Monday 13 October 2014

देश के कानून से ऊपर नहीं है कोई - Indian Law

dlf-kp-singh     भारत देश में विभिन्न प्रकार के लोग और समूह पाये जाते हैं और इसी के हिसाब से उनकी मानसिकता भी बदली रहती है. लेकिन इस बीच एक बात बड़ी कॉमन नजर आती है और वह है इन सभी के मन में देश के कानून से खुद को ऊपर समझने की लत. गांव में पान की दूकान या चाय की दुकान पर बैठा हुआ छुटभैया नेता हो या देश में बड़े कॉर्पोरेट समूह के धनाढ्य के तौर पर पहचान रखने वाला व्यवसायी, सभी देश के कानून के ऊपर खुद को समझते ही नहीं हैं, बल्कि उनके मन में प्रत्येक परिस्थिति में सब कुछ 'मैनेज' कर लेने की नीयत भी होती है और वह इस सिलसिले में अपनी जुगत भी भिड़ाते रहते हैं. आखिर कानून में कहीं तो झोल है, जो इस प्रकार की मानसिकता आम-ओ-ख़ास सभी में विकसित हो जाती है. यह अलग बात है कि जब कानून अपनी पर उतरता है तब आम की तो बात ही क्या की जाय, बड़े से बड़े ख़ास इस चक्की में पिस जाते हैं. इस बड़े लोकतान्त्रिक देश में, आबादी के अनुपात के हिसाब से प्रशासनिक ढाँचे में बड़ी खामियां मौजूद हैं. इन्हीं खामियों का फायदा उठाकर धूर्त व्यवसायी येन, केन प्रकारेण धन और सत्ता के केंद्र में आने में सफल हो जाते हैं, और भारतीय जनता को धत्ता बताने की कोशिश में लग जाते हैं.

हाल ही में डीएलएफ जैसी बड़ी कंपनी के ऊपर शेयर बाज़ार में कारोबार पर बाजार नियामक संस्था सेबी ने प्रतिबन्ध लगाया है. इस कंपनी के ऊपर निवेशकों से जानकारी छुपाने का आरोप लगाते हुए इनके निदेशकों को भी प्रतिबंधित किया गया है. यहाँ यह बताना उचित रहेगा कि डीएलएफ कंपनी सोनिया गांधी के दामाद रोबर्ट वाड्रा से कथित सौदे को लेकर बड़ी चर्चित रही है. पर इस कड़ी में सिर्फ डीएलएफ के केपी सिंह ही नहीं हैं, बल्कि जेल में बंद सहारा के मुखिया सुब्रत रॉय सहारा जैसे व्यवसायी भी हैं. सहारा के साथ-साथ रिलायंस समूह को स्पेक्ट्रम घोटालों और विजय माल्या इत्यादि को कर्मचारियों के साथ धोखाधड़ी करने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा है. विजय माल्या ने तो सांसदों के घर पर प्रभावित करने की माशा से 'महँगी शराब' तक भिजवा दी थी. और भी कई बड़े बिजनेसमैन अपने कार्यों को साधने की खातिर अधिकारियों समेत, नेताओं और न्यायाधीशों तक को प्रभावित करने की कोशिश खुले तौर पर करते रहे हैं. जहाँ तक बात डीएलएफ समूह की है, तो बच्चा-बच्चा जानता है कि हरियाणा में इस कंपनी ने किस प्रकार अकूत सम्पत्ती हासिल की है. इसी प्रकार सहारा समूह के मुखिया तो न्यायालय की नाफरमानी करने के आरोप के चलते जेल में बंद हैं. डीएलएफ या सहारा ऐसे पहले औद्योगिक घराने नहीं हैं, जिन पर इस तरह के मामले दर्ज हुए हैं, लेकिन अपनी गलतियों से वह इस तरह के पहले औद्योगिक घराने जरूर बन गए हैं, जो सीधे तौर पर कानून की नाफरमानी करने वाला प्रतीत हो रहा है. हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि औद्योगिक समूहों को लक्षित करने में राजनैतिक उद्देश्य भी हो सकते हैं, लेकिन बावजूद इसके उन्हें कानून का पालन करने में संयम तो दिखाना ही चाहिए. इसके साथ सरकार और न्यायपालिका को अपराधियों को दंड जरूर देना चाहिए, लेकिन इससे पहले इस बात की कड़ी व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई भी धूर्त या तेज व्यक्ति आम जनमानस के पैसों अथवा उसकी भावनाओं के साथ सीधा खिलवाड़ नहीं कर सके.

यदि डीएलएफ या सहारा जैसी कंपनी ने निवेशकों के पैसों के साथ कोई धोखाधड़ी की भी है तो यह प्रश्न उस सेबी से ही पूछा जाना चाहिए कि वह बिना किसी ठोस गारंटी के ऐसा कैसे कर पायी, और सेबी के अधिकारी आखिर कोई धोखाधड़ी हो जाने के बाद क्यों जागते हैं. और डीएलएफ समूह कोई आज से तो कारोबार कर नहीं रहा है तो फिर उस पर आज से पहले प्रश्न क्यों नहीं पूछे गए? क्या इस समस्त प्रकरण में खुद 'सेबी' भी शक के दायरे में नहीं है? उन सभी अधिकारियों पर भी कड़ी कारर्वाई होनी चाहिए, जिन्होंने डीएलएफ को नियमों में ढील दी होगी. जनता का पैसा आईपीओ के रास्ते करने वाली कंपनी पर आखिर ढिलाई कैसे की जा सकती है. बाद में प्रतिबन्ध लगाने पर भी नुक्सान निवेशकों को ही तो होता है. इसके साथ इन बातों से कौन इंकार कर सकता है कि सरकारी अधिकारी चंद पैसों में गलत सही कारोबारियों को आगे बढ़ने में खुली मदद करते हैं. औद्योगिक घरानों को भी चाहिए कि वह अपनी साथ के साथ-साथ निवेशकों के पैसों का पूरा पूरा हिसाब दें और खुद को देश के कानूनों से ऊपर समझने की जिद्द भी छोड़ दें. इसी में खुद उनकी भी भलाई है, उनके निवेशकों की भी भलाई है और बड़े समूह से जुड़े कर्मचारियों का भविष्य भी इसी में सुरक्षित रहेगा. प्रश्न को आगे तक ले जाने पर हम देखते हैं कि कानून को ठेंगा दिखाने में सिर्फ उद्योगपति ही नहीं, बल्कि धर्माधिकारी भी पीछे नहीं हैं. कई पाखंडी विभिन्न आरोपों में जेल की हवा भी खा रहे हैं. गहराई से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि गलत सही काम करने के लिए शुरुआत में कानून की कमजोरी का फायदा उठाया जाता है, और फंसने पर सफेदपोश बड़ी आसानी से, वोट की खातिर इन सभी का बचाव करते हैं. जरूरत है कानून की व्यवस्था को दुरुस्त करने की, ताकि कोई भी आम या ख़ास कानून के दायरे में ही रहे. क़ानून के दायरे से बाहर जाते ही उसको सरकार का भय हो. तभी आम जनमानस के शोषण में कमी आएगी और हम कह सकेंगे कि देश में "कानून का राज है".

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Indian law and industrialists, article by mithilesh in hindi.

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