों में इस किताब को समेटकर आपने निश्चित रूप से 'गागर में सागर' भरने का प्रयास किया है. बाज़ार में या ऑनलाइन माध्यमों पर उपलब्ध साहित्यों की बात करें या टेलीविजन पर आने वाले बाल-धारावाहिकों की तरफ दृष्टिपात करें, उसकी भाषा, बच्चों पर उसके द्विअर्थी वाक्यों का असर सही प्रकार से नहीं पड़ता है. ऐसी स्थिति में यह किताब बच्चों के लिए सही कंटेंट न होने की निराशा को कुछ हद तक ही सही, दूर करती है. मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि ठकुरेला जी इस प्रकार की असरकारी रचनाओं से समाज को लाभ पहुंचते रहेंगे. इसके साथ सरकार में उच्च पदों पर बैठे शिक्षण के कर्ताधर्ताओं का ध्यान इस पुस्तक की तरफ आकृष्ट करना चाहूंगा कि इस तरह की पुस्तकों को पाठ्यक्रम में शामिल करना हर प्रकार से, सभी के लिए हितकर साबित होगा. हमारे समाज में नैतिकता का बहुत ऊँचा मानदंड स्थापित रहा है. वर्तमान में जो कुछ गिरावट आयी है, उसे "नया सवेरा" जैसे साहित्य और 'त्रिलोक सिंह ठकुरेला' जैसे साहित्यकारों द्वारा नयी दिशा मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है.
शुभकामनाओं सहित -
- मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली-११००५९
(उप-संपादक, राष्ट्र किंकर साप्ताहिक समाचार-पत्र)
Naya Savera, Book by Trilok singh Thakurela
Thursday 16 October 2014
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पुस्तक - समीक्षा "नया सवेरा" - Naya Savera, Book by - Trilok Singh Thakurela
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