घेरने हैं आ गयी वो फ़ौज देखो
बदलियों की फिर से मौज देखो
छुप गया सूरज गगन की ओट में
मुस्कान है लगी खिलखिलाने लोटने
--------
जेठ की तपती अगन में भी मगन
खेत में चलता न दुखता उसका मन
बीज जो डाले हैं उसने जतन से
इस बार भी रोये न अपने पतन से
--------
शहरों में भी कम नहीं दुश्वारियां
बदहवास हो भागते नर नारियां
अस्पताल में रोगियों की कतार है
लाखों दुखी, वैक्टीरिया से बीमार हैं
--------
देखते पंछी हैं बड़ी आशा से तुमको
नदियां और झरनों में अब रस भर दो
तड़पे ना कोई जीव अब इस उमस से
बढ़ती बेचैनी जा रही उजली तमस में
--------
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
Hindi poem by mithilesh on summer, rain season
city, village, kisan, farmer, hospital, birds, rain, sun, hot, cool, tank, pokhar, riverHindi poem by mithilesh on summer, rain season
No comments:
Post a Comment