हमारा नंबर चूँकि 21 था, इसलिए हमसे पहले के 19 लोगों को डॉक्टर साहब देख चुके थे, इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड पर हमारी दृष्टि टिकी थी कि अचानक डॉक्टर साहब गोल हो गए और आधे घंटे के बाद पधारे. बाद में पता चला कि 'बिचारे' किसी इमरजेंसी केस को देखने 'आपरेशन-थियेटर' में गए थे. फिर आते ही 20 नंबर के मरीज को देखते ही उस पर भड़क उठे, मैं आपरेशन नहीं करूँगा, तुमसे रिपोर्ट मंगाई थी... .!! मरीज तो मरीज, उसके चक्कर में डॉक्टर साहब भी चिड़चिड़े हो गए. खैर, हमारा नंबर आया, हमारी तरफ दृष्टि उठकर उन्होंने एक बार देखा और हमारा कार्ड देखने लगे. हमारी माताजी को पहले से निर्देश था कि वह ब्लड-प्रेसर का चार्ट बनाकर लाएं, वह अपने झोले से वह चार्ट निकाल ही रही थीं कि डॉक्टर साहब उसे देखे बिना बोले कि माताजी का हार्ट कमजोर है, दवा ज़िन्दगी भर चलेगी. माताजी चूँकि साड़ी पहनती हैं, अतः स्टील की थाली वाली, मरीज-कुर्सी से उठकर अपना पल्लू ठीक करने लगीं, तब तक अटेंडेंट ने उनको लगभग धक्का देते हुए बोला कि बाहर निकल कर साड़ी ठीक कीजियेगा, दूसरों को आने दीजिये. दरवाजे के बाहर किसी पुराने सिनेमा की खिड़की जैसा दृश्य था, वह भी ऐसा जैसे 'ब्लैक' में टिकटें बिक रही हों. क्या करता, बचते-बचाते माता जी को बाहर निकालकर घर लाया.
इस बीच सुबह छः बजे के बाद हमें 'एम्स' परिसर को भी देखने का अवसर मिला, जहाँ कुछ एरिया साफ़-सुथरे भी हैं, लेकिन फिर भी जगह-जगह कूड़ा फैले देखना अपने आप में एक दुःखद अनुभव था. कुछ टॉयलेट की हालत इतनी बुरी थी (इस ब्लॉग में फोटो संलग्न हैं), जो किसी चौराहे पर पब्लिक टॉयलेट की याद ताजा कर रही थी. आज जब पूरा देश साफ़-सफाई के अभियान में 'फोटो-खिंचाने' पर जोर दे रहा है, बड़े वैश्विक नेता बन चुके महानुभाव हमारे प्रधानमंत्री हैं, बढ़िया और ईमानदार माने जाने वाले डॉक्टर हमारे स्वास्थ्य मंत्री हैं, ऐसे में दिल्ली जैसे शहर के केंद्र में 'एम्स' जैसे परिसरों की फोटो 'ट्विटर' पर लोग क्यों नहीं अपलोड कर रहे हैं, यह बड़ा अजीब था. दुनिया भर में सफाई का दिखावा करने वाले नेता, अभिनेता, अधिकारी कहाँ हैं. हमारे गुरुवर, जो राष्ट्र-किंकर पत्रिका के यशस्वी संपादक भी हैं, उनका एक लेख है "सफाई अभियान नहीं, बल्कि हमारी आदत होनी चाहिए". इस लेख में दिखावे पर उन्होंने कड़ा प्रहार किया है. गन्दगी के दृश्य को जब मैं अपने कैमरे में कैद कर रहा था तो हमारी बुजुर्ग माताजी ने इस सन्दर्भ में हमसे पूछा, तो मैं आदतन प्रशासन की बुराई करने लगा, तो उन्होंने सबसे पहले मुझे टोका कि तुम फोटो तो खिंच रहे हो, लेकिन तुमने उस गन्दगी पर थूका क्यों? फिर उन्होंने मुझे दिन भर जनता द्वारा फैलाई जा रही गन्दगी की तरफ ध्यान दिलाया. यहाँ तक कि प्रतीक्षालय में कुर्सियों के नीचे बिस्किट के पैकेट, टॉफी के रैपर, संतरे के छिलके पड़े हुए थे (ब्लॉग में फोटो संलग्न हैं). मैं शर्मिंदा था, क्योंकि दूसरों की तरह हम भी तो नागरिक ही हैं.
हमारे देश में, जहाँ 'पहला सुख निरोगी काया' कहा जाता है और जहाँ महात्मा गांधी जैसे वैश्विक नेता ने 'स्वच्छता' को स्वतंत्रता से भी जरूरी बताया है, वहां के तथाकथित सबसे सुदृढ़ मेडिकल इंस्टीट्यूट की इस हालत ने हमारी व्यवस्था की परत-दर-परत उधेड़ डाली. फिर अखबारों में स्वास्थ्य को लेकर तमाम वह आंकड़े सच नजर आने लगे, जिसमें भ्रूण-हत्या, नकली दवाइयों का कारोबार, मनुष्यों के अंगों का अवैध व्यापार, हॉस्पिटल्स के घोटाले, डॉक्टरों की भारी कमी, आपातकाल में मरने वाले मरीजों की भारी संख्या का ज़िक्र होता हैं. फिर वह सारे अभियान भी दिखावा प्रतीत लगने लगे, जिसमें भारत की छवि किसी महंगे 'कुर्ते' की तरह प्रदर्शित किया जाता हैं, लाखों के चश्मे पहनकर देश की जनता को सुखी देखा जाता हैं, नौकरशाहों की चापलूसी में पड़कर देश की खुशहाली का अंदाजा लगाया जाता हैं. जरूरत फिर उसी 'निरोगी काया' के मन्त्र को सार्थक करने की है, और यह किसी फोटो-खिंचाउ अभियान से नहीं होगा, बल्कि इसे हमें अपनी आदत में शुमार करना होगा. यदि देश के भाग्य विधाता और देशवासी इस तथ्य को समझ पाएंगे तो ही हम सफाई, स्वच्छता और स्वास्थ्य के मामले में 'तीसरी दुनिया के देश' की श्रेणी से बाहर निकल पाएंगे और गर्व से उस वैदिक मंत्र को सार्थकता से दुहरा पाएंगे, जो कहता है -
"सर्वे सुखिनः भवन्तु, सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत् |"
शुभकामनाओं सहित,
-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली. (Article on Health is Wealth by Mithilesh, Real analysis of Medical Services in India)
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