Saturday 27 August 2011

जन-आन्दोलन के निहितार्थ, थोडा आगे सोचें - Anna Movement and its meaning, August Revolution

by on 18:08
सच्चाई को नमन || राष्ट्र को नमन !! राष्ट्र की जनता को नमन !! अन्ना हजारे को नमन !! अन्ना हजारे की टीम को नमन !!
दोस्तों,
“कुरुक्षेत्र फिल्म में एक गरीब लड़की का बलात्कार मुख्यमंत्री के बेटे द्वारा करने पर ईमानदार पुलिस आफिसर केस दर्ज करके कड़ी कार्रवाई करता है, थोड़े राजनीतिक सपोर्ट से केस को बल मिलता है और मुख्यमंत्री समझौते की कोशिश करता दीखता है, माफ़ी मांगता दीखता है और अपने बेटे को भी माफ़ी मांगने को कहता है | खैर, यह तो सामान्य बात हो गयी, मै जिस मुख्य बात कि तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हु, वह इस प्रकार है-
” जब मुख्यमंत्री का बेटा माफ़ी मांगता है तो उसके शब्द कुछ ऐसे है – “मै माफ़ी मांगता हु इन्स्पेक्टर, अगली बार से बलात्कार नहीं करूँगा| छोड़ न यार, कुछ ले-देकर ख़तम कर मामला, नहीं तो परिणाम भुगतने को तैयार रह″ !!

जरा गौर करें इस माफ़ी पर, इस माफ़ी के शब्दों पर | ऐसा नहीं है कि अन्ना हजारे से पहले नेताओं ने कोशिश नहीं कि पर वह इन्ही शब्दों में फंसकर रह जाते हैं और जन-भावनाओ के साथ न्याय नहीं कर पाते| न्याय से मेरा अभिप्राय है जनता के सम्मान की सचमुच रक्षा, हकीकत में अभिव्यक्ति| नेताओं ने पहले घोटाले किये, जनता को नौकर समझा, इनको घुटनों पर आकर माफ़ी मांगनी ही चाहिए थी, और वह भी ऐसी माफ़ी की उसके अलावा कोई रास्ता न हो, और जनता ताकतवर की तरफ माफ़ करे न की कमजोर की तरह| इसलिए भी यह जीत यादगार बन जाती है, क्योंकि यह जीत हमें जीत की ही तरह मिली है, किसी ने दी नहीं है यह जीत हमने लड़कर अपने बल से हासिल की है| कमजोरो की तरह नहीं मिली हमें यह जीत, इसी बात पर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक पंक्ति याद आती है -

“क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल(विष) हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो |”

जनता ने इस बार अन्ना हजारे के माध्यम से इस पंक्ति को चरितार्थ करते हुए जन-प्रतिनिधियों को चेतावनी देकर माफ़ी दी है कि जाओ और अपना काम ठीक से करो नहीं तो ….

लोकपाल तो सिर्फ एक निमित्त-मात्र है, और असली जीत भी नहीं है, असली जीत तो यह है की जनता ने ताकतवर की तरह जन-प्रतिनिधियों को माफ़ किया है और राजनीति More-books-click-hereके अलावा बिजनेस, मनोरंजन, आर्थिक इत्यादी सभी क्षेत्रो के प्रतिनिधियों को चेतावनी दी है कि सुधर जाओ, अन्यथा अपने अंजाम के जिम्मेवार खुद ही होगे तुम| और लोकतंत्र में निश्चय ही सभी को इस चेतावनी-सन्देश को गंभीरता से लेना ही होगा | महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा कि टिपण्णी इस बारे में उल्लेखनीय है-

”रामलीला मैदान में जो कुछ हो रहा है, वह बड़े बदलाव का प्रतीक है। लोग अब न केवल राजनेताओं, बल्कि उद्योगपतियों से भी जवाबदेही चाहते हैं।”

जो समझदार है, इस चेतावनी को गंभीरता से लेगा ही, लालू प्रसाद यादव जैसे जन-प्रतिनिधि सब कुछ समझते हुए भी इसका मखौल ही उड़ायेंगे, क्योंकि जनता ने उनको नकार दिया है शायद उनको आलाकमान से कुछ हासिल हो जाये |

कुछ और भी है चर्चा के लिए, जो शायद राजनीति कि समझ को ब्याख्यायित करें, आम जनता के लिए ये बहुत ही जरूरी है, कृपया देखें इसे -

कुछ जन-प्रतिनिधि तो कोशिश ही नहीं करते मुद्दे को समझने को और अपने हित साधने के अलावा उनके पास कोई दूसरा मसौदा नहीं पाया जाता है, जैसे कपिल सिब्बल, अग्निवेश (मै स्वामी कहना नहीं चाहूँगा ऐसे व्यक्ति को) |

कुछ समझ तो जाते हैं पर उनके अपने स्वार्थ होते है जिसके कारण वो मुद्दे को भटकाने कि पुरजोर कोशिश करते है | लालू प्रसाद कहते है कि वो गावं से आयें है, सब समझते है, निश्चित ही किसी को शक नहीं है उनकी जन-समझ पर, परन्तु इसका क्या करें कि “बिहार में राजनैतिक जमीन उनको दिख नहीं रही है और कांग्रेस का अंध-भक्त होने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है” | अपने १५-वर्ष के शाशन के दौरान उन्होंने बिहार कि जनता को न सिर्फ भारत में अपितु विश्व में पहचान दिलाई| वह यदि मुर्ख होते या हवाई नेता होते तो शायद दिल को संतोष होता, लेकिन वो जे.पी. आन्दोलन से निकले हुए जन-नेता थे और जन शब्द को उन्होंने अपनी जेब (पाकेट) से ज्यादा कुछ नहीं समझा | ऐसे ब्यक्ति राजनैतिक कलंक होते है, और ऐसों को राजनैतिक-अपराधी घोषित करने का विधेयक आना चाहिए | इसी कड़ी में माननीय अमर सिंह ‘ब्रोकर’ , राजा दिग्विजय सिंह इत्यादी का नाम ससम्मान लिया जा सकता है|

Buy-Related-Subject-Book-beतीसरी जमात राजनैतिक-मूर्खों की होती है, जो जनता की शक्ति में अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा होने का माध्यम देखते हैं| इस कड़ी में मै जिसका नाम लूँगा शायद आप-सब के गुस्से का शिकार भी होना पड़े, पर आज मन मान नहीं रहा है और कलम चलती ही जा रही है | जी हाँ ! बाबा रामदेव जी इस कड़ी में मजबूती से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जनता उनके पास अपने दुःख-दर्द दूर करने आई थी, उसे उम्मीद थी की यह बंदा कुछ करेगा, योग के माध्यम से आस भी जगाई थी रामदेव ने| परन्तु, हाय रे राजनीति! तू फिर जीती और रामदेव होटलों में समझौते की बाट जोहते रहे| मै प्रत्येक क्षण टी.वी. पर लाइव उनकी भाव-भंगिमा देखता रहा ४ जून को, लगातार वो इस कोशिश में लगे रहे की कोई ऐसा समझौता हो जिससे की उनका कद बढ़ जाये, जनता का भला हो या नहीं, ये प्रश्न रामदेव के आन्दोलन में पीछे छूट गया था| अगला नाम आपको आश्चर्य में डालेगा, जी हाँ राहुल गाँधी जी! आज वो ज़माना पीछे छूट रहा है की सिर्फ विरासत के नाम पर भारतीय जनता आपको आँखों पर बिठा ले और हमेशा अपना भगवान बनाये रक्खे| राहुल गाँधी इस भ्रम में हैं की कुछ किसानो के घर उन्होंने भोजन कर लिया और वह ताउम्र उनका भक्त हो गया| बारीकी से देखें तो आप पाएंगे की शायद वह किसान भक्त हो भी जाए, पर उसी किसान/ गरीब का लड़का पढ़ा लिखा है और वह राहुल के भावनात्मक जाल में फंसने वाला नहीं है| राहुल जी आगे बढें हमारी शुभकामना है, पर जनता की क़द्र करना सीखना ही होगा उन्हें और राजनीति के ऊपर देश-सेवा को तरजीह देना ही होगा, ये आदेश है जनता का, रिक्वेस्ट नहीं है| मैंने सुना है की प्रियंका चाणक्य की भूमिका में है राहुल गाँधी के, पर प्रियंका इंदिरा गाँधी नहीं हैं की जन-समूह को अच्छे से समझ सकें, राहुल को अपनी समझ विकसित करनी ही होगी, दिग्विजय सिंह जैसों का मार्गदर्शन क्षणिक लाभ भले ही दिलाये पर दीर्घकालीन नुकसानदायक ही सिद्ध होगा |

जनलोकपाल के बारे में चाहे जो भी निर्णय संसद करे, पर इससे बड़ी जीत जनता को हासिल हो चुकी है| यह बात मै इसलिए कह रहा हूँ कि नेता कलाबाजी को अपना हथियार मानते है और अधिकांशतः नेता सुपिरियारिटी-काम्प्लेक्स से ग्रसित होते हैं और अपने करियर के अंतिम समय में अपनी सारी इज्ज़त/ प्रतिष्ठा खो देते है इसी कारण | अमर सिंह, लालू प्रसाद, ए.राजा, नटवर सिंह, दिग्विजय सिंह और तमाम नाम, शायद आपके आस-पास भी तमाम लोग हो ऐसे या शायद हम भी | सांसद बहुत ईमानदारी से बिल पास शायद ही करें, लेकिन उस निर्णय के पहले जो करारी चोट उनकी इगो पर होनी चाहिए, वो चोट हुई है और इससे बेहतर चोट नहीं हो सकती |

इसलिए देश अभी जश्न मनाये, क्योंकि जश्न मनाने का इससे बेहतर मौका एक देशवासी का शायद ही मिला हो, कमसे कम हमारी इस पीढ़ी को तो कतई नहीं |

दोस्तों, अहंकार की हंसी यदि न ही हंसी जाये तो बेहतर है, क्योंकि दुर्योधन पर द्रोपदी कि हंसी अभी भी मेरे कानो में गूंज रही है| लाख बुराइयों के बावजूद हमारा लोकतंत्र बहूतanna-movement-article-in-hindi-by-mithilesh-popular-article मजबूत स्थिति में है | मेरा ये लेख इस आन्दोलन की मूल भावना को उभारना है, न कि किसी को चोट पहुँचाना, जनता भी इस बात को समझे, इसी में हम सब कि गरिमा है, क्योंकि संसद और सांसद भी हम में से ही है, लोगो को राजनीति से नफ़रत नहीं होनी चाहिए,वरन राजनीति को सुद्ध करने के प्रयास होने चाहिए, अच्छे जन-प्रतिनिधिओं का चुनाव और अपने संवैधानिक अधिकारों को समझाना इसी प्रक्रिया की महत्वपूर्ण कड़ी है, क्योंकि इसके आभाव में तानाशाही कि संभावनाओं को इंकार नहीं किया जा सकता| लेकिन इन बातों को लेकर जन-प्रतिनिधि जनता को ब्लैकमेल नहीं कर सकते और लोकतंत्र को बचाने की जिम्मेवारी सर्वाधिक जन-प्रतिनिधियों की ही है, क्योंकि वह जन-प्रतिनिधि है ही इसलिए, आम जनता से बुद्धि में आगे है, इसलिए उनकी भावनाओ का ख्याल रखते हुए लोकतंत्र को यही बचाएँ | इस सन्दर्भ में मै यही कहना चाहूँगा की लोकतंत्र को सिर्फ तानाशाही का डर दिखाकर जनता को मुर्ख नहीं बनाया जा सकता| योगीराज कृष्ण का उपदेश मुझे याद आ रहा है -

‘यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत, अभित्तुथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम’


परित्राणाय साधुनां, विनाशाय च दुष्कृताम, धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे !!’


एक कडवी ब्याख्या यह भी है कि यदि ईश्वर भी आते हैं तो वह लोकतंत्र नहीं होगा, छुपे शब्दों में वह तानाशाही ही होगी| अब इन नेताओं को बहुत ही गंभीरता से सोचना होगा लोकतंत्र के बारे में क्योंकि जब-जब सच्चाई कि हार होगी भगवान तो आयेंगे ही और यदि वह आते है तो लोकतंत्र कहा होगा ? वह तो राजतन्त्र होगा| जनता का क्या है, उसके लिए वह भी ठीक, यह भी थोड़े-बहुत अंतर के साथ ठीक| तानाशाही में सर्वाधिक तकलीफ प्रतिनिधियों को ही होती है, इस बात का विशेष ख्याल रखें| आम जनता को मैंने यह कहते हुए सुना है की इससे अच्छा तो इंदिरा गाँधी की इमरजेंसी ही थी, कुछ सनकी लोग तो यहाँ तक कहते है की ‘इन भारतीय लूटेरो से अच्छा तो अंग्रेज ही थे| लोकतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए धर्म कि सुरक्षा करनी ही होगी, सच्चाई कि सुरक्षा करनी ही होगी, न्याय का शासन स्थापित करना ही होगा, तब ही लोकतंत्र कि रक्षा हो सकती है और वह लोकतंत्र ऐसा होगा कि शायद रामराज्य कि जगह हम उसका उदाहरण दें, और उसकी सर्वाधिक जिम्मेवारी सत्ता-प्रतिष्ठान की है|

-जय हिंद

Author- Mithilesh Kumar Singh (9990089080)

Mail: mithilesh2020@gmail.com

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