गणतंत्र देश की शान में, भारत आये श्रीमान
स्वागत को तैयार इधर, थे भारत के प्रधान
थे भारत के प्रधान, चाय हाथों से पिलाई
बातों ही बातों में, डील कई साइन कराई
उठ खड़ा हुआ उत्साह से, देश का लोकतंत्र
अंत्योदय तक पहुंचे, यही अब लक्ष्य गणतंत्र
देखी दुनिया ने अब, विराट ताकत भारत की
राजनीति, कूटनीति में, आँखें झुकीं शत्रु की
आँखें झुकीं शत्रु की, कुछ भी समझ न आया
राग अलापा बेसूरा, खूब शोर मचाया
कहते 'अनभिज्ञ' सही, अभी फिर मचे न शेखी
गुटबाजी से रहें दूर, चलें नहीं देखा देखी
रश्में थीं ख़ुशी की कई, सजी महफ़िल अनोखी
सूट पे अंकित नाम, छपा नरेंदर मोदी
छपा नरेंदर मोदी, पचा नहीं पायी जनता
लेकिन आम-ओ-ख़ास, जनता की कौन है सुनता
कहते 'अनभिज्ञ' सही, झूठी हैं तब तक कसमें
रोटी कपड़े की बात बिन, अधूरी हर एक रश्में
ऊँचे हों महल भले, और हों लम्बी कई कार
पर ध्यान रहे इतना, ना पनपे और बेगार
ना पनपे और बेगार, रोजी-रोजगार हो सबको
न्याय व्यवस्था चुस्त हो, दंड दे तुरत पापी को
कहते 'अनभिज्ञ' सही, देश का गाँव न रूठे
शहर के जैसे ही, उनके सपने हों ऊँचे
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
Mithilesh 'Anbhigya' ki Kundaliyaa, Poem in Hindi.
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