साथ साथ हमें चलना होगा - Art of Life
by
मिथिलेश - Mithilesh
on
17:15
चलना होगा,
साथ साथ हमें चलना होगा
स्व-अहम को छलना होगा
रूठों के पाँव में पड़ना होगा
ऊँच-नीच, भेद-भाव,
जात-पात को तजना होगा
जगना होगा
सुबह सुबह हमें जगना होगा
सूरज का स्वागत करना होगा
मन की, तन की, जीवन की
प्रकृति समझना होगा
अंधियारा होने से पहले
अपनों के साथ में होना होगा
जीवन की अंधी दौड़ है क्या
परख उसे सजगना होगा
बूढी आँखों के अनुभव को
हमें पास बैठ कर लेना होगा
विकृत होने से बचना होगा
‘रहे पास में तेरे धर्म सदा’
इस हेतु ‘ससंगत’ करना होगा.
- मिथिलेश
(पुत्र ‘आर्यांश’ के तीसरे जन्मदिवस की सुबह पर आशीष स्वरुप दो पंक्तियाँ)
३१-०८-२०१४, उत्तम नगर, नई दिल्ली
Mithilesh wrote a poem on Art of Life. The occassion is birthday of my son ‘Aaryansh’.
साथ साथ हमें चलना होगा
स्व-अहम को छलना होगा
रूठों के पाँव में पड़ना होगा
ऊँच-नीच, भेद-भाव,
जात-पात को तजना होगा
जगना होगा
सुबह सुबह हमें जगना होगा
सूरज का स्वागत करना होगा
मन की, तन की, जीवन की
प्रकृति समझना होगा
अंधियारा होने से पहले
अपनों के साथ में होना होगा
जीवन की अंधी दौड़ है क्या
परख उसे सजगना होगा
बूढी आँखों के अनुभव को
हमें पास बैठ कर लेना होगा
विकृत होने से बचना होगा
‘रहे पास में तेरे धर्म सदा’
इस हेतु ‘ससंगत’ करना होगा.
- मिथिलेश
(पुत्र ‘आर्यांश’ के तीसरे जन्मदिवस की सुबह पर आशीष स्वरुप दो पंक्तियाँ)
३१-०८-२०१४, उत्तम नगर, नई दिल्ली
Mithilesh wrote a poem on Art of Life. The occassion is birthday of my son ‘Aaryansh’.