Thursday 4 June 2015

योग को भी खतरा है, लेकिन...

नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने आने के तुरंत बाद ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तौर पर मनाने की पहल शुरु कर दी थी. प्रधानमंत्री की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की घोषणा कर दी. इस सन्दर्भ में योग दिवस की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निश्चित रूप से तारीफ़ की जानी चाहिए. अपने अगले प्रयास के तहत पीएम के साथ राजपथ पर योग करने के लिए और इस आयोजन को सफल बनाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों से भी कहा गया है कि वे अपने यहां के अफसरों को इस वृहद कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कहें ताकि गिनीज बुक रिकॉर्ड उच्चतम स्तर पर बन सके. आम भारतीय की तरह सोचें तो, योग को लेकर पूरी दुनिया में जागरूकता बढे, वह भी भारत के प्रयासों से, इससे बेहतरीन बात भला क्या हो सकती है. पर मूल प्रश्न इससे हटकर है कि इन आयोजनों से भारत का आम जनमानस कितना लाभ उठा पाने में सक्षम हो पायेगा. भारतीय लोगों के स्वास्थ्य की ही बात की जाय तो स्थिति बेहद चिंतनीय बनी हुई है. आप किसी भी अस्पताल में चले जाइये, वहां छोटे से छोटे और बड़े रोगों से पीड़ित रोगी असहनीय पीड़ा में आपको दिख जायेंगे. हमारे प्राचीन योग की परंपरा पर यदि दृष्टि डाली जाय, तो महर्षि पतंजलि ने इस अद्भुत विद्या को आम जनमानस के लिए सुलभ बनाया, संकलित किया. परन्तु आज स्थिति बदल चुकी है, अब योग भी कार्पोरेट- कल्चर में घुलता जा रहा है और किसी मल्टी-नेशनल प्रोडक्ट की ही भांति इस पर वर्ग-विशेष का एकाधिकार होता जा रहा है. कार्पोरेट कल्चर में यूं तो कोई बुराई नहीं होती है, पर इसकी मुनाफाखोरी की लत, सही और गलत का अंतर मिटा देती है. कारपोरेट कर्मचारियों को स्पष्ट रूप से टारगेट दिया जाता है कि वह किसी भी तरह टर्न-ओवर के लक्ष्य को हासिल करें. इस लक्ष्य के लिए, उन्हें जो भी गलत, सही उपक्रम करने पड़ें, वह करें. आज जब पानी भी बिकने लगा है, ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि क्या योग पर भी आने वाले समय में धनाढ्यों और कार्पोरेट्स का एकाधिकार हो जायेगा. आखिर, इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि इस प्राचीन विद्या पर अपना टैग लगाकर विभिन्न कंपनियां इसका पेटेंट हासिल करने की कोशिश नहीं करेंगी. जब तक इन भारतीय बौद्धिक सम्पदाओं को एकाधिकार से बचाने की ठोस कोशिश नहीं की जाएगी, तब तक इसकी मार्केटिंग से आम जनमानस को भला कैसे लाभ होगा? बल्कि इससे भी मुनाफाखोरी करने की सम्भावना ही बढ़ेगी, जो भारतीय ऋषि परंपरा के सर्वथा विपरीत होगी. अमेरिका जैसे देश, जिसने हमारे अनेक बौद्धिक संशाधनों पर जबरदस्ती पेटेंट करा रखा है, उससे योग विद्या को बचाने की आवश्यकता भी महसूस करनी होगी, अन्यथा तेज बोलने वालों की भीड़ में अपनी आवाज नक्कारखाने में ही खो कर रह जाएगी. सिर्फ विदेश ही नहीं, बल्कि कई देशी योग गुरुओं पर भी योग का कारोबार करने का आरोप लगाया जा रहा है. ऐसे में योग जैसी भारतीय विद्या के व्यवसायीकरण से प्रश्न उपजना स्वाभाविक ही है. ऐसा भी नहीं है कि इसके सिर्फ नकारात्मक पहलु ही हों, बल्कि इसके सकारात्मक पहलु को देखा जाय तो व्यक्तियों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ने से न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार आया है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य में भी गुणात्मक परिवर्तन दर्ज किया गया है. इसके साथ लाखों योग टीचरों को इस क्षेत्र में बड़ा रोजगार भी मिला है. इसी रोजगार की वैश्विक स्तर पर सम्भावना को हमारे प्रधानमंत्री ने भी न सिर्फ टटोला है, बल्कि विदेशों में अपने भाषण में उन्होंने विश्व को "योग - शिक्षक" एक्सपोर्ट करने की मजबूत वकालत भी की है. अनेक व्यक्तियों और कंपनियों ने अपने लिए योग शिक्षक हायर कर रखें हैं, जो उन्हें रोजमर्रा के तनाव से मुक्ति का रास्ता दिखाने के साथ साथ कई असाध्य रोगों में भी लाभ पहुंचा रहा है. इन तमाम बातों का ध्यान, निश्चित रूप से हमारे प्रधानमंत्री की दृष्टि में होगा. यह बात भी उतनी ही सत्य है कि जब दुनिया आगे बढ़ रही हो तब न तो रुका जा सकता है, और न ही पीछे देखा जा सकता है. बल्कि ऐसी स्थिति में आक्रामकता ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प साबित होती है. योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का ब्रांड-एम्बेसडर बनाने की ठान चुके प्रधानमंत्री अपने एक साल के कार्यकाल में अपनी सजगता और प्रतिभा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोहा मनवा चुके हैं, जिसमें नेपाल, यमन इत्यादि देशों की मदद में भारत को सबसे आगे खड़ा करना प्रमुख है. इस तरह से सोचा जाय तो प्रधानमंत्री के क़दमों पर विश्वास करने की वाजिब वजह दिखती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यवस्था में इस प्रकार से सुधार आएगा जो देश के आम-ओ-खास, सभी नागरिकों को समान रूप से फायदा पहुंचाएगा, विशेषकर योग जैसा प्राचीन भारतीय ज्ञान. भारत के पास निश्चित रूप से बड़ी युवा फ़ौज है, जो निर्माण के साथ सेवा- क्षेत्र में तहलका मचाने को तैयार है. बस इन समस्त कवायदों को मुनाफाखोरों से बचाते हुए देश की सेवा में झोंक दिया जाय तो वह दिन दूर नहीं, जब वास्तव में भारतवर्ष विश्व का नेतृत्व करने में अगली कतार में खड़ा हो जायेगा. यदि विश्व गुरु का सम्मान योग के रास्ते मिले, तो यह हमारी प्राचीन परंपरा के लिए बेहद सम्मानजनक बात होगी. - मिथिलेश, नई दिल्ली.


International Yoga day and corporate patents, hindi article by mithilesh2020 

No comments:

Post a Comment

Labels

Tags