आपने मेरा पिछला लेख पढ़ा अन्ना हजारे के आन्दोलन पर (Click to read again…), आपकी प्रतिक्रियाएं पढ़कर मन इसलिए भी खुश हुआ की यह थोडा अलग तरह का लेख था, अक्सर हम किसी भी मुद्दे पर सीधे फायदे की ओर नजरें गड़ाएं रहते है जबकि उसके साथ तमाम और भी बातें होती है, जो कभी-कभी तो मूल बातों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण प्रभाव छोडती है | खैर, अन्य लेखकों की तरह मेरा उत्साह भी बढ़ा और ढूंढने लगा कोई अन्य मुद्दा, पर अभी लेखन का शुरूआती दौर होने से कोई मुद्दा जंचा ही नहीं | लेकिन पिछले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समाचार टी.वी. चैनलों पर पुरे दिन छाया रहा और हो भी क्यों नहीं, यह एक ऐसे विवादित राजनीतिज्ञ के बारे में था जिसे आम जनता और देश के बुद्धिजीवी तो राष्ट्रीय स्तर पर देखने की सोचते है पर उसे राजनीतिक रूप से अछूत करने का पिछले दस वर्षों से लगातार प्रचार चल रहा है |
जी हाँ! मै नरेन्द्र मोदी की ही बात कर रहा हूँ, जिसे अपनी पार्टी भाजपा में ही तमाम बिरोधों का सामना करना पड़ता है, कांग्रेस और अन्य दलों की तो बात ही छोडिये| ना, ना मै गुजरात-दंगो की वकालत करने के बिलकुल भी पक्ष में नहीं हूँ और कोई सच्चा/ शांतिप्रिय देशवासी उस नरसंहार को कैसे भूल सकता है, जिसने पुरे विश्व का ध्यान इस्लामी-आतंकवाद से हटाकर एकबारगी भारत पर केन्द्रित कर लिया था| मै उस वक्त अभी युवावस्था की दहलीज पर था, पर मेरी समझ आज भी यह इशारा कर रही है की अगर केंद्र में भाजपा की ही सरकार संयम से काम नहीं लेती तो शायद इस पुरे देश में एक दूसरा वक्त ही शुरू हो सकता था जो की किसी भी अवस्था में किसी देशप्रेमी को स्वीकार नहीं होता| माननीय बाजपेयी जी और अन्य देशवासियों की ही तरह मुझे भी ‘गुजरात दंगो में राष्ट्रीय-शर्म‘ ही नजर आती है और आनी चाहिए भी| लेकिन हम यहाँ चर्चा कुछ अन्य बिन्दुओं पर करेंगे, और आप खुद ही निर्णय करेंगे की देश को हम किस दिशा में ले जाना चाहते हैं|
भारत के सफल ब्यक्तियों की हम बात करें तो निःसंदेह उद्योगपतियों का नाम सबसे ऊपर आएगा| रतन टाटा, नारायणमूर्ति और अन्य पूरा उद्योग जगत एक स्वर में नरेन्द्र मोदी की न सिर्फ प्रशंशा करता है वरन उन्हें भारत के सर्वोच्च राजनैतिक पद पर आसीन देखना चाहता है| रतन टाटा जैसा उद्योगपति खुलेआम उनको ‘प्रधानमंत्री’ पद के

दूसरा प्रश्न यह है की नरेन्द्र मोदी के इतना विकास करने के बावजूद, अपनी छवि स्वक्ष, प्रशाशन और उद्यम-आकर्षण के बावजूद उन्हें ही क्यों राजनीतिक निशाने पर लिया जा रहा है बार-बार, लगातार, बहार से भी और घर के अन्दर से भी, क्या इसके गर्भ में सिर्फ गुजरात दंगा ही है या बात कुछ आगे है| यदि उपरोक्त दोनों प्रश्नों के उत्तर हम ढूढ़ ले तो यकीन मानिये, हमारा देश राजनीतिक रूप से स्थिर तो होगा ही साथ-ही-साथ आर्थिक, सैन्य और तमाम अन्य मोर्चो पर हम भरी बढ़त हासिल कर पाएंगे|
प्रश्न सिर्फ नरेन्द्र मोदी का हो तो कोई भी इसे गंभीरता से नहीं लेगा पर प्रश्न एक-राजनीतिक व्यवस्था का है, प्रश्न भ्रष्टाचार का है, प्रश्न विकास और सुशाशन का भी है, जिसके बिना असंभव है लोकतंत्र में खुशहाली ला पाना. खुशहाली की बात कौन कहे एक नागरिक के तौर पर किसी भी भारतवासी का भारत में रह पाना असंभव है, न उसके अधिकारों की बात होगी ना उसकी सुरक्षा की. हर बंद राम-भरोसे ही चलने को मजबूर होगा| ज्यादा गंभीर भाषण हो गया ऊपर की पंक्तियों में, मै कुछ हल्के-फुल्के प्रश्न आपके सामने रखता हूँ, जरा सोचिये भारतवर्ष में अभी कितने ऐसे राजनैतिक-महापुरुष है, जो न सिर्फ सोचते है बल्कि उनका दिल बार-बार यकीन दिलाता है की यार! कभी न कभी तो मै बनूँगा ही “प्रधानमंत्री” … बताइए-बताइए, ऐसे कितने लोग होंगे, मै कोशिश करता हूँ सही संख्या पता करने की – राहुल गाँधी, आडवानी जी, चिदंबरम साहब, लालू प्रसाद जी, माननीया मायावती बहन, साउथ की अम्मा, मुलायम सिंह जी भी मुलायम बनने की कोशिश में हैं और ऐसे न जाने कितने नाम है जिनकी न तो कोई छवि स्वक्ष है, न कोई योग्यता है, किसी की पार्टी की सिर्फ २-४ सीटें है, तो किसी की अपनी है पार्टी में स्वीकार्यता भी नहीं है, कोई उम्र के आखिरी पड़ाव में है तो कोई जातिवाद के सहारे शीर्ष पर पहुचने का ख्वाब संजोये है.
मैंने यह सामयिक प्रश्न इसलिए पूछा है की क्या ‘प्रधान-मंत्री’ का पद अभी भी इतना सस्ता है की कोई जन्म से ही प्रधानमंत्री है तो कोई जाति के आरक्षण से प्रधानमंत्री के शीर्ष पर विराजमान होने की चेष्टा कर रहा है. क्या अन्य विकसित देशो जैसे अमेरिका में भी ऐसा ही सोचते है लोग, चीन, जापान, इंग्लैंड में सारे राजनीतिज्ञ ऐसे ही बिना किसी

फिर गंभीर हो गयी पंक्तियाँ, क्या करू नया-नया लिखना शुरू किया है ना, खैर ऊपर के दोनों प्रश्न आपको याद होंगे, उनमे से पहला यह था की ऐसी कौन सी मजबूरी है जो नरेन्द्र मोदी की तरफ बुद्धिजीवी समाज का ध्यान खींच रही है| सबसे बड़ा कारन है- अति मजबूत राजनीतिक इक्षाशक्ति (यह ‘अति’ शब्द नरेन्द्र मोदी को अपनों के बिच भी नुक्सान पहुंचा रहा है परन्तु इंदिरा गाँधी के बाद शायद मोदी ऐसी इक्षाशक्ति वाले इकलौते राजनेता हैं जिसकी देश को सख्त जरूरत है), इससे देश निश्चित तौर पर राजनैतिक स्थायित्व की तरफ अग्रसर होगा; दूसरा महत्वपूर्ण कारन है विकाश की उद्यमशीलता जो लगातार रोजगार और युवाओं में विश्वास पैदा करती जा रही है; तीसरा शशक्त प्रशाशन भी एक अति महत्वपूर्ण कारन है जो साम्प्रदायिकता से आगे सोचने को प्रेरित करता है, अल्पसंख्यको में विश्वास जगाता है, न्याय की उम्मीद जगाता है| इसके अलावा नरेन्द्र मोदी का अपना व्यक्तित्व, सजगता, अनुभव और राजनीतिक समझ उन्हें अलग ही श्रेणी में खड़ा करती है| ये सारे गुण, विशेषकर उपरोक्त तीन मुख्य गुण बुद्धिजीवियों को सिर्फ नरेन्द्र मोदी में ही दिख रहें है. प्रधानमंत्री के किसी अन्य उम्मीदवार में इन तीनो में से एक के भी दर्शन दुर्लभ है, यही एकमात्र कारन है नरेन्द्र मोदी को समर्थन के पीछे| ये सारे बुद्धिजीवी जानते है की देश में पहले भी दंगे हुए, ८४ में सिक्खों पर हुआ जुल्म आज तक कांग्रेस को परेशान कर रहा है, पर इस सिक्ख दंगे का मूल नेहरु परिवार तो राजनैतिक अछूत नहीं है, फिर मोदी ही क्यों ?? देश के सभी उद्यमी और बुद्धिजीवी जानते है की राजनीतिक लचरता से देश का क्या नुकसान होता है, यह कोई पश्चिम बंगाल से पूछे| दंगे की बात एक जगह है, पर कहीं भी यह सत्यापित नहीं हुआ है की नरेन्द्र मोदी ही साजिशकर्ता थे, किसी न्यायालय ने उन्हें दोषी करार नहीं दिया है| मै इससे आगे की बात करता हूँ, माना की नरेन्द्र मोदी दोषी है राजनीतिक रूप से, एकबारगी यह मान भी लिया जाये तो पिछले १० सालो से क्या इस नेता ने प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष अपनी गलती मानकर प्रायश्चित नहीं किया है, यकीन मानिये आज गुजरात में किसी भी प्रदेश के मुकाबले सबसे ज्यादा भाईचारा है, सबसे ज्यादा विकास है| नरेन्द्र मोदी ने कोई जान-बूझकर अपराध नहीं किया है, प्रशाशन में उनसे जरूर गलती हुई है और भरी गलती हुई है, पर वह उसका प्रायश्चित कर चुके है गुजरात के जनजीवन का स्तर ऊपर उठाकर, और सजा भुगत चुके है पिछले १० बर्षों से राजनीतिक-अछूत बनकर| क्या अब भी आप रतन टाटा, वस्तान्वी, अन्ना हजारे को गलत कहेंगे | उन्होंने जाने-अनजाने देश के भलाई की ही बात कही है और उनका यह मानना भी सत्य है की राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व ही कुछ कर सकता है, भारत को ऐसे ही राजनेता की जरूरत है|

दूसरा प्रश्न इस व्याख्या से भी महत्वपूर्ण है की नरेन्द्र मोदी के लाख कोशिश करने के बावजूद क्यों राजनैतिक-वर्ग उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं है| इसका उत्तर कुछ सकारात्मक है तो कुछ नकारात्मक, सकारात्मक पहलू कहता है की नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगो की कालिख धोने के लिए अभी और प्रयास की जरूरत समझता है, वही कुछ वर्ग का यह भी मानना है की नरेन्द्र मोदी की तानाशाह छवि कही घातक न सिद्ध हो, कुछ उनके अकडू स्वाभाव को गलत मानते हैं, पर ये गलतियाँ अथवा सुधर संभव हैं और इसको नरेन्द्र मोदी भी बखूबी समझते हैं इसीलिए उनके अब के भाषणों और पिछले वक्त्ब्यों में साफ़ अंतर देखा जा सकता है| नकारात्मक पहलू कांग्रेस की अल्पसंख्यक-तुष्टिकरण की नीति रही है, जो इन दिनों कुछ ज्यादा ही मुखर हो उठी है, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और बिहार में लालू प्रसाद के कमजोर होने से मुस्लिम वोट-बैंक असमंजस में है और कांग्रेस येन-केन-प्रकारेण इस वोट बैंक को अपना बनने की कोशिश कर रही है बिना किसी रिस्क के| वह चाहे कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का ‘लादेन-जी और ठग-रामदेव’ का बयान हो, बटाला हाउस की छीछालेदर हो, अफजल की फांसी को लटकाना हो, या अभी कांग्रेस के समर्थन से कश्मीर-विधानसभा से अफजल की माफ़ी का प्रस्ताव हो, हर जगह इसकी बू आराम से महसूस की जा सकती है, आखिर कांग्रेस ऐसा क्यों ना करे, अब धीरे-धीरे मतदाता समझदार हो रहे है, सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही ऐसा है जो कम-शिक्षित अथवा अशिक्षित माना जाता है, इनके बल पर राहुल को २०१४ में प्रधानमंत्री का पद सौपना आसान जो होगा| नरेन्द्र मोदी के नकारात्मक विरोध की एक और बड़ी वजह आर.एस.एस. से सम्बद्ध होना भी है, कांग्रेस स्वीकार करे ना करे परन्तु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक बड़ी राजनीतिक और सामाजिक ताकत बनकर उभरा है, और जनमानस पर इसका सामाजिक प्रभाव काफी पहले से माना जाता रहा है, पर इन दिनों इसने राजनीति में भी कांग्रेस की जड़े हिलाने तक चुनौती दी है| अब आप सभी निष्कर्ष खुद निकाले और राजनीतिक रूप से जागरूक हो और अपने आसपास का वातावरण जागरूक करें, क्योंकि हमारे देश का राजनीतिक परिपक्व होना निहायत जरूरी है, इसके बिना किसी आन्दोलन का ठोश परिणाम नहीं आ सकता, चाहे जे.पी. का आन्दोलन रहा हो, या वी.पी. सिंह का अथवा वर्तमान नायक अन्ना हजारे का आन्दोलन हो| देश को अब एक शशक्त राजनीतिज्ञ चाहिए जो संपूर्ण देश को आगे लेकर चल सके, देश उसके लिए मिटने को भी तैयार है और देश उसके लिए संघर्ष करने को भी तैयार है, चाहे वह राजनीतिज्ञ नरेन्द्र मोदी हो अथवा कोई और|
यदि कोई अन्य विकल्प नहीं हैं तो नरेन्द्र मोदी को जवाबदेह बनाकर भाजपा को आगे लाना चाहिए और कांग्रेस को भी अपनी दो मुख्य नीतियों में सुधार की गुन्जाईस खोजनी चाहिए, ताकि देश विकास के पथ पर अग्रसर हो ना की अस्थिर राजनीति की ओर | इन्ही बातों के साथ आपसे बिदा लेता हूँ|
जय हिंद !!
Author- Mithilesh Kumar Singh (mithilesh2020@gmail.com)
The Politics; The First & Last Option, article in Hindi by Mithilesh
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