यह भला कैसे सम्भव है कि किसी संस्था के कई सदस्य फिक्सिंग जैसे गम्भीर अपराध में शामिल रहे हों और उसी संस्था का सबसे महत्वपूर्ण और तेज-तर्रार खिलाड़ी एवं कैप्टन इन बातों से अनजान रहा हो. वैसे क्रिकेट में जिस प्रकार पैसे की आवाजाही एक विशेष रफ़्तार से शुरू हो चुकी है, उसने इस खेल को दागदार बनाने के तमाम रास्ते खोल दिए हैं. हालाँकि इस क्रिकेट की प्रशासनिक संस्था की एक बेहद ख़ास बात रही है, वह यह है कि चाहे बीसीसीआई के कोई भी अध्यक्ष, किसी भी दरमयान रहे हों, वह सीमा से काफी आगे तक ताकतवर रहे हैं. बात चाहे जगमोहन डालमिया की रही हो, या राजनेता शरद पवार हों अथवा निवर्त्तमान एन. श्रीनिवासन ही क्यों न हों, इन लोगों के पास बेइंतिहा ताकत रही है. कोई भी आरोप लगा ले, कोई कुछ भी कह ले, इन लोगों पर कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है. यहाँ तक कि २०१३ में भी, जिसमें अनेकों हस्तियां जेल की हवा खा चुकी हैं, वह भी एन.
श्रीनिवासन का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी. आसाराम, तेजपाल, लालू प्रसाद, संजय दत्त सहित अनेकों लोगों पर २०१३ का प्रकोप तो पड़ा, लेकिन बीसीसीआई के अध्यक्ष पर गम्भीर आरोप लगने के बावजूद, उनके दामाद के सीधे-सीधे फिक्सिंग में शामिल होने की पुष्टि होने के बावजूद उनका कुछ भी नहीं बिगड़ सका. नियम बदल कर वह महज कुछेक दिनों के लिए प्रक्रियाओं से दूर भर रहे, लेकिन इसके बावजूद वह अध्यक्ष बने रहे. बड़े कार्पोरेट के तौर पर पहचाने जाने वाले एन. श्रीनिवासन अब आईसीसी के भी अध्यक्ष बन चुके हैं, और उनके रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बड़े-बड़े राजनेता भी उनके सामने अपना मुंह बंद रखने में ही भलाई समझते हैं. मसलन, अरुण जेटली, राजीव शुक्ल, अनुराग ठाकुर और अन्य दूसरे. हालाँकि इस बात पर विवाद हो सकता है, लेकिन क्रिकेट के पैसे को राष्ट्र का पैसा क्यों नहीं माना जाना चाहिए. आखिर इस बात का क्या तुक है कि राष्ट्र के नाम पर लोकप्रिय हो रहे खेल और खिलाड़ियों पर कुछेक लोगों का एकाधिकार हो जाए. और न सिर्फ एकाधिकार हो जाए, बल्कि आईपीएल जैसे नए-नए तरीके निकालकर भविष्य की सम्पदा पर भी नियंत्रण कर लिया जाए. जरा सोचिये तो, एक बेहद भारी भरकम रकम, भारतीयों की जेब से निकल कर कुछ लोगों की जेब में जमा हो जाती है.
छोटे-मोटे कई खिलाड़ियों पर तो फिक्सिंग के आरोप लगते ही रहे हैं, लेकिन न्यायमूर्ति मुदगल की जांच रिपोर्ट के माध्यम से अब फंसे हैं देश के लोकप्रिय भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी. उन पर सीधे-सीधे आरोप लगाते हुए कहा गया है कि धोनी चेन्नई सुपर किंग्स के गुरुनाथ मयप्पन को बचाने में शामिल रहे हैं. यह बात कितनी सच है अथवा झूठ है, यह तो जांच का विषय हो सकती है, लेकिन पैसे के इस खेल में किसी का चरित्र पतन होना बिलकुल भी नयी बात नहीं है. धोनी को इस बात की छूट नहीं दी जा सकती है क्योंकि वह भारत को विश्व-कप दिलाने वाले कप्तान हैं. बल्कि इसके लिए तो उनकी और भी कड़ाई से जांच की जानी चाहिए और दोषी साबित होने पर उनके ऊपर यथा योग्य प्रतिबन्ध लगना चाहिए. इसके साथ साथ इस बात की मांग भी जोरों से उठनी चाहिए कि क्रिकेट को भी खेल मंत्रालय के अंतर्गत लाया जाए और क्रिकेट की ताकत और पैसे के ऊपर राष्ट्र का सीधा नियंत्रण हो, न कि कुछेक लोगों का. इसी में क्रिकेट की भी भलाई है और राष्ट्र की भी.
Tuesday 11 February 2014
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आखिर बेदाग़ क्यों हैं धोनी? Match Fixing
sting operation
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