Sunday 2 November 2014

काला धन, शेषनाग और प्रधान सेवक! - Black Money and Prime Minister Modi

वह री खूबसूरती! बड़ा सुखद आश्चर्य होता है राजनेताओं की चतुराई देखकर. हंसी आती है जनता की बेबशी पर, और लोकतंत्र का व्यवसाय करने वाले ठेकेदारों पर क्रोध का आना जाना तो लगा ही रहता है. जिस काले धन के मुद्दे को योग ऋषि से लेकर विपक्षी पार्टी के भीष्म पितामह ने जोर शोर से उठाया, उसे लपक कर भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी पांच साल के लिए सुरक्षित कर ली. इस बात पर लोग खुश भी हुए और होना भी चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में जनता को बड़े ही भारतीय अंदाज में बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश की. न सिर्फ बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश की बल्कि बेहद खूबसूरती से इस काले धन के मुद्दे को डस्टबिन में भी पहुंचा दिया. जरा उनके शब्दों पर गौर कीजिये- देश के बाहर गया गरीबों का कालाधन वापस जरूर आएगा. आगे बोलते हुए श्री मोदी ने कहा, "जहां तक काले धन का सवाल है, आप मुझ पर भरोसा कीजिये, यह मेरे लिए आर्टिकल ऑफ़ फेथ है, मेरे देशवासियों, भारत के गरीब का पैसा जो बाहर गया वो पाई पाई वापस आएगी." इसके आगे बोलते हुए पीएम ने पूरे मुद्दे पर बेहद खूबसूरती से पानी फेरते हुए कहा कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है, इसके बारे में किसी को पता नहीं है. वाह जी! तो यहाँ प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इन्हीं श्री मोदी ने चुनावों के पहले अपने चुनावी भाषणों में कहा था कि वह काल धन लाएंगे और काले धन की मात्रा इतनी ज्यादा है कि हर भारतीय को घर बैठे १५ - १५ लाख रूपये मिल जायेंगे. लेकिन इस मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके, बल्कि उन्होंने कहा, "आज तक किसी को पता नहीं है, ना मुझे, ना सरकार को, ना आपको कि कितना धन देश के बाहर है. बस समझदार को इशारा ही काफी है, बुद्धिजीवी तो उनके इस इशारे को समझ ही गए होंगे. यहाँ भी इन बड़बोले प्रधानमंत्री की बात रुकी नहीं, बल्कि आगे उन्होंने काले धन की मात्रा निर्धारित करते हुए कहा कि विदेशों में काल धन चाहे ५ रूपये हों, ५ सौ हों, ५ हजार हों या .... !!

modi-with-hatखैर, विपक्षी नेता भी कौन सा मुंह दिखाने लायक हैं. उन्होंने भी प्रधानमंत्री को झूठा करार देते हुए जनता से सार्वजनिक माफ़ी मांगने की वकालत करने में देरी नहीं की. लेकिन इस बीच काले धन के मसले पर जिस प्रकार हो हल्ला मचा है, यह शायद भारत में सबसे चर्चित शब्द बन गया है. यह हो-हल्ला कोई आज नहीं मच रहा है, बल्कि पिछले कई सालों से इसे बेहद बारीकी से सुलगाया गया है. इसके तमाम आंकड़ों पर, काले धनिकों पर खूब चर्चाएं हुईं हैं, सरकारें तक बदल गयीं हैं, यदि कुछ नहीं बदला है तो वह है इसकी असलियत और इसका उद्गम-स्थल. कोई मुर्ख ही होगा, जो यह दावा करेगा कि काला धन उत्पन्न होने की दशा और दिशा में रंच मात्र भी परिवर्तन आया है. सब कुछ यथावत है. हाँ! काले धन पर हुए तमाम आन्दोलनों, अभियानों में अरबों रूपयों का काला धन जरूर खप गया है, इसकी जांच पर तमाम आयोगों ने खूब लीपा-पोती की है, अखबार के तमाम पेज इस मुद्दे पर खूब रंगे गए हैं, लेकिन मुद्दा जस का तस. वस्तुतः काला धन, बड़े व्यवसाय, भ्रष्टाचार, मनी लांड्रिंग, चुनाव-खर्च, सट्टेबाजी, ब्लैकमेलिंग, लाल-फीताशाही इत्यादि इतने घुले मिले शब्द हैं, जिनके निहितार्थ एक-दुसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं. और इन शब्दों की महिमा तो देखिये कि खुद को देश का प्रधान सेवक कहने वाले, लेकिन अपने ही दल में हिटलर की तरह व्यवहार करने वाले व्यक्ति ने भी आज हार स्वीकार कर ली, कि मुझे भी कुछ नहीं पता. वाह रे काला धन! तेरी महिमा अपरम्पार है. हमारे देश के सुपरमैन सरीखे नेता, जो उत्तराखंड की त्रासदी से कई हजार गुजरातियों को बचा ले जाते हैं, विश्व के सबसे बड़े दादा बराक ओबामा से 'केम छो' बुलवा लेते हैं. अपनी पार्टी के भीष्म को नाक रगड़ने पर मजबूर कर देते हैं, कांग्रेस का पूरे देश से सफाया करने के अभियान को दौड़ा देते हैं, लेकिन तेरे आगे वह भी नतमस्तक हैं. हे काले धन! कहीं तू कालिया नाग तो नहीं है, या फिर शेष नाग, जिस पर सम्पूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है. शायद हाँ! तू शेषनाग ही है शायद, और कम से कम भारतीय व्यवस्था तो तुझ पर ही टिकी है, नहीं तो अपने प्रधान सेवक तुझसे भी अपनी सेवा जरूर करा लेते. तेरी सम्पूर्ण महिमा का वर्णन तो मैं नहीं कर सकता, लेकिन तेरी एकाध महिमा का दर्शन मुझे भी हुआ है, उस का वर्णन मैं करने की हिमाकत कर रहा हूँ, बुरा मत मानना. Read Books on "Corruption"
संयोग कहिया या दुर्योग, दिल्ली में अखबार उद्योग से कई वर्षों तक जुड़ा रहा हूँ. अभी भी कई पत्रकार मित्र हैं, जिनसे बात होती रहती है. लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले 'मीडिया उद्योग' की सच्चाई आप सुनेंगे तो आप इस विदेशों में जमा काले धन को एक पल के लिए भूल जायेंगे. एक तरफ अधिकांश छोटे अखबार, छोटे लोगों को पित्त पत्रकारिता के माध्यम से अपना शिकार बनाते हैं, तो दूसरी ओर बड़े मीडिया घराने पूरे देश में टैक्स चोरी का सबसे बड़ा केंद्र बन गए हैं. बड़े उद्योगपतियों, व्यापारियों की मदद करके यह उद्योग काला धन उत्पन्न करने का सबसे बड़ा ज्ञात श्रोत है, और यह बात कोई छिपी बात नहीं है. अधिकांश लोग इस तथ्य से अवगत भी हैं. और सिर्फ मीडिया घराने ही क्यों, तमाम प्रतिष्ठित इवेंट मैनेजर, ढोंगी प्रवचनकर्ता, एनजीओ का रेट काले धन उद्योग से बेहद गहराई से जुड़ा हुआ है. देश के प्रधानमंत्री को बेशक यह hindi-library-books-pustakalay-bookसच्चाइयाँ पता नहीं हों, लेकिन उनके ही गृह राज्य गुजरात के एक बड़े धार्मिक सम्प्रदाय द्वारा काले धन के लेन-देन का खुला खेल किस प्रकार चलता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है. उस सम्प्रदाय के मंदिर पूरे विश्व में हैं, और आप उनको यहाँ भारत में दान दीजिये फिर कुछ प्रतिशत काटकर वह रकम आप विदेश में उनकी ही संस्था से ले लीजिये. जो टैक्स सरकार के खाते में जाना चाहिए, उसे इस प्रकार के बड़े मगरमच्छ निगल जाते हैं, इस बात को कौन नहीं जानता है. प्रधानमंत्री जी, आपको सच में पता नहीं है या आप जान समझकर आँखें बंद कर लेना चाहते हैं, यह तो आप ही जानें लेकिन आप यह जान लीजिये कि देश की जिस आम जनता ने आपको अपने सर आँखों पर बिठाया है, वह इतनी मुर्ख भी नहीं है. आज कई उद्योगपतियों के कार्यक्रमों में आप जाते हैं और वह बड़ी सहजता से, तस्वीरों में, आपकी गरिमा के खिलाफ आपकी पीठ पर हाथ रख देते हैं, वह देश की असली टैक्सपेयर नहीं है. टैक्सपेयर तो वह जनता है, जिन्हें यह सभी उद्योगपति 'कंज्यूमर' कह कर इंसान होने का हक़ छीन लेते हैं. साबुन, तेल, आटा, चावल, सब्जी, पेट्रोल सहित रोजमर्रा की चीजों पर भरी टैक्स लगाकर देश की तिजोरी भरती है, और उस तिजोरी के दम पर ही देश चलता है. यह बड़े लोग तो सिर्फ काले धन जमा करते हैं. बेशक आप न मानें, लेकिन आप जानते जरूर हैं. यह ठीक है कि राजनीति की तमाम मजबूरियाँ होती हैं, लेकिन इस भ्रष्टाचार की जड़ को सुखाने के लिए आपने कुछ भी तो नहीं किया है अब तक. एक व्यक्ति पर हाथ नहीं डाला, एक व्यक्ति जेल में नहीं गया, एक रूपया तक नहीं आया. टैक्स चोरी की एक ठोस कवायद नहीं हुई, फिर किस मुंह से आप खुद को जनता का प्रधान सेवक कहते हैं, यह आपको स्वयं सोचना चाहिए. हाँ! जनता का ध्यान भटकाने में आपका कोई जवाब नहीं, कभी सफाई के नाम पर तो कभी काले धन के नाम पर. हे जननायक! आप यह भी तो सोचिये कि गंदगी फैलती क्यों है, काला धन उत्पन्न कैसे होता है? क्यों उत्पन्न होता है. कुछ तो कीजिये! अब तक जो हुआ सो हुआ, अब काला धन न बने, भ्रष्टाचार न हो, उसको तो रोकने की कवायद शुरू कीजिये, नहीं तो हमारे गुरुवर कहते हैं कि इतिहास के किसी कूड़ेदान में जाने के लिए अपनी मनः स्थिति भी तैयार कर लीजिये. फिर छोड़ दीजिये, जननायक का तमगा, जनसेवक का तमगा और गर्व से कहिये कि आप भी 'उनकी' ही भांति शासक हैं, नेता हैं. वही नेता, जिनके मुंह भी देशवासी सुबह उठकर देखना पसंद नहीं करते हैं. आप समझ रहे हैं न!

(लेखक को अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं)

शुभकामनाओं सहित,
-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

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