Wednesday 19 February 2014

उम्मीदवारों को भी देखिये - Assembly Election

भारतीय जनता पार्टी का चुनावी अभियान वैसे तो बड़ी रफ़्तार से चल रहा है, लेकिन उनकी कुछेक बातों को लेकर मतदाताओं के मन में संदेह आने लगा है. भाजपा वैसे तो सादगी और शुचिता की बातें करते आघाती नहीं है, लेकिन हाल ही में जिस प्रकार ४०० करोड़ की भारी-भरकम राशि के ब्रांड-बिल्डिंग पर खर्च करने की बात कही जा रही है, उसने इसके समर्थकों के कान खड़े कर दिए हैं. विरोधी पार्टियां तो इस पर प्रश्न दाग ही रही हैं, लेकिन उससे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि क्या चुनाव जीतने के बाद मोदी और उनकी टीम इस पैसे को व्याज समेत वसूलेंगी भी. यह बात तो बिल्कुल स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार की जननी राजनीति ही है और इसके साथ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस प्रकार राजनैतिक दल चंदे का लेन-देन करते रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार का बहुत अहम रोल होता है. कई बार तो चंदे की रकम आम जनता द्वारा स्वेच्छापूर्वक सीमित होती है, जबकि कई बार यह बड़े घरानों द्वारा किसी पार्टी की नीतियों को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाती है. ऐसे में चंदों पर और किसी पार्टी द्वारा किये जा रहे खर्च पर मतदाताओं का प्रश्न पूछना लाजमी हो जाता है. भाजपा के ही सन्दर्भ में एक और नीतिगत बात सामने आ रही है, जिसने मतदाताओं और मोदी के समर्थकों को निराश करना शुरू कर दिया है. भाजपा के बड़े नेता और यहाँ तक कि राजनाथ सिंह अपनी जनसभाओं में बार-बार कह रहे हैं कि इस बार मतदाता, स्थानीय उम्मीदवारों को न देखें, बल्कि वह मोदी के नाम पर अपना वोट दें.

प्रश्न यही खड़ा हो जाता है कि आखिर उम्मीदवारों को अनदेखा करने की अपील भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा क्यों की जा रही है. मतदाता संशय कर रहा है कि क्या भाजपा के उम्मीदवार ईमानदार नहीं होंगे? क्या मोदी के नाम पर ऐरे-गैरे उम्मीदवारों को टिकट दे दिया जायेगा? यदि सचमुच ऐसा होगा तो भारत की बहुसंख्यक जनता पर से मोदी का प्रभाव कम होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. बेहतर होता, यदि मोदी को चमत्कारी मानने के साथ-साथ लोकतंत्र के मनमाफिक उम्मीदवारों को टिकट भी दिया जाता. और साथ में अपने बेहतरीन प्रचार के साथ जनता को यह भी सन्देश देने की कोशिश की जाती कि उनका प्रचार अथाह और गलत काले धन पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसके कार्यकर्त्ता और स्वयंसेवक उसके मूल में हैं. उसे किसी बनावटी और दिखावटी कैम्पेन की आवश्यकता नहीं है, बल्कि जनता तक सन्देश पहुँचाने में उसके नेता और सहयोगी ही पर्याप्त हैं. अच्छे उम्मीदवारों की क्या अहमियत होती है, यह भारतीय जनता पार्टी और मोदी को दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनावों से सीख लेना चाहिए था. जिस प्रकार चुनाव के कुछ ही दिनों पहले विजय गोयल को हटाकर डॉ. हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था, उसी का कहीं न कहीं परिणाम था कि दिल्ली में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. विश्लेषक इस बात को दावे के साथ कह रहे हैं कि भाजपा का केंद्र में सरकार बनना अथवा नहीं बनना इस बात पर निर्भर करेगा कि वह लोकसभा में अपने उम्मीदवारों को ईमानदारी की कसौटी पर कैसे कसती है, बजाय यह कहने के कि सिर्फ मोदी के नाम पर मतदाता अपनी आँखें बंद कर लें.

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