Thursday 28 February 2013

ये 8 बातें किसी के दिल में आपकी इज्जत बढ़ा सकती हैं ! Give Respect and Take Respect

by on 15:43

1- सलाम करना।
2- किसी को जगह देना।
3- असल नाम से पुकारना।
4- बिना वजह बहस ना करना।
5- फिजूल ना बोलना।
6- अपनी बात पर अड़े मत रहना।
7- दूसरे की बात भी ध्यान से सुनना।
8- अपनी गलती मानना।


Give Respect and Take Respect in Hindi.

Sunday 24 February 2013

पुनर्विचार - I swear for rethink

by on 15:46
मै एक बार गहरे से अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करूँगा, कहीं मै जो अच्छा समझकर कर रहा हूँ, गलत तो नहीं हो रहा है., लगता है, एक बार फिर सोचने की जरूरत है मुझे…

मै तुम्हे भरोसा दिलाता हूँ कि एक बार फिर सभी पक्षों को ध्यान में रखकर ह्रदय से विचार करूँगा कि मुझे क्या और कैसे करना चाहिए, इन परिस्थितियों में.

rethinking
I swear for rethink

Friday 22 February 2013

ठंढे बस्ते में …

by on 15:50
यदि यह मुद्दा ज्यादा विवादित हो रहा हो तो क्यों न इसको ठंढे बस्ते में डाल दें ?? …

यार, किसी के पास समय होगा नहीं, जिसके पास समय होगा, उसकी कोई सुनेगा ही नहीं, मानने की तो बात ही दूर है,..

जबरदस्ती तो प्यार किया नहीं जा सकता !!

Thursday 21 February 2013

Monday 18 February 2013

न्याय, सभ्य समाज की पहली शर्त है ... - First Duty of Society is Justice

by on 16:09
किसी भी व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने और बचाए रखने के लिए न्याय सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है.  जिस भी समाज की न्याय-प्रणाली जितनी सुदृढ़ रहेगी, उस समाज की समृद्धि की उतनी अधिक संभावना रहेगी.

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थोडा विस्तृत और साधारण रूप से कहें तो – “कोई भी व्यवस्था हो, उसमे कमियाँ होती ही हैं, समस्याएं आती ही हैं, और न्याय-प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि उस समस्या का कारण क्या है और उस समस्या द्वारा हुई क्षति की क्षतिपूर्ति कैसे सुनिश्चित हो, ताकि भविष्य में भी उस तरह की समस्या उत्पन्न होने का खतरा न हो अथवा कम से कम खतरा हो.

इसके विपरीत, यदि न्याय-व्यवस्था नहीं होती है तो पूरी व्यवस्था को टूटने में क्षण भर भी नहीं लगता, बल्कि मै तो कहूँगा कि सिर्फ एक व्यवस्था नहीं टूटती है, बल्कि समाज की अन्य व्यवस्था को तोड़ने की नजीर भी बन जाती है. यह चाहे एक छोटे से परिवार की बात हो, अथवा बड़े संयुक्त परिवार की, या किसी संगठन की बात हो अथवा हम राष्ट्र की ही बात क्यों न कर लें.

तो यदि हम किसी व्यवस्था को बचाने की सोचते है, तो न्याय की एक समुचित प्रणाली हर स्तर पर विकसित करनी चाहिए, यह चाहे एक अनुभवी व्यक्ति के द्वारा हो अथवा अच्छे लोगो का एक न्यायिक समूह क्यों न हो.  कोशिश हमें यह भी करनी चाहिए कि- “न्याय को हर समय / परिस्थिति के अनुसार तौलें.” इसकी व्याख्या एक ही वस्तु के लिए भिन्न- भिन्न समय में अलग हो सकती है, अथवा एक ही अधिकार / कर्त्तव्य के लिए भिन्न- भिन्न मनुष्यों के लिए भी अलग हो सकती है.  बराबरी और न्याय में कई बार फर्क होता है, हमें प्राकृतिक न्याय पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए जो परिस्थिति और व्यावहारिक दृष्टि से तर्कसंगत भी हो.



किसी ने सच ही कहा है- “जस्टिस इज गॉड”
First Duty of Society is Justice in Hindi.

तैयारी और जीत के समर्पित जज्बे के बिना सच्चाई भी हार जाती है… - Preparation, Hard work is must

by on 16:01
इसके विपरीत कई बार कुत्सित विचारधाराएं भी तैयारी और कड़ी मेहनत से जीतती प्रतीत होती है. (यह अलग बात है कि कुत्सित और न्यायविहीन जीत क्षणिक ही होती है.)

Caught in the Storm

Preparation, Hard work is must

Saturday 16 February 2013

Message from CEO’s Corner (www.mithilesh2020.com)

by on 16:12
प्रिय मित्रों,


कॉलेज की पढाई के बाद, नौकरी की तलाश में दिल्ली आने के पश्चात रोज मै हर तरह के हिंदी/ अंग्रेजी के अख़बारों में नौकरियों का क्लासिफाइड देखना शुरू कर चूका था. इसके पहले अनेक तरह के जॉब पोर्टल पर मैंने अपनी प्रोफाइल बना रखी थी, दोस्तों से walk-इन इंटरव्यू के बारे में लगातार पता करता रहा, जाता भी रहा. पर नतीजा भला क्या होना था. यह करीब २००७ के मध्य की बात है, उस समय रिसेशन (मंदी) की बात आम थी. पूरी दिल्ली और एन.सी.आर. में मुझे इक्का- दुक्का ही कम्पनियां मिलीं, जो मेरी प्रोफाइल से सम्बंधित जॉब दे सकती थी, वहां भी एक या दो पोजीशन ही रहती थीं. ऐसा नहीं था कि आईटी. कम्पनियां थी ही नहीं, पर पेड- नौकरी / प्लेसमेंट का इतना बुरा चलन था (अभी भी है…) कि पूरा नोयडा, गुडगाँव और दिल्ली में कुकुरमुत्ते की तरह ट्रेनिंग और प्लेसमेंट इंस्टीटयूट / कम्पनियां खुले थे जो बाकायदा आपके कैरियर की गारंटी लेते थे. मै पहले ही बता चूका हूँ कि मै औसत दर्जे का स्टूडेंट था और मेरा आई.क्यू. लेवल इतना नहीं था कि एक्सेंचर, टीसीएस इत्यादि कंपनियों में सेलेक्ट हो पाता, तो मेरे पास एक ही विकल्प बचा था और वह था कि मै या तो किसी इंस्टीटयूट से ट्रेनिंग लूं या पेड नौकरी कर लूं किसी कंपनी में. मजबूरन मैंने अन्य ९० फीसदी इंजीनियरिंग स्टूडेंट की तरह युनिलोजिक नाम की कंपनी को चुना. होना क्या था, ६ महीने बाद मेरे जैसे करीब ५०० ट्रेनी/ एम्प्लोयी का पैसा लेकर कंपनी फरार हो गयी और हम सब फिर जहाँ से चले थे वहीँ पर आ गए…. तो दोस्तों दूसरों की तो मै नहीं जानता पर मेरे लिए यह अच्छा ही रहा क्योंकि इसी समय इस कंपनी की नींव पड़ी, मेरे साथ मेरे दो दोस्त भी थे ( अब दुर्भाग्य से वह अलग है)…. शुरू में हमें परेशानी और स्वयं द्वारा की गयी अनेक गलतियों की कीमत चुकानी पड़ी. चूँकि हम किसी बिजनेस फैमिली या रॉयल फॅमिली से सम्बंधित तो थे नहीं, तो यह सब हमारे साथ होना ही था, कई बार हम अपने क्लायंट को सही तरीके से सर्विस नहीं दे पाए, तो कई बार हमने पैसे से सम्बंधित भारी गलतियां की और इनसे भी बड़ी गलतियां तो ह्यूमन रिसोर्सेस के मामले में हमसे हुई. … पर यह सब हमारे लिए उतना ही जरूरी था, जितना किसी बीमार बच्चे को एंटी- बायोटिक. पर संस्थापक होने के नाते मैंने बस एक चीज पर अपना ध्यान लगाये रक्खा और वह था मार्किट में टिके रहना. हालाँकि इसका अगला स्टेप था टिके रहने के साथ क्वालिटी में लगातार सुधार करना, पर पैसे और ह्युमन रिसोर्स में अपरिपक्व होने के कारण सिर्फ हम मार्किट में टिके रह पाए. …


 नहीं, नहीं .. दोस्तों, यह तो बस शुरुआत थी, अब मेरे पास भी बिजनेस में 4 साल लगातार समय लगाने से इसकी बेसिक समझ आ चुकी थी, और दोस्तों इस समय न सिर्फ हम अपने ९९ फीसदी ग्राहकों को संतुष्ट कर पा रहे हैं वरन मार्किट रजिस्ट्रेशन और टेम्पलेट जोन नामक बड़े प्रोडक्ट भी मार्किट में लांच कर चुके हैं. ह्युमन रिसोर्स में भी पहले की अपेक्षा काफी सुधार हुआ है और हम स्थायित्व की तरफ मजबूत कदमों से आगे बढ़ रहे हैं… यदि हम सेवाओं की बात करें तो पहले जहाँ हम सिर्फ बेसिक लेवल की वेबसाइट से खुश हो जाया करते थे, अब टेम्पलेट जोन के माध्यम से वर्ल्ड- क्लास की डिजायन और प्रजेंटेशन से अपने ग्राहकों को लाभान्वित कर रहे हैं… कम्पनी के संस्थापक होने के साथ- साथ मुख्य कार्यकारी होने के कारण मेरी जिम्मेदारी अब यह भी थी कि हम प्रत्येक ग्राहक को उसके हर पैसे के बदले उसको १० गुना रिटर्न ऑफ़ इन्वेस्टमेंट दें, और आज मै बहूत विश्वास से कह सकता हूँ कि यदि आप हमारी कम्पनी के साथ १ पैसा भी लगाते है तो आपके उस १ पैसे की कीमत हम समझते है और उसी अनुपात में हम आपके बिजनेस के मजबूत स्तम्भ बनकर आपके साथ खड़े रहते हैं… चाहे बात बिजनेस को ब्रांड के रूप में स्थापित करने की हो अथवा ब्रांड को निश्चित लाभ के मॉडल में बदलना हो, हम हर एक काम को बखूबी अंजाम देते हैं… आपके ब्रांड को हम ऑनलाइन मीडिया में बहूत मजबूती से न सिर्फ रखते है बल्कि हमारी टीम आपके व्यापारिक प्रतिद्वंदियों से आपको कहीं ज्यादा आगे रखने की रणनीति पर लगातार काम करती है… इस दौरान हम इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि कहीं भी कम्युनिकेशन गैप न हो, न आपके और हमारे बीच और न ही आपके और आपके ग्राहकों के बीच. एक तरफ हम बेहतर से बेहतर मार्केटिंग टूल बनाते है आपके बिजनेस के लिए तो दूसरी तरफ आपकी मार्किट/ बिजनेस को स्थायी रखने के लिए सर्विस और सपोर्ट से सम्बंधित अनेक आसान टूल भी इंस्टाल करते है… 


 इसके साथ साथ हम फ्रेशर्स को अपनी कंपनी में लगातार मौका देने का यत्न करते हैं, जो कि कई बार नए विचारों के लिए अत्यधिक उत्तम साबित हुआ है. साथ में कई अन्य विशेषज्ञ कंपनियों से हमारा संबधित सेवाओं के लिए विश्वसनीय गठजोड़ भी है, ताकि हमारे क्लायंट को एक ही प्लेटफार्म पर तकनीक से सम्बंधित सेवाएं वाजिब दरों पर विश्वसनीय सपोर्ट के साथ मिल सके. दोस्तों, इसके साथ हमारी कंपनी का फ्यूचर ड्रीम जोकि ENTREPRENEURSHIP के रास्ते से होकर जाता है, वह गावों में सूचना तकनीक के उपयोगी प्रसार / आत्मनिर्भरता और ग्रीन एन्वायरमेंट पर जाकर रूकता है… तो दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ZMU परिवारमें, एक क्लायंट के तौर पर, एक समर्पित सहकर्मी के तौर पर, एक उद्यमी के तौर पर और एक सामाजिक संवेदनशील व्यक्ति के तौर पर भी.


आप मुझसे इस मेल पर पत्राचार कर सकते हैं-


Mail24@zmu.in || Mob. +91- 99900 89080, 92683 07613 || Webwww.mithilesh2020.com

Tuesday 12 February 2013

किताबें - Book Reading is Must

by on 16:23
आपने कितनी किताबें पढ़ीं ?

क्या आपने पढना बंद कर दिया है ?

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यह पैमाना है, आपकी सफलता या असफलता का, स्वतंत्रता और परतंत्रता का भी !!

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Book Reading is Must

Sunday 10 February 2013

छत्रपति शिवाजी - Chhatrapati Shivaji, The Great Indian Warrior

by on 16:26
(वह वीर योद्धा जिसने भवानी तलवार के बल पर हिन्दुओं का खोया सम्मान व आत्मविश्वास जीतकर दिखाया)
शिवाजी के पिता,शहाजी एक पेशेवर योद्धा एवं एक प्रकार से पूना राज्य के शासक और स्वामी थे. उस दौर में भारत पांच मुस्लिम साम्राज्यों में बनता था – दिल्ली का मुग़ल साम्राज्य, बीजापुर का आदिल साम्राज्य, दौलताबाद का निजाम साम्राज्य, गोलकुंडा का क़ुतुब साम्राज्य और बिदर का वरिद साम्राज्य. जब शिवाजी गर्भ में थे, तब शहाजी अपने घर से दूर मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के आदेश पर विद्रोही सूबेदार, दरिया खां रोहिल्ला का पीछा कर रहे थे, जो भाग कर दक्षिण की ओर चला गया था.
मुस्लिम शासक हिन्दू योद्धाओं का अपने हित में बुरी तरह से इस्तेमाल करते थे और उन्हें आपस में लड़ाकर उनपर तरह तरह से अत्याचार करते थे. शिवाजी के पिता एक कुशल रणनीतिकार की तरह विभिन्न मुस्लिम शासकों के बीच संतुलन बनाकर रखते थे. इसी बीच १९ फ़रवरी १६३० को जीजाबाई ने तीखे नैन-नक्श वाले एक सुन्दर बच्चे को जन्म दिया, और उस बच्चे के नाम उनके ससुर बिठोजी तथा दादा कोंडदेव (शिवाजी के गुरु) ने सर्वसम्मति से नवजात का नाम ‘शिवाजी’ रखा.
माँ जीजाबाई ने शिव को देश की गौरवशाली परम्पराओं, संस्कृति, ईतिहास तथा पौराणिक-धार्मिक कथाओं के शूरवीरों के बारे में बताया और उनमे कूट- कूट कर हिन्दू भावना भरी. माँ और बिठोजी ने बालक शिवा को अहसास करा दिया कि उसके एक शूरवीर योद्धा बन्ने में ही उन सबका भविष्य छिपा है. उसके मन-मस्तिष्क में यह बात भी बिठा दी गयी कि उसका जन्म हिन्दू धर्म के पुनरुद्धार के लिए हुआ है. शहाजी के विश्वस्त कमांडर दादा कोंडदेव ने शिवा को शस्त्र प्रयोग भी सिखाना आरम्भ कर दिया था. राजनीतिक शिक्षा के लिए वे शिवा को अपने साथ राज्य के दौरों पर भी ले जाते थे. दादा जानते थे कि एक सफल शासक बनने के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों का जानकर होना आवश्यक है. दोनों एक दुसरे के बिना अधूरे हैं. इन आरंभिक सात वर्षों में शिवा ने केवल कुछ दिन ही पिता का सानिध्य पाया. माँ जीजाबाई, दादा बिठोजी और संरक्षक दादा कोंडदेव ही शिवा के प्रेरणाश्रोत रहे. शिवा बहूत महत्वाकांक्षी, आक्रामक, चतुर तथा विचारशील था.
एक बार शिवाजी के पिता शहाजी बीजापुर के बादशाह मोहम्मद आदिल के दरबार में शिवाजी को लेकर गए और उन्होंने झुककर आदिल को मुस्लिम ढंग से कोर्निश किया और शिवाजी से भी ऐसी ही अपेक्षा की. पर शिवाजी ने अपने सर को नहीं झुकाया और वह मुस्लिम बादशाह को घूरते रहे. एक अन्य वाकये के अनुसार, एक मुस्लिम कसाई एक गाय को बूचडखाने की तरफ ले जा रहा तो शिवाजी उस पर कटार से हमला करने दौड़े, क्योंकि उनकी माँ जीजाबाई ने उनको सिखाया था कि गाय हमारी माता होती है और मुस्लिम शासक हम पर अत्याचार करते रहते हैं और हिन्दुओं की दुर्दशा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार हैं.
सन १६३९ में जीजाबाई तथा शिवा दादा कोंडदेव के पास पूना पहुँच गए. दादोजी एक अति कुशल प्रशासक तथा योजनाकार थे. नेतृत्व का गुण उनमें नैसर्गिक था. माता जीजाबाई की इच्छा पर सबसे पहले “गणेश- मंदिर” का निर्माण किया गया. पूना नगर के पुनर्निर्माण के क्रम में शहाजी परिवार के लिए लालमहल प्रसाद का निर्माण किया गया. दादोजी ने बहूत लगन से एक बहूत बड़े सुन्दर और फलदार पेड़ों के बाग़ का निर्माण करवाया, जिसका नाम उन्होंने अपने स्वामी के सम्मान में ‘शहाबाग़’ रखा. इसी दौरान १० वर्षीय शिवा का विवाह ७ वर्षीय बालिका सईबाई से कर दिया गया.
इसी दौरान शिवाजी अपने पिता के साथ बंगलौर प्रवास के दौरान अपनी युद्ध कला को निखारते रहे. उन्होंने अपने भाई संभाजी से युद्ध कौशल सिखा. उनके पिता उनके गुणों को देखकर यकीन करते थे कि उनका बेटा शिवा ईतिहास जरूर रचेगा. इसी दौरान शिवा का विवाह शोभाबाई से भी हुआ. इसके बाद पुनः दादोजी के संरक्षण में शिवाजी ने “स्वराज्य” नामक हिन्दू साम्राज्य की रचना की, जिसमे हिन्दू हित, धर्म तथा संस्कृति सुरक्षित हो. इसका आरम्भ पूना के चरों ओर स्थित २४ मावल क्षेत्रों को पूना राज्य में मिलाकर किया जाना था. हर मावल क्षेत्र का शासन एक देशमुख परिवार के द्वारा किया जाता था. ये देशमुख सदा एक- दुसरे से लड़ते- झगड़ते रहते थे. ये देशमुख मुस्लिम अधिकारीयों के तलवे चाटने की होड़ लगाये रहते थे. लोग देशमुखों की मनमानी और अत्याचारों से तंग आ चुके थे.
दादोजी और शिवा ने पहले उन देशमुखों से संपर्क किया जो मुस्लिम विरोधी स्वभाव के थे. ”स्वराज्य की रूपरेखा शिवाजी के सपने के रूप में उनके सामने रखी गयी. देशमुखों को “स्वराज्य” योजना पसंद आ गयी. देशमुख अपने- अपने क्षेत्र में गए तथा लोगों के सामने उन्होंने शिवाजी का “स्वराज्य” का विचार प्रस्तुत किया. प्रतिक्रिया सकारात्मक थी. हिन्दू जनता मंदिरों के तोड़े-फोड़े जाने, गायों की हत्या, अपनी स्त्रियों के अपहरण पर मुस्लिम शासकों से अत्यंत क्षुब्ध थे, उन्हें लगा कि यदि स्वराज्य सचमुच अस्तित्व में आ गया तो वे निर्भय होकर सम्मानित जीवन व्यतीत कर सकेंगे.
पर लोग शिवाजी को प्रत्यक्ष देखने को उत्सुक थे जो कि उन्हें “स्वराज्य” का सपना दिखा रहा था. वे उसे तुलना चाहते थे, उसकी नेतृत्व क्षमता को आंकना चाहते थे और थाह लेना चाहते थे कि शिवाजी किस सीमा तक युद्ध लड़ सकता है. शिवाजी ने मावल क्षेत्रों का दौर कर लोगों के बीच जाना आरम्भ कर दिया. उन्हें लोगों का मन और विश्वास जीतने में देर नहीं लगी. दादोजी ने अपने शिष्य को जन- संपर्क में पारंगत कर रखा था. जहाँ कहीं शिवाजी गए वहीँ उन्होंने युवा कार्यकर्ताओं का दल खड़ा किया. उनके द्वारा शिवाजी ने तोड़े- फोड़े मंदिरों का फिर से निर्माण शुरू कराया. इससे जनता भावनात्मक रूप से शिवाजी के साथ हो गयी. अधिकतर देशमुख शिवाजी के खेमे में आ गए. कुछ विरोधी देशमुख भागे- भागे बीजापुर के मुस्लिम दरबार जाकर शिवाजी के विरुद्ध जहर उगला. उन्हें शिवाजी के अनुयायियों ने पकड़ा तथा दण्डित किया क्योंकि लोग अब ‘स्वराज्य’ योजना के पक्षधर हो गए थे. एक रात, शिवाजी ने पूना से ५० मील दूर एक मंदिर के निकट एक गुफा में अपने पक्के युवा अनुयायिओं को एकत्र किया. उन सबने स्वराज्य निर्माण की शपथ ली. उन्हें अस्त्र- शस्त्र दिए गए तथा प्रशिक्षित किया गया. इस प्रकार स्वराज्य सेना की पहली बटालियन तैयार हो गयी.

शिवाजी के युवा सैनिक दल ने निकट के तोरण दुर्ग पर हमला बोल दिया. तोरण दुर्ग आदिल साम्राज्य का था. दुर्ग की रक्षा के लिए उपस्थित थोड़े से ही कर्मचारी व पहरेदार थेMore-books-click-here जिन्होंने बिना लड़े समर्पण कर दिया. दुर्ग की मरम्मत के समय एक दीवार की खुदाई में एक खजाना हाथ लगा. यह खजाना युवा शिवाजी के लिए दैवी बरदान साबित हुआ. उन्हें धन की सख्त आवश्यकता थी. उस खजाने ने शिवाजी का भाग्य बदला और वही स्वराज्य की मूल पूंजी बना. उसी धन से निकट की पहाड़ी पर अधूरे बने राजगढ़ दुर्ग का निर्माण कार्य पूरा कराया गया. उसके बाद स्वराज्य सैनिकों की टुकड़ीयों ने कंवारिगढ़ सहित अनेक दुर्गों पर शीघ्र ही कब्ज़ा कर लिया. अब दुर्गों की लम्बी क़तार स्वराज्य का भगवा झंडा फहरा रही थी. शिवाजी की छवि निर्णायक के रूप में तब स्थापित हुई जब जन्होने पडोसी राज्य जावली को न्याय दिलाया. दूसरी ओर दक्षिण में शिवाजी के बड़े भाई शम्भाजी भी वैसे ही दावं-पेंचों में लगे थे. उन्होंने बंगलौर को केंद्र बनाकर आसपास के हिन्दू राज्यों को अपने साथ मिलाकर दक्षिण में भी स्वराज्य खड़ा करने का कार्य आरम्भ कर दिया.
इस बीच इन अभियानों के दौरान अनेक घटनाएं हुई जैसे बीजापुर मुस्लिम शासक द्वारा गंभीर रूप से शिवाजी का विरोध करना, शहाजी का कैद में होना, मुग़ल शासको के माध्यम से शिवाजी की राजनीतिक चालें, बंगलौर और कोंडाना दुर्ग बीजापुर को लौटाना, कान्होजी तथा लोहोकारे के रूप में शिवाजी को अमूल्य साथियों की भेंट, जावली शासक यशवंतराव मोरे का विश्वासघात और शिवाजी द्वारा उसका वध. १६५० के दौरान बीजापुर में मोहम्मद शाह आदिल की मृत्यु, मुग़ल शासक शाहजहाँ का लगातार वीमार होने से उसके राज्य में आतंरिक संघर्ष, औरंगजेब के साथ संघर्ष की शुरुआत और उसके साथ राजनीतिक चालें इत्यादि अनेक घटनाएं हुई जिन्होंने इतिहास को गंभीर रूप से प्रभावित किया.
इन दस वर्षों में शिवाजी ने अवसर पैदा किये, उनका लाभ उठाया तथा मुस्लिम साम्राज्यों के साथ चूहे- बिल्ली के खेल खेले. परिणामस्वरूप हिन्दुओं का वाराज्य अस्तित्व में आया जिसके झंडे चालीस दुर्गों पर लहरा रहे थे, उसका लम्बा समुद्रतट था, बंदरगाह थे तथा हालैंड, फ़्रांस, इंग्लैण्ड तथा पुर्तगाल से व्यापार पर नियंत्रण था. स्वराज्य की छोटी-मोटी नौसेना भी थी. स्वराज्य की अपनी शक्तिशाली सेना थी जो आक्रमणों का मुंहतोड़ जवाब दे सकती थी. स्वराज्य का अधिकतर क्षेत्र आदिल साम्राज्य को काट कर बना था और उसी साम्राज्य में शिवाजी के पिता अब भी कार्यरत थे. शहाजी ने बीजापुर दरबार को स्पष्ट बता दिया कि उनके बेटे अब उनके नियंत्रण में नहीं हैं. साम्राज्य स्वयं उनसे जैसे ठीक समझे निपट ले.
इसी दौरान शिवाजी ने आदिल साम्राज्य के दुर्दांत योद्धा और अपने बड़े भाई संभाजी की धोखे से हत्या करने वाले अफजल खां का भी अकेले बध किया. यह वाकया ईतिहास में अत्यंत प्रसिद्द है क्योंकि अफजल का अत्यंत भीमकाय शरीर वाला था और उसकी सेना भी शिवाजी के मुकाबले अत्यंत ताकतवर थी, तथापि शिवाजी ने अफजल खान को मरकर उसके पड़ाव से ६५ हाथी, ४०० घोड़े, १२०० ऊंट, तीन लाख के रत्न, सात लाख की अशर्फियाँ, तोपें तथा काफी असलाह पर कब्ज़ा किया. शिवाजी के सेनापति पालेकर ने वाई पर धावां बोलकर वहां पड़ाव डाले बीजापुर की मुख्य सेना को खदेड़ दिया. बाद में शिवाजी बाकि सेना लेकर उनसे जा मिले. फिर सारी स्वराज्य सेना विजय अभियान पर निकल पड़ी. उसने सतारा, कोल्हापूर और पल्हंगढ़ पर अधिकार कर लिया. गोदक, कोकाक, और कोंकड़ भी जीते गए. दाभोल बंदरगाह पर कब्ज़ा कर लिया गया. तथा कई विदेशी जहाज हथिया लिए गए. एक जहाज के अंग्रेज कप्तान को बंदी बना लिया गया. विदेशी व्यापारी शिवाजी के कारनामों की दास्तानें लेकर अपने-अपने देश लौटे.
इस दौरान शिवाजी की बढती ख्याति से त्रस्त होकर बड़े मुस्लिम साम्राज्य एकजुट होकर एक बागी सरदार सिद्दी जोहर के नेतृत्व में शिवाजी से लोहा लेने को राजी हो गए. बीजापुर की सहायता के लिए मुग़ल शासक, गोलकुंडा के क़ुतुब शासक इत्यादि ने एक विशाल सेना के साथ शिवाजी पर धावां बोल, इतनी बड़ी सेनाओं का एक साथ सामना करना संभव नहीं था अतः शिवाजी गुप्त रास्ते से अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ सिद्दी जोहर को चकमा देकर भाग निकले. मुग़ल सेनापति साइस्ता खां पूना में आ धमका और शिवाजी के लालमहल प्रसाद में रहने लगा. यह शिवाजी को अपमानित करने की एक चाल थी. उसने एक सेना पन्हाल्गढ़ की ओर भी रवाना कर दी. जब शिवाजी को मुग़ल सेना के पन्हाल्गढ़ आने की खबर मिली तो उन्होंने चालाकी से अपने सैनिकों से दुर्ग खाली करवा लिया. फिर उस दुर्ग के लिए सिद्दी जोहर की बीजापुर सेना और मुग़ल सेना में भयंकर मार-काट हुई. उन्हें आपस में लड़वाकर चतुर शिवाजी अपने किले में बैठे खूब हँसते रहे. छापामारी के द्वारा उन्होंने मुग़ल सेनापति साइस्ता खान को अपने लालमहल से न सिर्फ खदेड़ा बल्कि मुग़ल सेना को उन्होंने भारी हानि पहुंचाई.
इस दौरान शिवाजी के अनेक अपने भी शिवाजी के विरुद्ध मुस्लिम शासकों का साथ देते रहे, जिनमे कोजी राजे (शिवाजी के सौतेले भाई), बाजी घोरपडे इत्यादि थे. शिवाजी Buy-Related-Subject-Book-beएक बार फिर तूफ़ान बनकर शत्रुओं तथा रास्ते में बाधा बनने वालों को उखाड़ फेंकते हुए गोवा, रिक्ट द्वीप, खुदाबंदपुर, हुबली, बैंगुली और सूरत क्षेत्रों से स्वराज्य के कोष को भरने के लिए खजाने बटोरते हुए बढे जा रहे थे. इससे औरंगजेब चिंतित हुए. मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर औरंगजेब ने अधिकार कर लिया थे. उसने निर्णय लिया कि शिवाजी के पर काटने होंगे. उसने शिवाजी की नाक में नकेल डालने का दायित्व मुग़ल साम्राज्य के वयोवृद्ध योद्धा राजा जयसिंह पर डाला. जयसिंह एक चतुर और काइयां योद्धा था, जो बुद्धिबल से शत्रुओं को परास्त करने में सिद्धहस्त था. जब मुग़ल कमांडरों का बस शिवाजी पर नहीं चला तो औरंगजेब ने उनके विरुद्ध हिन्दू कमांडर को मैदान में उतारने का फैसला कर लिया, क्योंकि एक हिन्दू ही शिवाजी की मनोस्थिति भांप सकता था और उनकी कमजोरी पकड़ सकता था.
मुग़ल साम्राज्य के वफादार सैनिक की भांति जयसिंह ने सहर्ष चुनौती स्वीकार कर ली और ३० सितम्बर १६६४ को औरंगजेब के जन्मदिन के अवसर पर जयसिंह एक विशाल सेना तथा युद्ध में टेप उप्सेनापतियों को लेकर शिवाजी से भिड़ने निकल पड़ा और औरंगजेब की दो हिन्दू योद्धाओं को आपस में लड़ाने की चाल सफल रही, तथापि शिवाजी ने जयसिंह को समझाने का बहूत यत्न किया और हिन्दुओं के हितों की दुहाई दी पर गद्दार समझते ही कहाँ है ? मनोवैज्ञानिक युद्ध के ज्ञाता हिन्दू योद्धा जयसिंह के एकबारगी शिवाजी को समर्पण करने को मजबूर भी कर दिया पर शिवाजी ने मुग़ल सेनापति जयसिंह और बीजापुर को आपस में लड़वाकर और जयसिंह को हरवाकर अपनी हार का कूटनीतिक बदला भी ले लिया. इसी दौरान “आगरा- कांड” के नाम से मशहूर वाकये में धोखे से शिवाजी को अपने दरबार में सम्मानित करने को बुलवाकर औरंगजेब ने बंदी बना लिया पर शिवाजी वहां से मिठाइयों के डब्बे में भाग निकले और फिर शिवाजी का विधिवत हिन्दू साम्राज्य ”स्वराज्य” के छत्रपति सम्राट के रूप में राज्याभिषेक किया गया.
वर्षों उत्सव मनाये गए. शिवाजी ने हिन्दुओं का खोया सम्मान तथा आत्मविश्वास अपनी खडग के बल पर जीतकर ला दिखाया था. फिर छत्रपति के अपने परिवार में ही फुट का जहर घुल. उनकी युवा पत्नी सोयराबाई ने जिद्द करना आरम्भ कर दिया कि उनका बेटा राजाराम ही गद्दी का वारिश होगा, इस कारन शम्भाजी (शिवाजी के बड़े पुत्र, जिन्होंने युद्ध में शिवाजी का साथ दिया था और वह योग्य भी थे) अपनी सौतेली माँ से घृणा करने लगा. घर में क्लेश इतना बाधा कि शिवाजी वीमार पड़ गए और उनका जीवन तनावों से भर गया. वह युवा पत्नी के मोहजाल में फंसे रहते थे और युवा पत्नी हरदम उनपर दबाव बनाये रखती थी. इन दबावों में शिवाजी कभी कभी मानसिक संतुलन भी खो देते थे. ऐसे ही एक समय उन्होंने अपने पुत्र शम्भाजी को अपने ही शत्रु मुगलों के खेमे में उनकी सेवा में भेज दिया. शम्भाजी को घर से दूर हटाकर वे परिवार में कुछ शांति लाना चाहते थे. शिवाजी को अपनी भूल का अहसास तब हुआ जब मुगलों ने संभाजी के कंधे पर बन्दूक रखकर स्वराज्य को हानि पंहुचाना आरम्भ कर दिया. पर अब क्या हो सकता था. शिवाजी और वीमार होकर मृत्यु सैया पर लेट गए. सैया के चारों ओर परिवारजन बुरी तरह झगड़ने लगे. ३ अप्रैल १६८० को छत्रपति शिवाजी का निधन हो गया. उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य को बखूबी पूरा किया.
भारत के इस वीर योद्धा ने विपरीत परिस्थितियों में भी हमें ईतिहास का एक गौरवशाली अध्याय दिया, जिसमे रचा स्वाभिमान तथा आत्मविश्वास का सन्देश जो हमारे मन को सदा सुवासित करता रहेगा और हमारी आने वाली पीढ़ियों को गौरव का पाठ पढ़ता रहेगा.

- Mithilesh Kumar Singh
Chhatrapati Shivaji, The Great Indian Warrior in Hindi

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