अभी कल की ही खबर है कि आंध्रा के तटीय पूर्वी गोदावरी जिले के वकाटिप्पा गांव में एक पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में 14 महिलाओं समेत 17 लोगों की मौत हो गई. काकीनाड़ा जिला मुख्यालय के समीप उप्पडा कोथापल्ली मंडल के वकाटिप्पा गांव में स्थित एक निजी फैक्ट्री में मजदूर काम कर रहे थे तभी दोपहर बाद अचानक यह विस्फोट हुआ. पुलिस के अनुसार, विस्फोट के समय कई मजदूर वहां काम कर रहे थे. एक दूसरी खबर देखिये, 'नियमों को ताक पर रखकर बिक रहे पटाखे', इस कारण दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ी. एक और खबर के अनुसार, पुलिस ने दिवाली के सीजन में कई अवैध कारोबारियों को पटाखों के अवैध कारोबार में पकड़ा है. हालाँकि ये कुछ दिनों में बड़े आराम से छूट जायेंगे. लेकिन सवाल यह है कि
दीपावली के समय लोगों में पटाखों को लेकर जो उन्माद रहता है, उस का फायदा गलत तरीके से कई कारोबारी उठाते हैं. वैसे भी हमारे देश में पटाखे बनाने को लेकर कोई ठोस नियम-कानून नहीं हैं, तो जिसको जिस प्रकार समझ आता है, पटाखे बनाकर अपना कारोबार करता है. किस तरह के पटाखें हों, उन पटाखों में कितनी मात्रा में बारूद हो, सुरक्षा के इंतजाम किस प्रकार के हों, प्रदूषण नियंत्रण के तय मानक क्या हों, इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. और इसके अभाव में लोगों के जान-माल को तो
खतरा उत्पन्न होता ही है, पर्यावरण को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पटाखों की दुकानों के लिए सरकार ने कई तरह के नियम बना रखे हैं,
जिनमें मुख्य शर्तें हैं-
- -पटाखों की बिक्री बिजली के तारों के नीचे नहीं होगी.
- -बिजली का ट्रांसफार्मर के पास दुकान नहीं होनी चाहिए.
- -पैट्रोल पंप की दूरी कम से कम 50 फीट की दूरी होनी चाहिए.
- -पास में रुई और कपड़ों का गोदाम नहीं होना चाहिए.
- -दुकान के बाहर पानी और रेत की बाल्टियां रखी होनी चाहिए.
- -कपड़े के शामियाने के नीचे दुकान नहीं लगनी चाहिए.
- -बिजली के बल्ब व हेलोजन लाइटों का प्रयोग नहीं होना चाहिए.

अब इन नियम कानूनों में कितनों का पालन होता है, यह सबको पता है, नतीजा होता है भयानक दुर्घटना. इसके अतिरिक्त अरबों, खरबों की संपत्ति एक रात में जलकर स्वाहा हो जाती है, इस बात को भारत जैसे गरीब देश के सन्दर्भ में अनदेखा नहीं किया जा सकता है. पूरा विश्व भारतीय उप-महाद्वीप के देशों को तीसरी दुनिया के देश कह कर अपमानित करता है. भारत की गरीबी का हाल ही अमेरिकी अखबार में मजाक उड़ा था, जिसमें एक भारतीय किसान को अपनी गाय के साथ मंगल ग्रह पर पहुंचना दिखाया गया था. खैर उस अभद्र कार्टून का विरोध होना ही था और हुआ भी. लेकिन वह कार्टून भारत की गरीबी को रेखांकित कर ही गया. दीपावली के सन्दर्भ में गरीबी, अर्थव्यवस्था को छोड़ भी दें तो स्वास्थ्य दृष्टि से बच्चों और गरीबों के लिए यह दीपावली की रात सबसे बुरी रात साबित होती है. और इस का एकमात्र कारण पटाखों से निकला असीमित धुंआ और शोर होता है.
विशेषकर शहरों में दमा और ह्रदय-रोग के कई मरीज परलोक सिधार जाते हैं. मैं अपनी बात करूँ तो पिछली दीपावली में मेरे ढाई साल के बच्चे को धुंए से एलर्जी हो गयी और उसको दीपावली की सुबह ही डाक्टर के पास लेकर जाना पड़ा. पिछली बार ही की दीपावली में गाँव में रहने वाले मेरे भांजे का हाथ जल गया था और न सिर्फ जला था बल्कि इतनी बुरी तरह से जला था कि उसके एक हाथ में पूरा छाला पड़ गया और वह मर्चेंट नेवी की जॉब खोते-खोते बचा. बहुत लोगों को अपनी आँखों में धुंए से, चिंगारियों से भारी दिक्कत हो जाती है.
पटाखों को लेकर न सिर्फ आर्थिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं हैं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी यह दीपावली के महत्त्व को कम करता जा रहा है. बच्चे तो बच्चे, युवकों में भी पटाखों को लेकर कुछ इस तरह की प्रतिद्वंदिता होती है कि
दीपावली के दिन भाईचारे की बजाय शत्रुता उत्पन्न हो जाती है. मध्यम वर्गीय घरों के बच्चे तरह-तरह के पटाखों को देखकर उदास हो जाते हैं, उन्हें अपने घरवालों पर ही गुस्सा आता है. त्यौहार जो हमारे समाज में समरसता घोलने के लिए जाने जाते हैं, उन्हें दिखावे की इस प्रवृत्ति ने
जहरीला बना दिया है. इस दीपावली पर उचित यही होगा कि खर्चीले पटाखों की बजाय हम परंपरागत दीयों की पंक्तियाँ जलाएं और इस दीपावली में भारतीय परंपरा को जीवित रखें. बहुत शुभकामनाएं. Boycott Crackers in Diwali, fireworks, Article, lekh by Mithilesh kumar singh
-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.
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