Friday 11 September 2015

पब्लिक प्लेस पर … (लघुकथा)

स्टेशन पर मेट्रो के रूकते ही दो लड़कियां चढ़ीं और भीड़ के बीच से रास्ता बनाते हुए कोने में खड़ी हो गयीं. एक उनमें फ्रिक्वेंट इंग्लिश में गिटपिट करने लगी तो दूसरी रूक-रूक कर हिंग्लिश में जवाब दे रही थी. बगल में गिरीश खड़ा था, जो रोमांचवश उनकी बातें सुनने लगा. एक बॉस की तरह इंटरव्यू ले रही थी तो दूसरी शायद फ्रेशर थी. अपॉरचुनिटी, इनोवेशन .. सेल्स .. वेबसाइट ... और ऐसी ही शब्दावलियों के साथ मेट्रो की भीड़भाड़ में इंटरव्यू देने वाली लड़की असहज महसूस कर रही थी, मगर उसकी सीनियर धड़ाधड़ प्रश्न किये जा रही थी.
बी कम्फर्टेबल! आय हैव टू सबमिट माय फीडबैक ... सीनियर ने कहा!
येस मैम, बट कैन आई ... ऑफिस में ... अगर .. आप
बी रिलैक्स, एंड आय हैव टू यूटिलाइज माय टाइम . ..
देखते देखते जब गिरीश से नहीं रहा गया तो उसने कह ही दिया, मैडम पब्लिक प्लेस पर इंटरव्यू, वह भी ऑफिशियल लेने की कोई नयी रिसर्च है क्या?
दिस इस नन ऑफ यूअर बिजनेस ... सीनियर ने बेरूखी से कहा!
नहीं जी, मेरा बिजनेस है ... कपड़े की दुकान है, गिरीश ने जानबूझकर छेड़ा.
इससे पहले कि सीनियर कुछ कहती, जूनियर ने हस्तक्षेप किया
कहाँ पर है आपकी दुकान... ?
जी, तिलक नगर में ... मुस्कराते हुए गिरीश ने जवाब दिया तो सीनियर मैडम को गुस्सा आ गया और उसने जूनियर की ओर देखते हुए अपना डिसीजन सुना ही दिया - 'यू आर रिजेक्टेड फ्रॉम दी कंपनी' ... और तुनकते हुए मेट्रो के दुसरे डिब्बे की ओर बढ़ गयी.
उसके जाने के बाद गिरीश ने जूनियर से कहा 'दैट कंपनी इज़ नॉट एलिजिबल फॉर यू, प्रॉबेबली ...'
और दोनों हंस पड़े.
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
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