Saturday 31 January 2015

स्वास्थ्य मंत्री की बर्खास्तगी - Health Minister dismissal, Short Story by Mithilesh!

by on 12:10

देश में नयी सरकार का गठन हो चूका था. अलग अलग मंत्रालयों के लिए उस विषय से सम्बंधित योग्य व्यक्तियों की चर्चा थी. यह पहली बार था, जब देश को आज़ाद होने के 65 साल बाद देशवासियों को वास्तविक लोकतान्त्रिक सरकार मिली थी. भारत के लोगों को सर्वाधिक ख़ुशी तब हुई, जब देश के जाने माने डॉक्टर और ईमानदार राजनेता की छवि रखने वाले डॉ.शिरीष को देश के स्वास्थ्य-मंत्री की शपथ दिलाई गयी. भारत में वैसे More-books-click-hereभी स्वास्थ्य की समस्याएं सबसे बड़ी समस्याएं मानी जाती हैं. एक छोटा सा बुखार, कब मियादी बुखार बन जाए और इलाज न हो पाने से कब वह दिमागी बुखार बन कर लाइलाज स्थिति में पहुँच जाता है, यह सम्पूर्ण भारत का बहुत आम दृश्य है. गरीब, मध्यम-वर्ग की उस वक्त सारी दुनिया वीरान हो जाती है, जब उसे पता चलता है कि उसके परिवार में किसी को कैंसर, टीवी, हृदय- रोग जैसी गंभीर बिमारी लगी है. उस परिवार की तो ज़मीन, जायदाद सहित सर्वस्व स्वाहा हो जाता है. महँगी दवाओं, नकली दवाओं, मानव-अंगों का व्यापार जैसे तमाम व्याप्त मुद्दों पर देशहित में स्पष्ट राय रखने वाले डॉ.शिरीष आम जनमानस में काफी लोकप्रिय थे. शपथ- ग्रहण के बाद नकली दवा कारोबारियों पर मंत्रीजी का दबाव बढ़ना शुरू हो गया, साथ ही दवा कारोबार की स्याह और अंजानी दुनिया उनके खिलाफ लामबंद होनी शुरू हो गयी. यही नहीं, देश भर के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर, जिन्हें जनता भगवान मानती है, अपने निजी क्लीनिकों की खातिर वह भी मंत्री जी के खिलाफ लामबंद हो गए. जनता इस टकराव का परिणाम भुगतने लगी और मंत्रिमंडल में डॉ.शिरीष की लोकप्रियता से जलने वाले राजनेता इसी अवसर की फिराक में बैठे थे. आनन- फानन में हड़तालों और बैठकों का दौर चला, प्रधानमंत्री जी के कान भरे गए और अगले दिन अख़बारों की सुर्खियां थीं- डॉ.शिरीष स्वास्थ्य मंत्रालय से बर्खास्त किये गए! देश भर के दवा कारोबारी और सरकारी अस्पताल के डॉक्टर जनता की सेवा में तन मन से जुट गए ... धन तो देश की गरीब जनता के पास ज़मीनों में गड़ा ही था!


- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

Health Minister dismissal, Short Story by Mithilesh in Hindi

Keyword:  विदाई, बरख़ास्तगी, उपेक्षा करना, पदच्युति, बरख़ास्तगी, बिदाई,  पदच्युति,  प्रत्यादेश, बर्खास्तगी,  dismissal, sack, Dismissal, Severance, walking, papers, SACK, discharge hindi article, counsellor, minister,  undersecretary, adviser, frontbencher,  amanuensis, Scribe,  allegory, fairytale,Story, anecdote , yarn , tale , story , spell , romance , recital , novel , narrative , narration , myth , fable , conte , apologue , novelette in hindi, स्वस्थ्य, आरोग्य,  आरोग्यता,  तंदुरुस्ती,  तबियत,  सेहत,  स्वास्थ्य,  मिज़ाज, की कहानी, छोटी कहानी

Health_Issues_in_India

गणतंत्र देश की शान में, भारत आये श्रीमान - Mithilesh 'Anbhigya' ki Kundaliyaa, Poem

by on 09:48

गणतंत्र देश की शान में, भारत आये श्रीमान
स्वागत को तैयार इधर, थे भारत के प्रधान
थे भारत के प्रधान, चाय हाथों से पिलाई
बातों ही बातों में, डील कई साइन कराई
उठ खड़ा हुआ उत्साह से, देश का लोकतंत्र
अंत्योदय तक पहुंचे, यही अब लक्ष्य गणतंत्र


 

देखी दुनिया ने अब, विराट ताकत भारत की
राजनीति, कूटनीति में, आँखें झुकीं शत्रु की
आँखें झुकीं शत्रु की, कुछ भी समझ न आया
राग अलापा बेसूरा, खूब शोर मचाया
कहते 'अनभिज्ञ' सही, अभी फिर मचे न शेखी
गुटबाजी से रहें दूर, चलें नहीं देखा देखी


 

रश्में थीं ख़ुशी की कई, सजी महफ़िल अनोखीgirdhar-kaviray-ki-anmol-kundaliya-buy-here
सूट पे अंकित नाम, छपा नरेंदर मोदी
छपा नरेंदर मोदी, पचा नहीं पायी जनता
लेकिन आम-ओ-ख़ास, जनता की कौन है सुनता
कहते 'अनभिज्ञ' सही, झूठी हैं तब तक कसमें
रोटी कपड़े की बात बिन, अधूरी हर एक रश्में


 

ऊँचे हों महल भले, और हों लम्बी कई कार
पर ध्यान रहे इतना, ना पनपे और बेगार
ना पनपे और बेगार, रोजी-रोजगार हो सबको
न्याय व्यवस्था चुस्त हो, दंड दे तुरत पापी को
कहते 'अनभिज्ञ' सही, देश का गाँव न रूठे
शहर के जैसे ही, उनके सपने हों ऊँचे


 

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'


Mithilesh 'Anbhigya' ki Kundaliyaa, Poem in Hindi.

obama-modi-india-visit-of-us-president

Narendra-Modi_with-golden-suit

 

Keyword: 26 january, anbhigya ki kundaliyaa, foreign policy, golden name on suit, gutbaji, kapda, kundali, makan, mithilesh ki kundaliyaa, modi suit, obama visit India, poem in hindi, poor people, roti, videsh niti, world politics

 

Markandey Katju Comment on Beauty of Kiran Bedi Shazia Ilmi

by on 01:48
Markandey Katju Comment on Beauty of Kiran Bedi Shazia Ilmi

 

सुनी आपने काटजू की टिप्पणी,
शाज़िया इल्मी उन्हें खूबसूरत लग रही हैं... अपने प्रधानमंत्री ठीक कहते हैं, भारत देश युवाओं का देश है.
दो शब्द आप भी कह डालें !!
Link to read news: http://goo.gl/FfXjqf

Markandey Katju Comment on Beauty of Kiran Bedi Shazia Ilmi, analysis in Hindi on Mithilesh Wall

Friday 30 January 2015

FIR against Kumar Vishwas by Kiran Bedi

by on 23:02
FIR against Kumar Vishwas by Kiran Bedi

 

कुमार विश्वास के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने से साफ़ है कि किरण बेदी को 'गुड़' तो खाना है, लेकिन 'गुलगुले' से परहेज है...
ऐसी छोटी-मोटी बातों पर भड़केंगी, तो जनता इसे समझेगी... और वह थाने में बेशक न बोल पाये, लेकिन मतदान केंद्र पर उसे बोलने से लोकतंत्र में कोई नहीं रोक पायेगा
अपने डर पर काबू पाइए मैडम, और ध्यान रहे, आप की छीछालेदर होगी, और निचले स्तर तक होगी ...
क्योंकि यही राजनीति है. जितनी जल्दी आप घुल जाएँगी, आप के लिए ठीक रहेगा. शुभकामनाएं !!

FIR against Kumar Vishwas by Kiran Bedi is bad.

अंतिम- पैग - Antim Paig, Short story by Mithilesh 'Anbhigya' in Hindi.

by on 22:10

एक-एक बार और डालो. मित्र-मंडली बैठी हुई थी, फार्म-हाउस पर चने-मुरमुरे के साथ चार पैग हो चुके थे. मैं, दो के बाद ही अब नहीं, और नहीं, की रट लगा रहा था, लेकिन मेरी सुनता कौन? पांचवा पैग भरा जा चूका था, और उसे देखकर मुझे पिछले ऐसे ही एक दिन की याद आ गई, जब ऐसे ही दौर के बाद मैंने ज़ोरदार उल्टियाँ कीं और यही सारे हमदर्द दोस्त हँसते रहे. यही नहीं, सुबह मेरी पत्नी से मिलकर इन सभी ने मुझे 'बेवड़ा' साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सबूत के तौर पर उल्टियों से सने हुए कपडे मेरी पत्नी को भेंट स्वरुप दिए गए. वह सब तो चले गए, लेकिन पत्नी की आँखों में आंसू छोड़ गए. मेरा बीटा उससे दिन भर पूछता रहा,
मम्मी! पापा दिन में भी क्यों सो रहे हैं?
मुझे उनके साथ खेलना है. आज तो सन्डे है!
मेरा सर भारी-भारी बना रहा और मैं शाम तक बिस्तर पर पड़ा रहा. शाम को उठा तो पत्नी चाय लेकर आयी. मैंने झेंप मिटाते हुए कहा- वो दोस्तों ने जबरदस्ती कई पैग... !!
मैंने कभी मना किया है आपको, मेरी बात काटते हुए वह बोली!
लेकिन इतना ज्यादा क्यों पी लेते हैं आप, जब बर्दाश्त नहीं होता. बच्चा बड़ा हो रहा है, क्या असर होगा उस पर.
अचानक मेरी तन्द्रा भंग हुई. फार्म-हाउस पर दोस्तों के ठहाके जारी थे.
मुझे सन्डे को बच्चे के साथ खेलना है, यह सोचकर मैंने भरा हुआ पैग उठाया और बाथरूम की तरफ चल पड़ा. मेरे दोस्त कुछ समझते उससे पहले ही वह शराब वाश-बेसिन में बहा दिया.
तबसे कभी मेरे दोस्तों ने 'अंतिम-पैग' के नाम पर ज़िद्द नहीं की. शायद उन्हें पता चल गया था कि संडे को अपने बच्चे के साथ मैं खेलता हूँ, जो मेरे लिए किसी भी 'अंतिम-पैग' से ज्यादा महत्वपूर्ण है.


- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

Antim Paig, Short story by Mithilesh 'Anbhigya' in Hindi.

Sharabi 'JOKES' ... BOOK !


sharabi-over-drunk-frustration-no-drink-drinking-is-harmful-short-story
Keyword: drunk, drunkers, family and drunkers, Liquor, liquor is harmful, over drink

Status of Arvind Kejriwal on 30 January 2015

by on 02:11
Status of Arvind Kejriwal on 30 January 2015

'केजरी- शैली' को कई लोगों की भांति मैं भी पसंद नहीं कर पाता हूँ, किन्तु उसकी 'वीरता' देखने योग्य है. दिल्ली चुनाव तो वह हार जायेगा बंदा, क्योंकि कई महारथी हैं सामने, परन्तु यदि केजरीवाल लगे रहे तो देश को कुछ सालों में एक योग्य विपक्ष जरूर मिल जायेगा...
वैसे भी देश में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत विपक्ष बनने की हालत में न हैं, न आने वाली हैं.
शुभकामनाएं !!

Status of Arvind Kejriwal on 30 January 2015

Thursday 29 January 2015

Nothing is Universal, created by Human

by on 01:06
Nothing is Universal, created by Human

मनुष्य के द्वारा कहा गया कथन 'सार्वत्रिक' नहीं हो सकता, बल्कि सापेक्षता उस कथन का आधार होती है.
- मिथिलेश

Nothing is Universal, created by Human kind. Quote by Mithilesh

Saturday 24 January 2015

परिवार - विखंडन में बुजुर्गों का कितना हिस्सा? - Role of Elders in Family Split, Joint Family Information.

by on 02:25
एक महानुभाव ने 'संयुक्त परिवार' में युवाओं की भूमिका पर तमाम प्रश्न चिन्ह दागते हुए कहा कि संयुक्त- संयुक्त कहने से ही संयुक्त परिवार नहीं चलता, उसके लिए परिवार को जोड़ने वाला गोंद बनना पड़ता है. धैर्य रखना पड़ता है, त्याग करना पड़ता है, बुजुर्गों की इज्जत करनी चाहिए इत्यादि- इत्यादि और आजकल के युवाओं में यह गुण है नहीं. एक हद तक उनकी बात ठीक भी लगी पर मैंने हिम्मत करके उनसे पूछ ही लिया कि-
हे मान्यवर! मैं अन्य युवाओं की तरह युवा ही हूँ, 30 वर्ष उम्र नहीं हुई है अभी. मेरे पास न तो अनुभवयुक्त ज्ञान है, न राजनीति की समझ, न त्याग का धैर्य है और न ही सत्ता, संपत्ति पर अधिकार. कहने के मतलब है, घर में मेरी कुछ ख़ास चल नहीं सकती. लेकिन, आप वरिष्ठों के पास इनमें से समस्त विद्याएं, अधिकार हैं. भारतीय व्यवस्था में युवाओं की आस्था भी आप पर है ही. फिर क्या कारण है कि यह व्यवस्था टूटती जा रही है और हज़ारों- हज़ार समस्याओं को जन्म दे रही है. स्वनामधन्य अधिकारीगण गण आप हैं, और दोषी युवा कैसे हैं विखंडन के लिए?

  • क्या इसका कारण सत्ता के प्रति 'आडवाणी-रुपी' लालसा नहीं है? जो 85 साल के हो जाने के बावजूद सत्ता से मोह का विखंडन नहीं कर पाती है. और परिणामस्वरूप नया नेतृत्व विकसित ही नहीं हो पाता?

  • क्या इसका कारण पुरानी पीढ़ी का धृतराष्ट्र रुपी मोह नहीं है, जो किसी मुर्ख को सत्ता का ख्वाब दिखाकर, योग्यता का दमन करता है? आज भी क्या यह सच नहीं है कि पुरानी पीढ़ी अपने ही दो पुत्रों के बीच में इस हद तक हस्तक्षेप करती है कि वह दूर भागने लगते हैं? आखिर हिन्दू-दर्शन में एक ख़ास उम्र के बाद 'सन्यास-आश्रम' का क्या यह अर्थ नहीं है कि पुरानी पीढ़ी सत्ता से दूरी बना लें और नयी पीढ़ी को उसकी योग्यतानुसार विकसित होने दें, और अपने अनुभव का बिना लिप्त हुए उनको सलाह दें ?

  • क्या इसका कारण यह नहीं है कि पुरानी पीढ़ी के वरिष्ठ बच्चे होने के नाते उनकी बातों को सुनना ही नहीं चाहते, बल्कि खुद को भगवान मानकर उनको इंसान की बजाय एक सेवक ही समझने की भूल करते हैं, जो वगैर किन्तु-परन्तु के आपकी गलत बातों को भी स्वीकार कर ले?


यहीं प्रश्न मेरा खुद जैसे युवाओं से भी है कि हम युवा अपने बच्चों के लिए किस प्रकार से आदर्श माँ - बाप बन सकते हैं? क्या संयुक्त परिवार विखंडन में बुजुर्गों का भी बड़ा रोल है? क्योंकि वह बदलते समय को स्वीकार करने को जरा भी तैयार नहीं हैं? और क्या हम भी ऐसे ही बुजुर्ग बनने वाले हैं? अपनी राय दें मित्रों!

-मिथिलेश कुमार सिंह

Role of Elders in Family Split, Joint Family Information in Hindi, written by Mithilesh.

Keyword: ,JointFamilyDiscussion ,UnitedFamily ,mithilesh2020 ,HumanCharacter ,Parivar ,Values ,SanyuktParivar ,UnitedFamilyDiscussion ,BharatiyaParivar ,IndianFamily
,Elder

Friday 23 January 2015

बेटियों की दुनिया: वर्तमान सन्दर्भ - Girls, Women, their current challenges and Government Plan

by on 04:21
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तमाम योजनाओं के साथ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत कर दी है. महिला एवं बाल विकास, मानव संसाधन मंत्रालय की साथ वाली इस योजना में मुख्य रूप से स्त्री-पुरुष लिंगानुपात घटाने पर ज़ोर देने की बात कही गयी है. इसके अतिरिक्त लड़कियों की उत्तरजीविता और संरक्षण सुरक्षित करना और लड़कियों की शिक्षा पर काम करने का मुख्य लक्ष्य रखा गया है. भारत के नए प्रधानमंत्री का भाषण यूं तो हमेशा ही रोचक होता है, मन से वह भाषण देते Hindi is our mother languageहैं, और इस योजना के उद्घाटन-स्थल पर ब्रांड-अम्बैस्डर के रूप में बॉलीवुड का चमकदार चेहरा माधुरी दीक्षित के रूप में उपस्थित था, तो प्रभाव जमेगा ही. किन्तु इस योजना के अनेक पहलुओं को देखने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि आज़ादी के बाद चली तमाम आधी- अधूरी योजनाओं की तरह यह योजना भी किसी प्रकार भिन्न नहीं है. भ्रूण-हत्या, लड़कियों की शिक्षा पर तमाम बातें और कार्यक्रम हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं, लेकिन इस बार मन आस लगाये बैठा था कि इस योजना में ज़मीनी कारणों पर विचार किया जायेगा और लड़कियों के जन्म से लेकर उनके सशक्तिकरण तक के मूल कारणों पर अध्ययन किया जायेगा, फिर किसी कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी. लेकिन, जैसा कि प्रत्येक सरकार के बाद होता है कि उस सरकार का फेस तो बदल जाता है, किन्तु उसके अंतर में कार्य करनेवाले लोग, नौकरशाहों की सोच नहीं बदलती है और परिणाम वही, एक ढर्रे पर चलती दुनिया और उस दुनिया के लिए एक ही ढर्रे पर बनतीं योजनाएं. इस योजना में देश भर के 676 ज़िलों में 100 चयनित जिलों को कार्यक्षेत्र बनाया गया है, जबकि 'गुड्डा-गुड्डी' बोर्ड पर, किसी ग्राम-पंचायत में लिंगानुपात के बारे में सूचनाएं लिखीं जाएँगी. इसके अतिरिक्त आम जनमानस के लिए कर्त्तव्य रूप में कुछ बातों को दुहराया गया है कि वह बच्चियों के जन्म पर उत्सव मनाएं, 'पराया-धन' की मानसिकता से वह बाहर आएं, इत्यादि इत्यादि. कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इस प्रकार की प्रतीकात्मक योजनाओं से देश की बेटियों का न तो कुछ ख़ास भला हुआ है और होने की सम्भावना भी नहीं है. तो फिर प्रश्न उठता है कि क्या इस योजना की सार्थकता शुन्य है? नहीं!

किसी भी योजना की सार्थकता इस मामले में शुन्य नहीं हो सकती है, क्योंकि वह कहीं न कहीं संवाद का जरिया तो बनती ही है. इसके साथ प्रश्न यह भी उत्पन्न होता है कि क्या संवाद अथवा जागरूकता के अपने उद्देश्यों को इस प्रकार की योजनाएं पूरित कर पाने में सक्षम हैं? आपको फिर निराशा हाथ लगेगी और नकारात्मक उत्तर ही मिलेगा, नहीं!
कारण?

महिलाओं के अधिकारों से जुड़े अधिकांश विषयों में जागरूकता की सर्वाधिक आवश्यकता स्वयं महिलाओं को ही है. भ्रूण-हत्या और बेटी की अशिक्षा अथवा उसके बाल-विवाह में आश्चर्यजनक रूप से आपको महिलाओं की ही सहभागिता नजर आएगी, कई मामलों में पुरुषों से भी ज्यादा. इस मुद्दे पर चर्चा और स्पष्ट हो जाएगी, जब हम महिलाओं की शिक्षा और उसकी उपयोगिता पर बात करेंगे. आज लगभग प्रत्येक मध्यम-वर्ग परिवार में लड़कियां ग्रेजुएशन करती ही हैं, कुछ बीच में भी छोड़ देती हैं यह अलग बात है. और मध्यम वर्ग की ही बात कही जाए तो कई लडकियां इंजीनियरिंग से लेकर दुसरे प्रोफेशनल कोर्सेस की तरफ बहुतायत में मुड़ रही हैं. भारत का निम्न आय-वर्ग भी इस मामले में जागरूक हुआ है और उस वर्ग की लडकियां भी शिक्षा प्राप्त करने में कदम-दर-कदम आगे बढ़ा रही हैं.
प्रधानमंत्री जी, एवं 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के निर्माताओं! इसके बाद क्या होता है, इस बात पर ध्यान दीजिये ज़रा!

तमाम शिक्षा-प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भी, अधिकांश लड़कियां, सामजिक दबाव में जल्द ही शादी करती हैं और घर में बैठ जाती हैं. फिर उनकी शिक्षा पिछली पीढ़ी की उन औरतों से ज्यादा अहमियत नहीं रखती है, जो पांचवी पास होती थीं और दूर देश में नौकरी करते अपने पति को पत्र लिख लेती थीं. कुछेक फीसदी महिलाएं संघर्ष करती हैं और शादी के बाद भी नौकरी करने का अपना निर्णय, तमाम विरोध-प्रतिरोध के बाद भी जारी रखती हैं, लेकिन उनका संघर्ष भी तब दम तोड़ जाता है, जब मातृत्व की जिम्मेदारी उन पर आती है. परिणाम फिर वही, ढाक के तीन पात! महिला फिर वहीं की वहीं, आर्थिक आज़ादी उसकी छिन जाती है और तमाम प्रयासों के बावजूद उसके साथ जो परिस्थिति गुजरी, अपनी बेटी के साथ वह उसी स्थिति की कल्पना करके सिहर जाती है.
आगे सुनिए, प्रधानमंत्री जी!

कुछेक महिलाएं, आर्थिक सशक्तिकरण के लिए मातृत्व के बाद भी संघर्ष जारी रखती हैं और अपने बच्चों को क्रेच या डे-बोर्डिंग के सहारे छोड़ने का रिस्क लेती हैं, और More-books-click-hereपरिणामतः उनके बच्चे माँ-बाप से दूर, कुंठित और अपेक्षाकृत असामाजिक निकलते हैं. अपने आप में यह आंकड़े भयानक हैं कि अपने आर्थिक एवं कार्य की स्वतंत्रता के लिए ज़िद्द करती महिलाओं का अपने परिवार से तालमेल नहीं हो पाता है और फिर समाज में तलाक जैसी विकृति फैलती है. इन महिलाओं से अलग कुछ और महिलाएं जो सक्षम होती हैं, वह तो बच्चे ही पैदा नहीं करना चाहतीं. अब मैं पुनः मूल प्रश्न पर आता हूँ. ऐसी परिस्थिति में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान किस प्रकार से महिलाओं से संवाद स्थापित करने में सक्षम हो पायेगा? संवाद वही कर सकता है जो सक्षम हो और महिलाओं को हम कुछ हद तक साक्षर बना पाने में बेशक कामयाब हुए हैं, किन्तु उनकी सक्षमता पर स्थिति आज़ादी के 67 सालों बाद भी कुछ ख़ास नहीं बदली है. यही कारण है कि संवाद, जागरूकता के तमाम प्रयास सिर्फ कागजी ही रह जाते हैं.

इस वस्तुस्थिति में तस्वीर बेहद डरावनी नजर आती है. क्या वक्त की यह मांग नहीं है कि बेटियों की भलाई के लिए, उनकी माताओं को आर्थिक रूप से सक्षम एवं स्वतंत्र बनाया जाय? क्या समय यह नहीं कहता है कि पढ़ी-लिखी लड़कियों को रोजगार की भरपूर संभावनाएं मिलें? क्या महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की यह जिम्मेवारी नहीं है कि वह बदलते समय के अनुरूप, बेहतर पारिवारिक माहौल के लिए शोध पर जोर दे, पारिवारिक क्षेत्रों में सक्रीय गैर-सरकारी संस्थाओं, भारतीय संयुक्त-परिवारों से तालमेल करे? क्या महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए घरेलु उद्योगों के विकास की संभावनाएं मौजूद हैं? यदि नहीं, तो कौन जिम्मेदार है? क्या घर से बाहर निकलती महिलाओं को सुरक्षा है? किसी प्रकार की पीड़ा अथवा हादसा होने पर हमारा तंत्र उस लड़की के साथ कितना सहयोगात्मक रहता है?

यदि इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढ लिए जाते हैं, तो यकीन मानिये, स्त्री और महिला आधारित हमारा समाज कई प्रश्नों के उत्तर स्वतः पा जायेगा. अब हालात बदले हैं, और देश के नागरिक इस बात के प्रति जिम्मेवार नजर आते हैं. वह अपने बच्चों को, बच्चियों को बचाना चाहते हैं, पढ़ना चाहते हैं  लेकिन उसके बाद क्या? देश की नयी सरकार की इस योजना में स्पष्ट रूप से उथलापन दीखता है और कागजी खानापूर्ति ज्यादा नजर आती है. सच कहा जाय तो यह 80 के दशक की योजना लगती है, क्योंकि अब समाज की समस्याएं अलग हैं और वर्तमान में महिलाओं की, बेटियों की समस्याओं का समाधान तो छोड़िये, इस योजना में उन समस्याओं का ज़िक्र भी नहीं दीखता है. गणतंत्र दिवस की बेला पर देशवासी इस प्रश्न पर जरूर विचार करें और अपने विचारों से जागरूकता फ़ैलाने का निर्णय करें तो सरकार और उसके नौकरशाह भी कागजी खानापूर्ति से जरूर बचेंगे जिसका परिणाम निश्चित रूप से यथार्थ पर आधारित होगा, न कि योजना के नाम पर पुरानी फाइल को कॉपी-पेस्ट कर दिया जायेगा.

-मिथिलेश कुमार सिंह

Girls, Women, their current challenges and Government Plan

Beti-bachao-beti-padhao-launch-planning

Keyword: government planning, yojna, modi, beti bachao beti padhao, mahila evam bal vikas mantralay, speech of modi, madhuri dixit brand ambassador, half plan,  bureaucracy, bureaucrat,  Official,  officeholder,  office bearer,  officer, administrative, official, women survival, child education, girls education, family, Indian family structure, plan, middle class family, old plan, 80s, youth, family research, shodh, daughter, girl child issues.

Wednesday 21 January 2015

प्राणों से प्रिय गणतंत्र - Poem on Indian Republic Day, in Hindi by Mithilesh.

by on 15:08

जय गण, जय जन
लें हम यह प्रण
भारत के भाग्य बनें
करें शुद्ध तंत्र का मन


 

हासिल विश्वास करें
दुःख सुख अहसास करें
हो सपना हिन्द का सच
दुश्मन का नाश करें


 

पर ध्यान रहे इतनाMore-books-click-here
कर्त्तव्य भाव कितना
लहराता रहे झंडा
अम्बर ऊँचा जितना


 

प्राणों से प्रिय गणतंत्र
विकसित यहाँ हों हर यंत्र
धर्म, अर्थ और काम
पुरुषार्थ सिद्ध करे मंत्र


 

दिन रैन गए कई साथRepublic-day-26-January-Hindi-Poem-Kavita-Deshbhakti-Deshprem-kavita-by-Mithilesh-Anbhigya-poet
आई बेला अब हाथ
सिरमौर बने भारत
उठ- जागो देश के नाथ


-मिथिलेश 'अनभिज्ञ'

Poem on Indian Republic Day, in Hindi by Mithilesh

READ Revolutionary Article by Mithilesh on Republic Day 2015


Keyword: jan gan man, bharat bhagya, dream of India, enemy of India, duty for India, Tiranga Jhanda, Developing India, Dharm Arth Kaam Moksh, Vishv guru Bharat, Hindi poem on 26 January, Patriot poem, Deshbhakti kavita, desh prem ki kavita.

Ticket Distribution Issues in BJP, Delhi Assembly Election

by on 04:23
Ticket Distribution Issues in BJP, Delhi Assembly Election

 


कुछ लोग फेसबुक पर जोर-शोर से 'पूर्वांचलियों' को टिकट मिलने में अन्याय पर आवाज उठा रहे हैं. विशेषकर भाजपा में...
सरसरी तौर पर तो 70 में से 1 सीट मिलना अन्याय लगता ही है, पर अंदर की राजनीति क्या है, कौन जाने?
आप क्या कहते हैं मित्रों !!
‪#‎Ticket‬ ‪#‎Politics‬ ‪#‎Purvanchal‬ ‪#‎BJPTicket‬





Like · ·














  • Er Rahul Rajkumar Gupta yahi ki aapko politics me aa jana chahiye

















  • Mithilesh Kumar Singh गुप्ता जी आप भी लगे रहो, साथ ही चलेंगे...















  • Santosh Patel भाई एक टिकटवाला भी 2करोड़ में टिकट लेने की बात कर रहा था, शायद टीवी पर दिखा रहा हैं, जरा आप भी देखिये तो क्या सत्यता है!















  • Mithilesh Kumar Singh सच- झूठ हमसे ना पूछिए
    कई लोग बुरा मान जाएंगे
    जिनकी बात है वह निकल लेंगे

    खामखा, निशाने पर आ जायेंगे
    - मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
    Santosh Patel ji.















  • Kuldeep Srivastava 3 seat par purvanchali ko Ticket diya h BJP NE...

















  • Thakur Kundan Singh जब राजा व्यापारी हो तो समाज को भी व्यापार का आदत डाल लेना चाहिये। व्यापार मे नीति नही अवसर की समझ और पूंजी हो तभी सफलता मिलती है।
    पूंजी हो तो टिकट मिलेगा। साहब, लोग बोलते थे कि डॉ. हर्षवर्धन अच्छे ईमानदार और कर्मठ थे पर यह चुनाव तो अन्ना हजारे के शिष्य
    ों ने हाईजेक कर लिया।
    जो भी हो पर इतना तो साफ है कि दिल्ली मे बी.जे.पी. के पास "एक अदद नेता" नही है जिसके बल पर दिल्ली मे चुनाव लड़ सकता।
    अन्ना आंदोलन के दोनों नेता को शुभकामनाएं










  • Mithilesh Kumar Singh







Ticket Distribution Issues in BJP, Delhi Assembly Election, analysis in Hindi.

Tuesday 20 January 2015

दरियां बिछाने वाले हमारे बच्चा भाई - व्यंग्य लेख, Satire on Political Workers, Bachcha Bhai!

by on 06:55
बच्चा भाई! एक राजनीतिक पार्टी के बहुत पुराने सक्रीय कार्यकर्त्ता रहे हैं. उस पार्टी के एक नेता के पीछे-पीछे घूमना हो, या उसकी सभा की व्यवस्था करना हो अथवा उस सभा में कुर्सियां, दरियां लगाने का काम हो, बच्चा भाई बड़े मनोयोग से अपना दायित्व निबाहते हैं. उनकी बैठक के सामने से गुजरा तो सोचा उनसे मिलता चलूँ. राम राम के बाद मैंने महसूस किया कि बिचारे कुछ उदास बैठे थे. उन्होंने चाय मंगाई, तो मैंने पूछ ही लिया, क्या बात है आज अपना भाई उदास क्यों है? मेरा इतना पूछना ही था कि वह भड़क उठे. कहा! तुम्हारी आदत केवल मजाक उड़ाने की है, ऐसे पूछ रहे हो जैसे जानते ही नहीं. अरे नेताजी को इस बार टिकट नहीं मिला है. मर जाएँ यह सारे 'पैराशूटिये'! चार दिन पहले वह विरोधी पार्टी से अपनी पार्टी में शामिल हुआ और उसे टिकट मिल गया. यह कहते-कहते बच्चा भाई भावुक हो गए. मैंने भी रोनी सी सूरत बना कर कहा, अरे चिंता क्यों करते हो भाई! तुम्हारी पार्टी में हाई कमान बड़ा समझदार है, वह कहीं न कहीं तुम्हारे नेताजी को भी एडजस्ट कर देगा. यह सुनकर वह और भी भड़क गए, कहा, कौन हाई कमान? उसे क्या पता, पार्टी के समीकरण क्या हैं? वह तो खुद भी पैराशूट से ही हाई कमान बना है. उसे क्या पता, हम दरी बिछाने वालों का दर्द! ज़िन्दगी लगा दी इस पार्टी में, और अब हमारे ही नेता को बेटिकट घोषित कर दिया.

मैंने मरहम लगाते हुए कहा कि तुम्हारे नेताजी कम जुगाड़ू नहीं हैं, वह सरकार में कोई न कोई रास्ता निकाल कर किसी आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तो बन ही जायेंगे और इस तरह दरी बिछाने वालों की क़द्र भी रह जाएगी. मेरी इस बात पर बच्चा भाई का रहा सहा धैर्य भी जवाब दे गया और उन्होंने तपाक से कहा, सरकार! अरे जिस पार्टी में जीवन लग गया, उसमें ही नहीं सुनी जा रही है तो सरकार में क्या ख़ाक सुनी जाएगी. वैसे भी सरकार का मतलब दलाल और पूंजीपतियों का गठजोड़ होता है. देखा नहीं, पुणे के एक रेस्टोरेंट से किस तरह एक गरीब बच्चे को धक्का देकर बाहर निकाल दिया गया. सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर पायी, जिसके लिए चुनकर आयी तो दुसरे की भला क्या बिसात! टिकट तो तुम्हें मिलना नहीं था, फिर तुम क्यों रो रहे हो? मैंने जरा कठोर होकर पूछा!

हाँ! लेकिन मेरे नेताजी को मिल जाता तो मैं तीसरे प्लाट पर अपना मकान तो बनवा लेता और बच्चे का दाखिल करवाया है इंजीनियरिंग में, उसकी फीस अब कहाँ से आएगी?More-books-click-here पार्टी के समर्पण की गाने वाले बच्चा भाई अब अपने असली दर्द को बयाँ कर रहे थे. मैंने मन में कहा, यह बात तो पूरा मोहल्ला जानता है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप में उनसे हमदर्दी जताते हुए कहा कि आपने दूसरी उभरती हुई पार्टी में जाने की सलाह नहीं दी नेताजी को, शायद काम बन जाता. वह भी ईमानदारी की राजनीति करने का दम भरते हैं. बच्चा भाई तो सभी दांव पेच पहले ही आजमा कर हार चुके थे, बोले- आप स्थिति से 'अनभिज्ञ' हैं. उस नयी पार्टी में अब कई करोड़पति आ चुके हैं, और टिकट उसी को मिल रही है, जो कई करोड़ चढ़ावे के साथ चुनाव में टक्कर देने का दम भी रखता हो. आप क्या यह चाहते हो कि दरियां बिछा - बिछा कर हमने जो पाई-पाई जोड़ा है, वह सब लुट जाए. यह सलाह भूलकर भी हम नेताजी को नहीं दे सकते.

मैंने हार मानते हुए कहा- तो फिर आप ही बताओ, रास्ता क्या है आपकी मुक्ति का. अब जाकर उनके चेहरे पर दरी बिछाने वाले कार्यकर्त्ता से अलग भाव दिखे और आँखें नचाते हुए बोले- हमने भी दरियां बिछाते-बिछाते राजनीति का ककहरा सीख लिया है. जिस नए पैराशूटिये महोदय Parachute-Candidate-mla-ticket-netaji-satire-vyangya-lekh-bachcha-Bhai-writer-mithilesh-in-Hindiको टिकट मिला है, आज शाम को उसके चरणों में लोटना शुरू कर देंगे. आखिर, क्षेत्र की समझ है हमें और पार्टी की भी समझ है. हमारी निष्ठा पार्टी के प्रति है और पार्टी हाई कमान का आदेश सर माथे पर. आप तो 'अनभिज्ञ' ही रहे, हमें देखिएगा, हम तीसरे प्लॉट पर भी कैसी चार-मंजिला ईमारत खड़ी कराते हैं, इस बार राजस्थानी पत्थर भी लगवाएंगे. मैं अवाक सा बच्चा भाई का मुंह ताक रहा था. नहले पर दहला जड़ते हुए बच्चा भाई बोले- तुम्हें भी कितनी बार कहा है, दरियां बिछाने का काम शुरू कर दो. आज कल काम होता ही क्या है, बस नेताजी के आने पर थोड़ा शोरगुल करना पड़ता है, उनके सामने दूसरी ओर से कुर्सी खिंच कर रखनी पड़ती है और अपनी सेवा के बदले ईनाम के लिए झोली फैलाना पड़ता है. उनका मुंहलगा बनने का सुख मिले, सो अलग. तुम 'अनभिज्ञ' ही रहे, कलम घिसते रहते हो, परिवार-परिवार, देश-देश चिल्लाते रहते हो, इधर-उधर टक्कर मारते रहते हो. मैं बच्चा भाई के ज्ञान की अनुभवयुक्त बातें सुनता जा रहा था, बिना किसी टोका-टाकी के. तभी बच्चा भाई का फोन घनघना उठा, चेहरे पर ख़ुशी के भाव आ गए. नए 'पैराशूटिये', माफ़ कीजियेगा, 'नेताजी' के स्वागत के लिए जिला-कार्यालय पर दरी बिछाने वालों को बुलाया गया था. फोन रखते ही बच्चा भाई उछलते हुए बोले! मुझे नए उम्मीदवार ने ख़ास तौर पर बुलाया है, मैं तुमसे शाम को मिलता हूँ. और हाँ! मेरी दरी बिछाने वाले काम के बारे में सोचना, लेकिन कलम को कहीं छुपा देना तब ... !!
उनके जाने के बाद मैं धीरे-धीरे अपने घर की ओर लौटने लगा, और 'दरी बिछाने' वाले काम के बारे में गंभीरता से मनन भी जारी था!

- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

Satire on Political Workers, Bachcha Bhai, Hindi vyangya by Mithilesh 'Anbhigya'

Keyword: निन्दोपाख्यान, प्रहसन, व्यंग्य, हंसी,  व्यंग, निंदागर्भ लेख, कटुवाक्य, कटूपहास, sarcasm, satire, cyncism, irony, SQUID, vitriol, scoff, corcher, hit, hindi article by Mithilesh, Politics, Political workers, Articles about BJP Workers, Articles about Congress Workers, Article about Aam Aadmi Party workers, Rajnaitik Karykarta, Parachute Candidate articles in Hindi.

Read Book on 'Indian Politics' ...

Seats of Congress Party in Delhi Assembly, Pre Poll

by on 04:25
Seats of Congress Party in Delhi Assembly, Pre Poll

 

 



कांग्रेस को दिल्ली विधान सभा में कितनी सीटें? कृपया कमेंट करें...
a). 2
b). 4
c). 6
d). 8
e) ......







Like · ·






Seats of Congress Party in Delhi Assembly, Pre Poll on facebook.

Keyword: facebook, fb consultant, social media consultant, IT Consultant, fb status, fb comments and likes, fb share, facebook ki duniya, be on facebook, active on facebook

Labels

Tags