Thursday 6 February 2014

केजरीवाल का मास्टरस्ट्रोक - Arvind Kejriwal

arvind_kejriwal_in_thoughtअरविन्द केजरीवाल जिस प्रकार आंदोलन से निकलकर मुख्यमंत्री बने थे, उसने कइयों के मन में उम्मीद की लहर भर दी थी. लेकिन इसी के साथ जिस प्रकार से उन्होंने लोकप्रियता की राजनीति की खातिर एक के बाद एक फैसले करने शुरू कर दिए, उसने उनके समर्थकों में जल्द ही निराशा भी पैदा कर दी. हालाँकि उन्होंने जल्दी-जल्दी कई कागजी फैसले भी लिए, जो शायद उतने असरदार साबित नहीं हुए, जितना उन्हें होना चाहिए था. मसलन, पानी को २० किलोलीटर तक मुफ्त करना केजरीवाल की चतुराई के बाद भी प्रशासनिक स्तर पर एक बड़ा फैसला था. लेकिन चूँकि केजरीवाल तब तक परिपक्व राजनीतिज्ञ नहीं बने थे, तो यह मुद्दा और फैसल कुछ हद तक नकारात्मकता की भेंट चढ़ गया. बिजली का फैसला, सब्सिडी के बावजूद और कुछ सीमाओं के बाद भी एक बड़ा फैसला कहा जा सकता है, जिससे लोगों को सीधे तौर पर फौरी राहत मिली. लेकिन यहाँ पर भी राजनैतिक अपरिपक्वता ने उन्हें वह लाभ नहीं उठाने दिया, जो घाघ राजनीतिज्ञ उठा पाते.

यह दो बड़े दांव यूँही निकल गए. यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि यदि केजरीवाल ने यही दोनों फैसले पुरे होमवर्क के साथ लिए होते, किसी कांग्रेसी या भाजपाई की तरह, तो इसका असर कुछ और ही होता. इन दोनों बड़े फैसलों से फायदा नहीं मिलते देख केजरीवाल झल्लाते गए और असफलता की राह पर बढ़ते दिखने लगे. फिर जनता दरबार, बिना किसी होमवर्क के बुरी तरह असफल हो गया और केजरीवाल को पिछले पैरों पर खड़ा होने को मजबूर होना पड़ा. असफलता से खिसियाये केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर सबसे बड़ा सवाल तब उठा जब खेड़की एक्सटेंसन में उनके मंत्री सोमनाथ भारती कानून के उल्लंघन, बदजुबानी, फर्जीवाड़े, मीडिया से बदतमीजी जैसे कई आरोपों में सीधे-सीधे घिर गए. अनुभव, यहीं तो काम आता है, जो केजरीवाल और उनकी टीम के पास बिलकुल भी नहीं था. उनके बचाव में केजरीवाल ने खुद की प्रतिष्ठा और पूरी पार्टी की साख को दाव पर लगा दिया और वह तो भला हो पूर्व सेफोलॉजिस्ट योगेन्द्र यादव की समझ का, जिन्होंने उप-राज्यपाल से मिलकर और उनके हाथ-पावं पड़कर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कराकर दो पुलिस वालों को छुट्टी पर भिजवाने की बात मना ली. अन्यथा आम आदमी पार्टी की मट्टी पलीत होने की शुरुआत केजरीवाल ने अराजकता की तरफ बढ़कर खुद ही कर दी थी. खैर, झटका लगा उन्हें इन वाकयों से और वह संभल-संभल कर चलने लगे और अपनी अकड़ को ढीली करते हुए बगैर ना-नुकर किये २६ जनवरी की परेड में चुपचाप नियमों के अनुसार बैठे और कोई हंगामा नहीं किया, क्योंकि वह समझ चुके थे, एक-दो गलतियां उनको अर्श से फर्श पर पहुंचाने को काफी होती. 'आप' की ऐसी दुर्गति देखकर उनको बड़े और घाघ समर्थकों के कान खड़े हो गए, और उन्होंने कुछ केजरीवाल को भी समझाया और खुद केजरीवाल के समर्थन में खुलकर आये भी. दिल्ली पुलिस के बढे हुए उत्साह को कुछ विशेष और बड़े मीडिया समूहों ने एक के बाद एक स्टिंग कर पस्त कर दिया, तो दूसरी तरफ केजरीवाल और उनकी टीम ने भी सावधानी से कदम बढ़ाने का फैसला किया. बड़बोले मंत्रियों और विधायकों को बोलने से रोका गया तो शोएब इकबाल और रामबीर शौक़ीन जैसे आजाद विधायकों से समझौते की राह (वही पुरानी राजनीति का रास्ता) भी निकाली गयी.

भारतीय जनता पार्टी के हमले को कुंद करने के लिए केजरीवाल ने अपना मास्टरस्ट्रोक भी चल दिया, और वह था शीला दीक्षित पर कारर्वाई की शुरुआत करने का. अब पुराने राजनीतिक नियम तो यही कहते हैं कि केजरीवाल कारर्वाई शुरू करके विपक्ष को रोकेंगे, वहीं कारर्वाई और जांच का लगातार एक्सटेंसन करके कांग्रेस को भी संतुष्ट करेंगे. क्योंकि यदि उनको राजनीति करनी है, तो उसके नियम तो यही कहते हैं कि शीला पर कारर्वाई का दिखावा जरूर हो, लेकिन या तो इसकी जांच आगे बढ़ती रहे अथवा उनको क्लीनचिट मिल जाए. क्योंकि शीला के इतनी जल्दी जेल जाने का मतलब कांग्रेस के लिए बेहद खतरनाक होगा. और कांग्रेस अंदरखाने से अपने एक या दो विधायकों को निर्देश दे सकती है कि वह पार्टी से बगावत करके सरकार गिरा दें. आखिर राजनीति की सबसे पुरानी प्रोफ़ेसर वही तो है. खैर, केजरीवाल की मंशा क्या है और वह अपनी मंशा को राजनीति के साथ कैसे मिला पाते हैं, इसे देखने में अभी वक्त लग सकता है, लेकिन शीला के खिलाफ जांच शुरू करके वह अपना सबसे मजबूत दांव तो चल ही चुके हैं. दिलचस्प होगा, इस नए महत्वकांक्षी लोगों के समूह का राजनीतिक नजरिये से आंकलन करना. आप भी अपनी कमर कस लीजिये, बहुत कुछ देखना और सीखना जो है जनता को. क्योंकि जब तक जनता राजनीति नहीं सीखेगी, समझेगी तब तक यह नेता उसे बेवक़ूफ़ बनाते ही रहेंगे. केजरीवाल की शायद यही एक अच्छाई खुल कर सामने आयी है कि जनता को उनसे काफी कुछ सीधे-सीधे सिखने को मिल रहा है. और यही सीखकर वह २०१४ में सिखाने का दावा भी करेगी.

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