एक-एक बार और डालो. मित्र-मंडली बैठी हुई थी, फार्म-हाउस पर चने-मुरमुरे के साथ चार पैग हो चुके थे. मैं, दो के बाद ही अब नहीं, और नहीं, की रट लगा रहा था, लेकिन मेरी सुनता कौन? पांचवा पैग भरा जा चूका था, और उसे देखकर मुझे पिछले ऐसे ही एक दिन की याद आ गई, जब ऐसे ही दौर के बाद मैंने ज़ोरदार उल्टियाँ कीं और यही सारे हमदर्द दोस्त हँसते रहे. यही नहीं, सुबह मेरी पत्नी से मिलकर इन सभी ने मुझे 'बेवड़ा' साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सबूत के तौर पर उल्टियों से सने हुए कपडे मेरी पत्नी को भेंट स्वरुप दिए गए. वह सब तो चले गए, लेकिन पत्नी की आँखों में आंसू छोड़ गए. मेरा बीटा उससे दिन भर पूछता रहा,
मम्मी! पापा दिन में भी क्यों सो रहे हैं?
मुझे उनके साथ खेलना है. आज तो सन्डे है!
मेरा सर भारी-भारी बना रहा और मैं शाम तक बिस्तर पर पड़ा रहा. शाम को उठा तो पत्नी चाय लेकर आयी. मैंने झेंप मिटाते हुए कहा- वो दोस्तों ने जबरदस्ती कई पैग... !!
मैंने कभी मना किया है आपको, मेरी बात काटते हुए वह बोली!
लेकिन इतना ज्यादा क्यों पी लेते हैं आप, जब बर्दाश्त नहीं होता. बच्चा बड़ा हो रहा है, क्या असर होगा उस पर.
अचानक मेरी तन्द्रा भंग हुई. फार्म-हाउस पर दोस्तों के ठहाके जारी थे.
मुझे सन्डे को बच्चे के साथ खेलना है, यह सोचकर मैंने भरा हुआ पैग उठाया और बाथरूम की तरफ चल पड़ा. मेरे दोस्त कुछ समझते उससे पहले ही वह शराब वाश-बेसिन में बहा दिया.
तबसे कभी मेरे दोस्तों ने 'अंतिम-पैग' के नाम पर ज़िद्द नहीं की. शायद उन्हें पता चल गया था कि संडे को अपने बच्चे के साथ मैं खेलता हूँ, जो मेरे लिए किसी भी 'अंतिम-पैग' से ज्यादा महत्वपूर्ण है.
- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’
Antim Paig, Short story by Mithilesh 'Anbhigya' in Hindi.
Keyword: drunk, drunkers, family and drunkers, Liquor, liquor is harmful, over drink
No comments:
Post a Comment