Wednesday 19 November 2014

ट्रेन का टाइम ... Train Timing, Social Poem by Mithilesh

बेटा, आज तो रुक जा
अभी तो आया है, अब जा रहा है
माँ बोलीं
पिछली बार भी तू न रुका था
तब मेरा मन खूब दुखा था

उन्हें लगा, बुरा न लग जाए
बोलीं-
तुझे भी कितना काम है,
एक पल ना आराम है
और फिर बहु भी शहर में अकेली है
पोता बदमाश, पोती अलबेली है

अरे सुन-
उसको भी तो गाँव ले आ
उसकी जड़ों से उसको मिला
उसके दादा उसकी फ़ोटो सहलाते हैं
मिलने को उससे रोज तड़प जाते हैं

कहते हैं-
छोटी बहु भी घर नहीं आयी
मायके से वापसी की टिकट कटवाई
देख न पाया छोटे पोते को
कहते हुए, आँखें डबडबाई

थोड़े अमरुद ले जा,
निम्बू के आचार बहू बना देगी
ये सरसों का शुद्ध तेल है,
पोते की मालिश वह करेगी

सूरज ढल रहा था
मैं माँ को सुन रहा था,
जी किया सुनता जाऊं
लेकिन-
ट्रेन का टाइम हो रहा था।
ट्रेन का टाइम हो रहा था।

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Train Timing, Social Poem by Mithilesh

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