आत्मगौरव तब जगाया उस शख्स ने,
ज़िन्दगी जब मौत के पहलू में थी.
कहने को कहती रहे कुछ भी ये दुनिया,
हर जीत उसकी ‘स्वर्ग’ से कुछ कम न थी…
दुनिया का तानाशाह उसका ‘फैन’ था
पहचान उसकी थी यही वह ‘सैन्य’ था
जो ले ‘छड़ी’ मैदान में वह आता था,
उल्टी तरफ का हर कोई छक जाता था
रुकता न था, थकता न था माँ भारती का लाल वह
मैदान में बन जाता था प्रतिपक्ष का फिर काल वह
‘जज्बे’ का सौदा करने की कोशिश हुई
मेजर डिगा नहीं, वह न था छुई-मुई
अनदेखा कर सरकारों ने बड़ी भूल की
कई पीढ़ियां, इस हेतु ना प्रेरित हुईं
है मौका अबकी बार और दस्तूर है
दो ‘भारत-रत्न’ उसको वतन का जो नूर है.
-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.
In the support of Major Dhyanchand for Bharat Ratna Award, hindi poem by mithilesh.
Thursday 28 August 2014
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मेजर ध्यानचंद को ‘भारत-रत्न’ मिलने से भारतीयों को सर्वाधिक ख़ुशी होगी - Bharat Ratna Award
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