Thursday 16 October 2014

पॉलिटिकल सुपरमैन - Political Superman

  जनता, विशेषकर भारतीय जनता पर कभी कभी शोध करने का मन करता है. इसके साथ में भारतीय राजनीतिक चरित्र पर भी शोध करना, लगातार शोध करना अवांछनीय नहीं होगा. आखिर इतिहास कितना पुराना है. यह वाक्य इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि जबसे लिखित इतिहास मौजूद है तभी से शायद राजनीति भी अस्तित्व में हैं. और तब से ही राजनीति का चरित्र भी एक सा ही रहा है. सत्ता, सत्ता और सिर्फ सत्ता. इस सत्ता के लिए जनता का लगातार इस्तेमाल, अलग-अलग वादे, अलग व्यक्तित्व और अलग नजरिये का लुभावना जाल. इस जाल में बार-बार फंसती और बिलखती जनता. बार-बार फंसने के बावजूद भी नयी उम्मीदों पर भरोसे को तैयार दिखती जनता. शायद उसके पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं रहता रहा होगा. लोकतंत्र में भी सत्ता के बारे में फैसले से दूर क्यों रही है जनता, इस बाबत कोई निश्चित बात नहीं कही जा सकती है. लेकिन विस्तृत अध्ययन करने पर यह बात साफ़ हो जाती है कि भारतीय जनता एक सुपरमैन की चाहत में हमेशा दिखती रही है. और कुछ चतुर लोग साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करके चुनावी राजनीति में सुपरमैन की तरह दिख जाते हैं.


  फिर पांच साल तक वह बेशक चरित्रहीन क्यों न रहे. फिर अगली बार भी कोई इसी तरह का सुपरमैन आता है और पांच साल तक उसका कारवां यूंही चलता जाता है. इसी कड़ी में कभी कोई साधारण सुपरमैन आता है, तो कभी एक्स्ट्रा-आर्डिनरी सुपरमैन. कभी चुनाव से पूर्व का सुपरमैन ज्यादा भ्रष्टाचारी हो जाता है तो कभी अत्यंत असहिष्णु. और इसी तरह लोकतंत्र की गाड़ी रुक-रुक कर, फंस-फंस कर, अटक-अटक कर चलती रहती है और जनता की उम्मीदें, वास्तविकता से परे अपनी उड़ान भरती रहती हैं. यहाँ इस तथ्य पर ध्यान देना बेहद जरूरी है कि आखिर बार-बार जनता धोखा क्यों खाती है.


 

   क्यों उनके जैसे लोगों के बीच में से कोई उठकर उन्हीं को बेवक़ूफ़ बना देता है. इसका जवाब वास्तविकता से हटकर सोचना है. इसका कारण यह है कि मै बेशक बेईमान रहूँ, परन्तु सामने वाला ईमानदार दिखना चाहिए. मुझे अपने अंदर कोई सुधार नहीं चाहिए, मुझे दुनिया की प्रत्येक सुविधाएं चाहिए, मेरे भ्रष्टाचार पर कोई भी पारदर्शिता का दबाव नहीं होना चाहिए... परन्तु इसके विपरीत हम नेताओं में यह सारी ईमानदारी ढूंढते हैं. कैसे, सम्भव है यह. यह हमें खुद भी सोचना चाहिए. अपनी पत्नी से हम वफादारी नहीं कर सकते, तो हम नेताओं से वफादारी की उम्मीदें कैसे कर सकते हैं. हम अपने बच्चों को सही पाठ सिखा नहीं पाते, न आदर्शात्मक रूप से न ही अपने व्यवहार से. हमारी इसी दोहरी मानसिकता का फायदा उठाते हैं हमारे ही लोग. हम अपने मन, वचन और कर्म में समानता नहीं रख पाते तो हमारे नेता भला कैसे रखें और क्यों रखें. क्यों वह अपने सुख का त्याग करें, जब हम ही दोहरी सोच के मारे हुए हैं. विचार करे स्वयं ही, यह जनता, यह लोग, जिन्हें लोकतंत्र का भगवान कहा जाता है.


Political Superman

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