पारिवारिक मूल्यों पर विचार करने की कड़ी में जो सर्वाधिक चिंतनीय विषय नजर आता है, वह है बच्चों का लालन-पालन से सम्बंधित विषय.
एक अध्ययन के अनुसार, 60 मिलियन डॉलर के भारतीय आईटी उद्योग में एंट्री लेने वाला, हर दूसरा व्यक्ति महिला है. किन्तु इनमें से 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं एक या दो वर्षों में घर या नौकरी के विकल्प में नौकरी छोड़ देती हैं. बाकी जो अपनी जॉब आगे जारी भी रखती हैं, उनका पारिवारिक जीवन बेहद उलझाऊ हो जाता है.
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आज के आधुनिक काल में, जब प्रोडक्टिविटी सीधे-सीधे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुडी हो और महिलाओं का कार्य करना जरूरी हो गया है, तब इन स्थितियों में संयुक्त परिवार लाभदायक हो सकता है क्या? क्योंकि यह लगभग साबित हो गया है कि भारतीय परिदृश्य में क्रेच या डे-बोर्डिंग जैसी व्यवस्थाएं, इसके बहुतायत स्वरुप में असफल हैं. आप का क्या विचार है मित्रों !!
[From the Facebook wall of Mithilesh]
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