इस कड़ी में किरण बेदी के जीवन पर एक फीचर फिल्म 'यस मैडम सर' बन चुकी है. इसे ऑस्ट्रेलियाई फिल्म निर्माता मेगन डोनेमन ने प्रोड्यूस किया है. इस फिल्म को दुनिया के कई फिल्म महोत्सवों में दिखाया गया है. पुरस्कारों की बात की जाय तो किरण बेदी को शौर्य पुरस्कार, 'एशिया का नोबेल पुरस्कार' कहा जाने वाला 'रमन मैग्सेसे पुरस्कार' के अलावा और भी कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. दिल्ली में अपने से कनिष्ठ पुलिस अधिकारी के कमिश्नर बनने के उपरांत किरण बेदी ने इस्तीफा देकर अपने आत्म सम्मान को बचाये रखा और उसके बाद उनका जीवन समाज-सेवा को अर्पित हो गया. कई गैर सरकारी संगठनों की स्थापना और सक्रीय कामकाज के अलावा वह २१वीं सदी के सबसे बड़े आंदोलन अन्ना-आंदोलन में बेहद महत्वपूर्ण चेहरा बनीं रहीं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले चले आंदोलन में किरण बेदी ने एक क्रन्तिकारी, अन्ना की विश्वासपात्र सहयोगी की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया. भूख हड़ताल किया, जेल गयीं और तब देश की भ्रष्टाचारी सरकार को घुटने के बल टिकने को मजबूर कर दिया. बाद में इस बड़े आंदोलन से जुड़े कुछ लोगों द्वारा आंदोलन को हाईजैक करके उसको राजनीतिक रूप देने से अन्ना हज़ारे और किरण बेदी जैसे दूसरे वरिष्ठों ने किनारा कर लिया और परिणामस्वरूप यह गैर-राजनीतिक आंदोलन बिखर गया. किरण बेदी का जीवट इसके बाद भी कायम रहा और कई राजनीतिक पार्टियों के लुभावने ऑफर के बावजूद उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाये रखा.
किरण बेदी बदले राजनीतिक हालत में अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयी हैं. उसका लाभ-हानि, गुणा-गणित अपनी जगह है, किन्तु इस बात के लिए हमें और भी

हार के डर से कुछ लोग, किरण बेदी के उन पुराने ट्वीट्स को सामने ला रहे हैं, जिसमें उन्होंने अन्ना आंदोलन के दौरान भाजपा की खिंचाई की है. कई लोग भूल चुके हैं, लेकिन उस आंदोलन को याद रखने वाले जानते हैं कि उस समय पूरा देश ही भाजपा और कांग्रेस की सोच की बुराई कर रहा था. यहाँ तक कि संघ से जुड़े लोग भी भाजपा के खिलाफ आंदोलन से जुड़े थे. सवाल कांग्रेस या भाजपा का नहीं था तब, सवाल उनकी सोच को लेकर था. कांग्रेस बदली नहीं, इसलिए मिट गयी. केजरीवाल भी कमोबेश, कांग्रेस जैसी सोच के हो गए हैं, कांग्रेस के साथ सरकार भी चला चुके हैं, इसलिए वह भी रसातल में हैं. हाँ! भाजपा अन्ना आंदोलन के बाद बदली है, ऊपर से नीचे तक. इसलिए किरण बेदी जैसे कई लोगों का विचार भी बदला है. आज भाजपा देश को आगे ले जा रही है, तो देशवासियों, दिल्लीवासियों और किरण बेदी का उनसे जुड़ना कहाँ से गलत है? आज जब राजनेताओं की साख बची नहीं है और नेता बनने के लिए लोग गलत सही किसी भी रास्ते की परवाह नहीं करते हैं, उम्मीद है किरण जी, राजनीति में रहते हुए भी अपने स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं करेंगी और अपने प्रभाव से राजनीति के पेशे को भी गन्दगी से, कुछ हद तक ही सही, निजात दिला सकेंगी. दिल्लीवासियों ने पिछले सालों में बड़ी उठापठक का सामना किया है और अब दिल्लीवासियों का हक है कि उन्हें किरणबेदी जैसा सशक्त और दूरदर्शी नेतृत्व मिले. आखिर, राजधानी का इतना हक तो बनता ही है.
Delhi's future chief minister Kiran Bedi, article in Hindi by Mithilesh.
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– मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.
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