Wednesday 27 May 2015

बोफोर्स का भूत

वो कहते हैं न कि भूत कभी पीछा नहीं छोड़ता है. आम जनमानस में प्रचलित भूतों की तरह राजनीति में भी लेकिन इन बड़े घोटालों की श्रृंखला में यदि बोफोर्स घोटाले को इन सभी घोटालों का पितामह कहा जाय तो कोई गलत नहीं होगा. आखिर, इस घोटाले के कारण राजीव गांधी की सरकार कुर्बान हो गयी. उसी दौर के नेता और अब वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर इस जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया है. इस बार इस जिन्न या भूत जो भी कहिये, इतना ताकतवर है कि इसने सरकार और राष्ट्रपति भवन दोनों को उलझाकर रख दिया है. बवाल सामने आने के बाद न तो सरकार की ओर से कोई स्पष्ट सफाई दी जा रही है और न ही पार्टी प्रवक्ता द्वारा. कोढ़ में खाज यह हुआ है कि स्वीडिश अखबार दॉगेंस नेहेदर ने दावा किया है कि भारत ने उससे भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के इंटरव्यू से बोफोर्स वाला हिस्सा हटाने के लिए कहा था. गौरतलब है कि इसी अखबार को इंटरव्यू देते हुए राष्ट्रपति मुखर्जी ने बोफोर्स मामले में बयान दिया था, 'अभी तक किसी भी भारतीय कोर्ट ने इस मामले में कोई फैसला नहीं दिया है. ऐसे में इसे घोटाला करार देना उचित नहीं है. यह एक मीडिया ट्रायल था.' यह इंटरव्यू दॉगेंस नेहेदर के एडिटर-इन-चीफ पीटर वोलोदास्की ने लिया था. सामने आये रहस्योद्घाटन से ऐसा लगता है कि इस मामले में लीपापोती करने की भरपूर कोशिशें हुई हैं, लेकिन अख़बार वाले भी अपना समय पहचानते हैं. उन्होंने इतना बढ़िया मसाला आखिर हाथ से क्यों जाने देना था. राष्ट्रपति मुखर्जी के इस बयान पर राष्ट्रपति भवन से कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आई, लेकिन केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने इस मामले में बोफोर्स तोपों की पैरवी जरूर कर दी. खैर, इन तोपों की गुणवत्ता कारगिल युद्ध के समय सिद्ध हो चुकी है, लेकिन जो सिद्ध नहीं हुआ है वह है हमारी कार्यप्रणाली. आखिर इतने साल पुराने केस के बार बार उठाये जाने के औचित्य को क्या कहा जाय? साथ में हमारी न्याय व्यवस्था पर किस प्रकार से अपनी राय रखी जाय जो एक बड़े राष्ट्रीय मुद्दे पर सीधा फैसला देने में इतना समय लगा देती है. आम मुद्दों पर भला न्याय के सन्दर्भ में क्या उम्मीद रखी जा सकती है. न्याय-व्यवस्था के अतिरिक्त यह प्रश्न रक्षा सौदों की दलाली से भी बेहद गहरे से जुड़ा हुआ है. आपको याद होगा कि हाल ही में जब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ़्रांस की यात्रा पर थे, तो उन्होंने राफेल विमानों का सौदा करने का समझौता किया. इस पर भाजपा के ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत जाने तक की बात कह दी थी. इस मुद्दे के अतिरिक्त भी रक्षा सौदों में पारदर्शिता पर हमेशा प्रश्न उठता रहा है. न्याय-व्यवस्था के साथ, बोफोर्स का जिन्न जिस तरफ अपना मुंह घुमा रहा है, वह रक्षा सौदों में पारदर्शिता का प्रश्न उठाता है. बोफोर्स के भूत के द्वारा याद दिलाये गए इन दो महत्वपूर्ण मुद्दों को सुलझा लिया जाय तो, निश्चित रूप से इस भूत की आत्मा को शांति मिल जाएगी, अन्यथा समय-समय पर यह अपना सर उठाता ही रहेगा.
तमाम तरह के भूत पाये जाते हैं और राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ा भूत किसी घोटाले का भूत होता है. यूं तो आज़ाद भारत के इतिहास में तमाम घोटाले हुए,

No comments:

Post a Comment

Labels

Tags