Friday 21 November 2014

अनाथों का नाथ बनें; सीखें बिगड़ैल से... Orphan, Orphanages and Civil Society!

कई बार लोग, जिन्हें बिगड़ैल, बद्तमीज और ऐसी ही अन्य संज्ञाओं से नवाजते हैं, वह दुनिया को कुछ ऐसी सीख दे जाते हैं, जिसकी मिसाल ढूंढें नहीं मिलती. बात इस बार मायानगरी से है. एक तरफ हिंदी फिल्में पूरे विश्व में भारत की एक खास पहचान बना चुकी हैं, वहीं देश में जिन दो चीजों के प्रति, गैर-परंपरागत रूप से सर्वाधिक आकर्षण है, वह निश्चित रूप से क्रिकेट और बॉलीवुड ही है. आज कल के शहरी और देहाती दोनों प्रकार के अधिकांश युवक या तो बड़े क्रिकेटर बनने का सपना देखते हैं अथवा किसी एक्टिंग क्लास में हीरो बनने का प्रयास दिख जाना सामान्य बात है. क्रिकेट में इन युवकों के आदर्श सचिन तेंदुलकर होते हैं, वहीं हीरोगिरी दिखाने के शौकीनों के सलमान खान. जी हाँ! खबर भी इन्हीं साहिबान की है. माचो मैन, मोस्ट एलिजिबल बैचलर, लेडी-किलर, दोस्तों का दोस्त, दुश्मनों का दुश्मन इत्यादि तमाम उपनाम इन्हें इस मायानगरी से मिले हैं. इनके कार्यों में तमाम हिट फिल्मों के अतिरिक्त किसी को भी थप्पड़ लगा देना, महिलाओं की बेइज्जती करना, गैर-कानूनी रूप से काले हिरणों का शिकार करना जैसे तमाम विवाद शामिल रहे हैं. आगे परिचय बढ़ाते हुए इनके बारे, इनकी समझ के बारे में राजनीति के लोग भी लोहा मानते हैं. आम चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी के साथ इनके पतंग उड़ाने को लेकर कड़ा विवाद उत्पन्न हो गया था, लेकिन विवाद और सलमान खान एक दुसरे के पूरक कहे ही जाते हैं, तो इसमें कोई नयी बात है नहीं.

पिछले दिनों से सलमान खान लगातार मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं और संयोग से इसका कारण सकारात्मक है. फूटपाथ पर मरी हुई माँ के पास एक छः महीने की बच्ची रो रही थी, जिसे सलमान खान के परिवार ने सहारा दिया. बिना इमोशनल सीन में घुसे आप इस बात पर भी गौर कीजिये कि इस बच्ची को पूरी कानूनी प्रक्रिया के बाद गोद लिया गया और उसके लालन-पालन में सलमान खान ने उसी सोशल स्टेटस को अपनाया, जो शायद उनके अपने परिवार के बच्चों को मिला है. दुनिया ने उनकी शादी की रस्म को देखा ही, समझा ही. इस बारे में अख़बारों में, चैनलों में खूब बातें कही गयीं, सुनीं गयीं, लेकिन कहीं भी इसके मानवीय पहलू पर चर्चा सुनने का अवसर नहीं मिला. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिये कि कुछ लोग इस पूरे प्रकरण की चर्चा भाग्य के रूप में करते मिले कि उस फूटपाथ की लड़की की कितनी सुन्दर किस्मत है कि आज वह लाखों की गाड़ी पर चल रही है, करोड़ों के महलों में रह रही है. पूरी दुनिया की अजब हालत हो गयी है कि वह हर रिश्ते को अर्थ के तराजू में लाकर खड़ा कर देती है. उसके लिए संवेदना का मोल भी चंद सिक्के हो गए हैं. इस अर्थहीन, अंतहीन, निरर्थक, भाग्यवादी और लालची चर्चा ने इस पूरे उदाहरण को बहुत ही गलत तरीके से पेश किया है. नचनिया कह कर बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों के बीच अपमानित किया जाने वाला बॉलीवुड और इसके बिगड़ैल कहे जाने वाले सलमान खान ने अपने इस कृत्य से बुद्धिजीवियों के गाल पर करारा तमाचा जड़ा है. थप्पड़ लगाने का अभ्यास तो उनको पहले ही था, लेकिन उनका यह तमाचा पूरे समाज पर पड़ा है. समाज के ठेकेदारों को यह बात समझ लेनी चाहिए.

More-books-click-here२०१३ में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार भारतवर्ष में २० लाख बच्चे अनाथ हैं. कमोबेश, देश के सरकारी कर्मचारियों की संख्या भी इतनी ही है. राजनेता, अभिनेता, व्यापारी इत्यादि सक्षम लोगों का वर्ग छोड़ भी दें तो यह आंकड़ा शर्मिंदा करने वाला ही है. देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जो सलमान खान की तरह एक-एक हाथ बढ़ाएं तो अनाथ होने का अभिशाप देश से २४ घंटे के भीतर समाप्त हो सकता है. लेकिन नहीं! यह हमारी जिम्मेवारी नहीं है, यह तो सरकार करेगी! किसी 'स्वच्छता-अभियान', 'आदर्श गावं अभियान' की तरह 'अनाथ-अभियान' चलाएगी, फिर सभी ५४३ सांसद एक-एक बच्चे को गोद लेकर फोटो खिंचायेंगे और बाद में उन लड़कों का भी पता नहीं चलेगा. एक और वाकया याद आ रहा है. एक दंपत्ति हैं, ईश्वर ने उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण किया है, लेकिन बिचारे संतानसुख से वंचित हैं वह. कभी उस दंपत्ति के मन में भी किसी को गोद लेने की इच्छा जगी होगी, तो वह अपने से छोटी जाति के गरीब बच्चे को शहर लाये. पढ़ाया लिखाया भी बिचारे को, लेकिन जब वह जवान हुआ तो उसके साथ इसलिए रिश्ता खत्म कर दिया, कि वह उनकी संपत्ति में हिस्सेदार न बन जाए. मतलब साफ़ है, उन्होंने उस बच्चे को कभी अपनाया ही नहीं, बल्कि दूसरी भाषा में कहा जाय तो उन्होंने उसे नौकर ही समझा. यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं है, बल्कि आपको गोद लेने के नाम पर ऐसे तमाम वाकये नजर आ जायेंगे, जहाँ हमारा सभ्य समाज इनका शोषण करने में जरा भी कोताही नहीं करता है.

अनाथालय के नाम पर बच्चों से नशीली दवाओं का कारोबार कराना, भीख मांगने के लिए देश के बच्चों को विवश करना, उनके शारीरिक अंगों का व्यापार करना इत्यादि कुकृत्य बेहद आम हैं. शर्म आनी चाहिए, हमें खुद को सभ्य कहते हुए. हमसे अच्छा तो वह बिगड़ैल बच्चा है, जो किसी के भी गाल पर थप्पड़ लगा देता है, लेकिन किसी की आत्मा, जिस पर ज़िन्दगी भर थप्पड़ पड़ते, उसको उसने बचा लिया. एक की ही सही! आपसे भी तो एक की ही जिम्मेवारी लेने की अपेक्षा करता है देश का अनाथ! आप भी तो उसी परमात्मा के अंश हैं न, उसी नाथ की कृपादृष्टि से धनवान बने हैं, बड़े बने हैं, योग्यता हासिल की है, फिर क्या विवशता है इन बेसहारों के सर को छाँव देने में. स्वयं विचार करें !

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Orphan, Orphanages and Civil Society, article by Mithilesh in Hindi, related with Salman and Arpita Khan relations.

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