Friday 17 January 2014

राहुल गांधी नए सोच वाले हो गए हैं! - Rahul Gandhi

देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के पिछले दस साल से नए चेहरे बने राहुल गांधी अब अपनी सोच को और भी नयापन दे रहे हैं. दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में चल रही कांग्रेस पार्टी की बैठक को अपने जोश और सोच से लबरेज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी कांग्रेस पार्टी के युवराज ने. इस सन्दर्भ में एक कांग्रेसी नेता की पहले कही गयी एक टिप्पणी को उद्धृत करना उचित रहेगा. उन्होंने भाजपा और उसके नेता नरेंद्र मोदी पर कड़ा हमला बोलते हुए कहा था कि उन्होंने अपने आपको काफी पहले ओवरसेल कर दिया है. इस कड़ी में राहुल गांधी बिलकुल सही समय पर अपनी गति पकड़ रहे हैं. असली नेता वही होता है, जो चुनाव आते आते अपनी पूरी गति पकड़ ले, और मतदान के दिन बटन दबने तक अपनी गति बनाये रखे. हाँ, फिर बेशक वह मतदान के बाद अपनी गाड़ी पर ब्रेक क्यों न लगा दे.

अब जबकि २०१४ की दुंदुम्भी बज चुकी है, तब कांग्रेस पार्टी के १० साल पुराने परन्तु नए सोच वाले चिराग राहुल गांधी अपने तरकश से कई तीर निकाल रहे हैं. एक तरफ तो अपने भाषणों में वह परंपरा, कांग्रेस पार्टी की सोच और भारत के इतिहास की कड़ी दुहाई दे रहे हैं वहीं दूसरी ओर वह विपक्ष की मार्केटिंग रणनीति को जनता के सामने उजागर करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. मार्केटिंग रणनीति का अधिकाधिक दुरूपयोग करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने गंजे को कंघी बेचने का पुराना मुहावरा भी इस्तेमाल कर डाला. वहीं दिल्ली में नयी नवेली आम आदमी पार्टी पर उन्होंने गंजों का हेयर कट करने को लेकर सधा हुआ व्यंग्य भी किया. खैर, यह राहुल गांधी का अधिकार है कि वह अपने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करें, उन्हें चार्ज करें, परन्तु क्या यह बेहतर नहीं होता कि वह अपनी सरकार पर पिछले पांच साल तक बेहतर और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का दबाव बनाये रखते.

जिस प्रकार राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं की बैठक में प्रधानमंत्री से देश की महिलाओं के लिए ९ की जगह १२ सिलेंडर की मांग की, तो क्या यह बेहतर नहीं होता कि सिलेंडर पर सब्सिडी समाप्त करने के निर्णय पर वह सरकार पर अपना दबाव बनाते. जहाँ तक बात मार्केटिंग की है, तो राहुल गांधी की मार्केटिंग भी कुछ कम नहीं है. परन्तु जब देश घोटालों, भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा और सीमा-सुरक्षा के मुद्दों से बुरी तरह जूझ रहा हो तब कोई भी मार्केटिंग नकारात्मक हो जाती है. राहुल गांधी को यह बात खुले तौर पर पता होनी चाहिए कि मार्केटिंग में साख की अहम् भूमिका होती है. यदि किसी संगठन की साख पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाए तो मार्केटिंग उसके लिए नकारात्मक भूमिका निभाती है. बेहतर होगा राहुल गांधी के लिए कि २०१४ के चुनाव में उनकी पार्टी का जो होगा, वह उनके पिछले पांच साल के कामों का ही परिणाम होगा. परन्तु उनकी पार्टी को देश की जरूरत है अभी, और जिस सोच, धर्म-निरपेक्षता की बात वह कर रहे हैं, उसकी भी जरूरत है देश को. परन्तु यह सिर्फ लफ्फाजी से नहीं होगा. अब कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को पारदर्शिता अपनानी ही होगी, क्योंकि अब सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि भारतीय जनता उनसे जवाब मांग रही है. और लोकतंत्र में जनता भगवान होती है. सुन रहे हैं न राहुल बाबा.

मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Rahul Gandhi leadership for congress

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