Wednesday 24 December 2014

भारत रत्न व राजधर्म - Bharat Ratn and Rajdharm!

by on 07:32
आखिर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नायकों में से एक अटल बिहारी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार देने की घोषणा कर ही दी गयी. साथ में आज़ादी के नायक एवं कांग्रेस के पांच बार अध्यक्ष रह चुके पंडित मदन मोहन मालवीय को भी यह पुरस्कार देने की घोषणा भी की गयी है. निश्चित रूप से दोनों महापुरुषों का योगदान अपने-अपने समय में अतुलनीय रहा है और देश का आम जनमानस इनसे सुपरिचित भी है. एक तरफ मदन मोहन मालवीय को आज़ादी के पहले के उन शिक्षाविदों में अग्रणी माना जाता Bharat-Ratn-Atal-Bihari-Bajpayeeहै, जिन्होंने मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली, जो कि भारतीयता को नष्ट करने के इरादे से ही लागू की जा रही थी, उसका न सिर्फ उचित विरोध किया बल्कि आपने उसकी वैकल्पिक शिक्षा-नीति पेश की एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के माध्यम से भारतीय विचारों की अलख जगाये रखा. महामना मालवीय सिर्फ शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि गंगा, हिंदुत्व, संस्कृति के प्रबल संरक्षक के तौर पर उभरे. जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित श्री राजेंद्र सिंह इतिहास के पन्नों से श्री मालवीय का उद्धरण देते हुए कहते हैं कि 'जब अंग्रेज प्रशासक भारतीय संस्कृति की प्रतीक गंगा नदी में नाले के माध्यम से शहर की गन्दगी डालने का प्रस्ताव लाये तो श्री मालवीय ने हर स्तर पर इस बात का विरोध किया'. वहीं अटल बिहारी बाजपेयी का योगदान इस मायने में अद्वितीय है कि एक अपरिपक्व लोकतंत्र, जिसमें एक परिवार का लगभग कब्ज़ा हो गया था और लोग लोकतंत्र में भी राजशाही की घुटन महसूस करने लगे थे, उसका न सिर्फ सार्थक विकल्प दिया, बल्कि आपने उस विकल्प को 5 साल तक सफलतापूर्वक आजमा कर आगे के लिए भी रास्ता साफ़ कर दिया. वस्तुतः बाजपेयी को यदि आधुनिक लोकतंत्र का सर्वश्रेष्ठ नायक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. बिना किसी रक्तरंजित, अतिवादी उदाहरण के आपने सद्भावना, देशभक्ति, विकास की अद्भुत मिसाल पेश की, जिसको समझने में वर्तमान भारतीय नेतृत्व को भी सालों लग सकते हैं. आपके प्रशंसक न सिर्फ देश में बल्कि पाकिस्तान, अमेरिका सहित तमाम देशों में भी रहे हैं, जो आपके विराट व्यक्तित्व का प्रतीक है. देश की राजनीति में भी आपने भारतीय जनता पार्टी को स्वीकृत बनाने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया. यह बताना आवश्यक नहीं है कि आप जिस विचारधारा से जुड़े रहे, उसे आम जनमानस में स्वीकृत होने में 70 सालों से ज्यादा समय लग गया, और देश इस बात का कृतज्ञ रहेगा कि आपने राष्ट्रवादी विचारधारा को अतिवादी होने से बचाया एवं उसे मुख्य धारा में समाहित करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया.

अटल बिहारी बाजपेयी को भारत-रत्न देने पर कुछ महत्वपूर्ण बयानों का ज़िक्र करना सामयिक होगा. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि- यूपीए(कांग्रेस) सरकार को पहले ही भारत-रत्न दे देना चाहिए था. वहीं बाजपेयी के सहयोगी रहे एवं अब भाजपा के प्रबल विरोधी नितीश कुमार ने बाजपेयी को भारत-रत्न देने की प्रशंसा करते हुए उनके उदार-हृदय की प्रशंसा करते हुए वर्तमान सरकार पर राजनैतिक निशाना साधने में देरी नहीं की. भाजपा के लौह-पुरुष कहे जाने वाले लाल कृष्ण More-books-click-hereआडवाणी ने भी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार का सच्चा हकदार बताया. आडवाणी जी के अतिरिक्त भाजपा से कोई ख़ास उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी. आप यदि इन तीनों ज़मीनी व्यक्तित्वों पर गौर करें तो कहीं न कहीं भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इनकी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता कटु रूप में जगजाहिर है. भाजपा के दो शीर्ष पुरुष, जिन्होंने भारतीय सत्ता पर अपना अधिकार सिद्ध किया है, वह अटल बिहारी बाजपेयी और नरेंद्र मोदी ही हैं. इसके साथ बिडम्बना यह भी है कि दोनों शीर्ष नेताओं की छवि जनता में बिलकुल अलग तरह की है. निसंकोच रूप से कहा जा सकता है कि भारत रत्न बाजपेयी और नरेंद्र मोदी दोनों अपने-अपने समय में जनता में बेहद लोकप्रिय हैसियत के नेता रहे हैं, लेकिन दोनों के प्रशंसकों में भी ज़मीन-आसमान का अंतर है. पिछले दिनों संघ के एक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला. उस कार्यक्रम में एक संघ के पुराने प्रचारक आये हुए थे. अपने भाषण (बौद्धिक) के दौरान वह उद्धृत करना नहीं भूले कि दिल्ली में अब 'राष्ट्रीय विचार एवं सत्ता के विचार' में एकरूपता आ गयी है. वह यह बताने से भी नहीं चूके कि 'अटल बिहारी बाजपेयी' के शासन काल में कथित 'राष्ट्रीय विचार एवं सत्ता के विचार' में एकरूपता नहीं थी, बल्कि कहीं न कहीं कन्फ्यूजन था. उस कार्यक्रम में ही क्यों, दिल्ली में पिछले दिनों हुई बहुचर्चित 'हिन्दू-कांग्रेस' में विहिप के अंतर्राष्ट्रीय पदाधिकारी अशोक सिंघल ने सीना ठोक कर कहा कि दिल्ली में 800 सालों बाद राष्ट्रीय विचार की सरकार बनी है. कितनी अजीब एवं कृतघ्न विडम्बना है कि जिन दो महापुरुषों ने संघ परिवार को मुख्य धारा में चलने लायक बनाया, उसको गांधी-हत्या, अतिवादी विचारधारा से बाहर निकाल कर लाने में मुख्य भूमिका निभाई, उन दोनों को हासिये पर डाल दिया गया है. आडवाणी को राजनैतिक रूप से परे धकेल दिया गया है, वहीं बाजपेयी से वैचारिक रूप से दूरी बनाने की कोशिश की जा रही है. खैर, अटलजी का कद इतना बड़ा है कि भारत रत्न उनको मिलना ही था, लेकिन संघ परिवार की तरफ से इस पुरस्कार पर कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आयी है, जिसको नोटिस किया जा सके, हाँ! सामान्य प्रतिक्रिया तो आएगी ही, क्योंकि बाजपेयी भी तो स्वयंसेवक ही रहे हैं. बाजपेयी की तरह संघ से तालमेल बिठाने में नरेंद्र मोदी भी कसरत कर रहे हैं, लेकिन वह सफल होंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा. हाँ! एक बात स्पष्ट है कि यदि नरेंद्र मोदी को भी भारत-रत्न कहलाना है तो उन्हें बाजपेयी से प्रेरणा लेनी ही होगी एवं उनके समरस, सद्भावना इत्यादि गुणों को ग्रहण करना ही होगा. 25 दिसंबर को बाजपेयी जी का जन्मदिवस है, मोदी भी उनसे 'राजधर्म' के आशीर्वाद की अपेक्षा कर रहे होंगे, क्योंकि असली 'राजधर्म' के ज्ञान की जरूरत नरेंद्र मोदी को अब है. तीन-चार दिन पहले बाजपेयी जी के ऊपर दो-पंक्तियाँ लिखीं थीं-

हे युगपुरुष! तुमको नमन
सींचा है तुमने नव चमन
दिया तंत्र सच में लोक को
जन जन के तुम आलोक हो


सद्भावना के कर्म फल
अनेकता में भी सफल
समरसता के प्रयत्न हो
तुम सच में ‘भारत रत्न‘ हो


- मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Bharat Ratn and Rajdharm, Atal Bihari Bajpayee and Narendra Modi, article in Hindi.

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Sunday 21 December 2014

'राष्ट्र निर्माण में पत्रकारों की भूमिका' विषय पर गोष्ठी का सफल आयोजन - Press Release on Journalism

by on 11:29

आज २१ दिसंबर २०१४ को, भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ़ एप्लाइड साइंसेज, सेक्टर-२, फेज-१ नई दिल्ली में आयोजित गोष्ठी में देश भर के नामी पत्रकारों सहित, पत्रकारिता के छात्र एवं क्षेत्रीय गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में 'राष्ट्र निर्माण में पत्रकारों की भूमिका' विषय पर गोष्ठी का सफल आयोजन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उत्तम जिला के माध्यम से संपन्न हुआ. श्री पवन सिंघल की अध्यक्षता में देश के नामी पत्रकार एवं ब्रॉडकास्टर्स एडिटर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी श्री एन.के. सिंह समेत, नेटवर्क-१८ से जुड़े श्री भूपेंद्र चौबे, हरियाणा के मुख्यमंत्री के ओएसडी श्री राजकुमार जी, हिंदुस्तान समाचार एजेंसी से जुड़े श्री भाला जी, राष्ट्र किंकर के संपादक डॉ. विनोद बब्बर, उत्तम नगर के जिला कार्यवाह श्री अंबरीश जी समेत अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने भारत माता के चित्र के सामने दीप-प्रज्ज्वलन करके कार्यक्रम की शुरुआत की.


 

कार्यक्रम का सफल सञ्चालन करते हुए भास्कराचार्य कॉलेज के आचार्य श्री विकास त्यागी ने सभी अतिथियों का पुष्प-गुच्छ से स्वागत कराने के उपरांत डॉ. विनोद बब्बर द्वारा विषय-परावर्तन किया गया. डॉ. बब्बर ने सटीक शब्दों में महाभारत के दो चरित्रों श्री कृष्ण एवं दिव्यदर्शी संजय का More-books-click-hereउद्धरण देकर पत्रकारिता को स्पष्ट करते हुए कहा कि पत्रकार केवल संजय की भांति कोर कॉमेंटेटर नहीं है, बल्कि उसका रोल श्रीकृष्ण की भांति देश को जगाने का है. श्री भूपेंद्र चौबे जी ने बाजारवाद को पत्रकारिता के ऊपर हावी बताते हुए जनता को कार्यक्रम पसंद न होने पर चैनल बदल देने या अख़बार न पढ़ने का तर्क दिया, जिसका विरोध करते हुए राष्ट्र किंकर के उप-संपादक मिथिलेश ने कहा कि यदि समाज के सभी वर्ग के लोग जनता को ही जिम्मेवार ठहराएंगे तो यह अपनी जिम्मेवारी से मुंह मोड़ने वाली बात होगी. हरियाणा के मुख्यमंत्री के ओएसडी श्री राजकुमार ने हरियाणा में जमीनों के बिकने के बाद आये अथाह पैसे के दुरूपयोग का ज़िक्र करते हुए उसे पत्रकारिता से जोड़ने की कोशिश की. मुख्य वक्ता के रूप में श्री एन.के. सिंह ने बड़ी स्पष्टता से कहा कि समाज के प्रत्येक वर्ग में गिरावट आयी है और उससे निश्चित रूप से पत्रकार जगत भी अछूता नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशंसा करते हुए श्री सिंह ने कहा कि समस्या का हल चरित्र निर्माण के अतिरिक्त कुछ और नहीं है. उन्होंने इशारों इशारों में चरित्र निर्माण की प्रथम पाठशाला यानि परिवार, संयुक्त परिवार की तरफ ध्यान दिलाया.


 

वहीं पत्रकार जगत में काम करने वाले व्यक्तियों को उन्होंने अपनी जरूरतें कम रखकर देश-सेवा करने को प्रमुखता से बताया. श्री भाला ने अपने सभी पत्रकार बंधुओं को हिंदुस्तान समाचार एजेंसी से जुड़कर राष्ट्रीय विचारों को आगे लाने का आग्रह किया. कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षीय भाषण श्री सिंघल के द्वारा संपन्न हुआ, जिसके बाद पत्रकारिता के विद्यार्थियों ने अतिथियों से प्रश्न भी किये. कार्यक्रम के अंत में उत्तम नगर ज़िले के कार्यवाह श्री अंबरीश जी ने सभी अतिथियों एवं पत्रकारों का आभार व्यक्त करते हुए भोजन प्रसाद लेने का आग्रह करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की.


-मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.


Press Release on Journalism in Hindi by Mithilesh

Saturday 20 December 2014

अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिवस पर - Poem on Atal Bihari Bajpayee by Mithilesh

by on 11:51

हे युगपुरुष! तुमको नमन
सींचा है तुमने नव चमन
दिया तंत्र सच में लोक को
जन जन के तुम आलोक हो


 

सद्भावना के कर्म फल
अनेकता में भी सफल
समरसता के प्रयत्न हो
तुम सच में 'भारत रत्न' हो


मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.


Poem on Atal Bihari Bajpayee, in Hindi by Mithilesh

Friday 19 December 2014

स्कूल जाते एक बच्चे की भावना - Poem on child feeling at Terrorism

by on 00:59

ना डरें हैं, ना डरेंगे
तुम जो भी कर लो
आतंक से लड़ते रहेंगे
बंदूकें अपनी पूरी भर लो


 

ना समझो हमको छोटी जान
वतन हमारा हिन्दुस्तान
नामो निशां मिटायेंगे
होने दो हमको तुम जवान


-मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.


 

Children-feeling-at-Peshawar-attack-poem-by-Mithilesh

Poem on child feeling at Terrorism

Type in Hindi Unicode - हिंदी टाइप टूल

by on 00:49
नोट - (यहां आप अंग्रेजी (रोमन हिंदी) में टाइप कर सकते हैं। जैसे- आपके द्वारा meri(space) rai(space) hai(space) टाइप करते ही ये वाक्य - 'मेरी राय है'  में बदल जाएगा।)




 

 

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Wednesday 17 December 2014

...खून से लथपथ है आज कुरान! Poem on Pakistan Army School Attack

by on 11:34

ऐ जिहादियों, दूर रहो हमसे
हम जानते हैं तुम्हें तबसे
जब पाकिस्तान बना था
तब भी वह खून से सना था
रोते-बिलखते मासूमों पर
तुम सबने कहर ढाया था



धर्म, शरीयत, जेहाद का नामgrowing-up-bin-laden-book
सडकों पर कर दिया नीलाम
थे तो तुम पहले से बदनाम
अब तो बन बैठे शैतान
बच्चों को भेज कर कब्रिस्तान
अल्लाह देगा तुम्हें कौन सा इनाम



लेकिन दोष सिर्फ नहीं है तुम्हाराMore-books-click-here
दोषी हैं वो भी जिन्होंने बनाया आवारा
भारत की पीठ पर छूरा मारना सिखाया
पर उस छूरे से वह खुद न बच पाया
अमेरिका, चीन ने दिए तुम्हें हथियार
मासूम कब्रों पर भाये उन्हें मानव अधिकार



उन सभी का डिगा होगा ईमानquran-islam
जो खुद को कहते हैं मुसलमान
शर्म उन्हें खुद पर आयी होगी
कायरता से 72 हूरें भी शरमाई होंगी
खून से लथपथ है आज कुरान
अब तो बन जाओ इंसान.



मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.


Poem on Pakistan Army School Attack by Mithilesh in Hindi.


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Terror and Jehaad

by on 04:04
कई हस्तियों ने पाकिस्तानी आर्मी स्कूल पर हमले को 'गैर-इस्लामिक' बताया है... मतलब! भारत में या सिडनी में जो हमला हुआ, या जो लादेन कर रहा था अथवा जो इस्लामिक स्टेट कर रहा है, वह 'इस्लामिक' है?? शर्मनाक थ्योरी...

 

attack on pakistan army school

Terror and Jehaad fb status in Hindi

Tuesday 16 December 2014

अल्लाह! उन बच्चों को 72 कमसिन हूरें न देना...! Pakistan Army School Attack and Jihadism

by on 14:58
पाकिस्तान के प्रति आज की घटना ने कइयों की तरह मेरे मन में भी सहानुभूति और पीड़ा का पहाड़ बना दिया है. यूं तो पाकिस्तान और उसके रहनुमाओं के लिए यह दो-चार दिन में भूल जाने वाली बात होगी, तथापि विश्व के लिए आतंक की शरणस्थली पाकिस्तान में हुई घटना बेहद चौंकाने वाली है. जिस प्रकार पेशावर के आर्मी स्कूल में 130 बच्चों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया, वह पाकिस्तान की एक राष्ट्र के रूप में मान्यता पर प्रश्नचिन्ह है. भारतीय प्रधानमंत्री ने इस कायराना हमले की निंदा करते हुए कहा, स्कूल में छात्रों और अन्य निर्दोष लोगों की जान लेने वाला यह एक ऐसा विवेकहीन बर्बरतापूर्ण कृत्य है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. आज जिन लोंगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, मैं उनके साथ हूं. हम उनके दर्द को महसूस करते हैं और उनके प्रति हमारी गहरी संवेदना है.

संवेदना का स्नेहलेप पूरे विश्व से आ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे हथियारों की खेप पाकिस्तान में आती है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और विदेश मंत्री जान केरी ने आतंक dadi-maa-ki-kahaniyaa-book-pustakके रूप में इन नयी चुनौतियों का ज़िक्र कर के अपनी खानापूर्ति कर ली है, परन्तु सवाल उठता है कि 21वीं सदी में मंगल और उससे आगे तक कुलांचे भरने वाले इंसान की इंसानियत कहाँ है. अरे! इस बेरहमी से तो कोई जानवर भी अपने शिकार की हत्या नहीं करता है. किसी की आँख में गोली, किसी बच्चे के दिमाग में, किसी के हाथ और पैर में और इससे भी उन जेहादी दरिंदों का जेहाद पूरा नहीं हुआ तो उन बच्चों की टीचर को ज़िंदा जला दिया. आह! मानव इतिहास में बाबर, औरंगज़ेब, हिटलर जैसे कई क्रूर लोग हुए हैं, जिन्होंने मानवता के प्रति घोर अपराध किया है, लेकिन यह अपराध, नहीं नहीं अपराध मत कहिये इसे, वहशीपन भी छोटा शब्द है इसके लिए... मेरी डिक्शनरी में शब्द नहीं मिल रहे हैं इस कुकृत्य के लिए... या रुकिए! 'जिहाद' इसके लिए उपयुक्त शब्द है शायद! हाँ! यह शब्द तो जाना पहचाना होगा आपके लिए भी, किन्तु पहले के तमाम छद्म परिचयों से अलग यह 'जिहाद' शब्द का असली परिचय है. हाँ! हाँ! भारत में मुंबई के 26 /11 हमले के मास्टर-माइंड हाफिज सईद ने अभी हाल ही में एक सभा की थी और उसमें भारत को धमकी देते हुए बोला था कि भारत, चुपचाप कश्मीर पाकिस्तान को दे दे, नहीं तो सारे मुसलमान 'जिहाद' के लिए तैयार हैं. बताना माकूल होगा कि 130 बच्चों की मौत से दुखी नवाज शरीफ की सरकार ने, विश्व समुदाय द्वारा प्रतिबंधित उस आतंकवादी की सभा के लिए बाकायदा सरकारी ट्रेनों की व्यवस्था करवाई और 'जिहाद' ज़िंदाबाद के नारे लगवाये. लेकिन यह सभी आम बातें हैं, विशेषकर पाकिस्तान के सन्दर्भ में जितना भी कह लिया जाय कम ही होगा.

धर्म की बुनियाद पर लाखों लोगों का खून बहाकर जिस पाकिस्तान की नीवं रखी गयी, वह भला सुख-चैन से रह भी कैसे सकता है. अंग्रेजी शासन के अंतिम प्रतिनिधि लार्ड माउंटबेटन ने पाकिस्तान के निर्माण के समय ख़ास रुचि ली थी, तब ब्रिटिश नीतिज्ञों के दिमाग में यह बात जरूर थी कि पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति एवं धर्म के आधार पर उसके कमजोर शासक पश्चिम की नीतियों के प्रति आने वाले समय में मुफीद रहेंगे. अफगानिस्तान, ईरान, चीन और भारत के मध्य पाकिस्तान जैसा सैनिक-बेस उन्हें भला कहाँ मिल सकता था. आज 130 से अधिक बच्चों की निरीह मौत पर मानवाधिकारों के कथित हिमायती पश्चिमी देश भले ही कितने घड़ियाली आंसू बहा लें, लेकिन पाकिस्तान को इन पश्चिम के देशों ने एशिया में अपनी राजनीति साधने के लिए हमेशा बौना बनाये रखा. रूस, चीन जैसी बड़ी महाशक्तियों और भारत जैसे विश्व के बड़े बाज़ार में पाकिस्तान के माध्यम से घुसपैठ बनाने का लगातार प्रयत्न किया है अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों ने.

पाकिस्तानी रहनुमाओं की बिडम्बना भी यही रही कि उन सभी ने सतही तौर पर भारत विरोध की राजनीति के सिवा दूसरा कोई काम किया ही नहीं. इस असफल देश का डगमगाता लोकतंत्र हो या उसके सैनिक शासक, सभी भारत विरोध की खेती करके अपनी आजीविका चलाते रहे. फांसी के तख्ते के करीब, देशद्रोह का आरोप झेल रहे पूर्व Buy-Related-Subject-Book-beसैनिक तानाशाह परवेज मुशर्रफ को जब अपने बचने का समस्त मार्ग बंद होते दिखाई देने लगा तो उन्होंने एक के बाद एक भारत विरोधी बयान देने का सिलसिला शुरू कर दिया. कभी भारत के प्रधानमंत्री को मुस्लिम विरोधी बताने का तो कभी कश्मीर को जेहादियों के भरोसे भारत से छीन लेने का. यह सिर्फ परवेज मुशर्रफ भर की बात भी नहीं है, बल्कि भुट्टो परिवार से लेकर शरीफ खानदान और इमरान की नयी ताज़ी दूकान के यही नज़ारे हैं. भारत-विरोध इनके लिए आसान रहा भी है, क्योंकि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा होने से दोनों देशों के नागरिकों के ज़ख्म थे ही, और एक के बाद एक चार सीधी लड़ाइयां और वर्षों से छिड़े छद्म युद्ध ने इस ज़ख्म पर लगातार नमक ही छिड़का है. ऊपर से तुर्रा यह कि इस्लाम, जिहाद के नाम पर 99 फीसदी मुसलमानों से जो भी करवा लो, वह राज़ी हो जाते हैं, क्योंकि उनको जन्नत में कथित तौर पर 72 कमसिन हूरों के साथ जश्न मनाने का सपना सच करना होता है. मुस्लिम समाज की कई बिडम्बनाओं में से यह भी एक बिडम्बना ही है. खैर, बदले वक्त में भारत की बढ़ती ताकत से विश्व की तमाम महाशक्तियां सजग हो गयीं और उन्होंने पिछले दशकों में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ खूब इस्तेमाल किया. अमेरिका के हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश पाकिस्तान रहा ही है, अभी हाल ही के दशकों में चीन के हाथों में खेलना पाकिस्तान को खूब रास आ रहा है. सुना तो यहाँ तक है कि दहशतगर्दों को हथियार के साथ सधी हुई मिलिट्री ट्रेनिंग चीन के सैनिक भी दे रहे हैं. बंदरगाह के साथ पाकिस्तान द्वारा काबिज कश्मीर में चीन को रास्ता देना इत्यादि पाकिस्तानी राजनीति के दिवालियेपन को प्रकट करने के लिए काफी है. यहाँ तक कि नेपाल में दक्षेस सम्मलेन में हो रहे समझौतों पर नवाज शरीफ ने जिस प्रकार रोड़ा अटकाया वह चीनी इशारे पर ही था. महान नीतिज्ञ चाणक्य ने कहा है कि दोस्ती और दुश्मनी हमेशा बराबर वालों में ही करनी चाहिए. इस उक्ति पर पाकिस्तान जरा भी अमल कर ले तो उसे समझ आ जाएगी कि चीन और अमेरिका उसके दोस्त न कभी थे, न कभी हो सकते हैं. अमेरिकी कभी भी उसके घर में घुसकर लादेन को मार सकते हैं तो अपनी दोस्ती का दम भरने वाले चीनी राष्ट्रपति भारत तो आ सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान को ठेंगा दिखने में जरा भी परहेज नहीं करते हैं. इमरान खान जैसे बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञ भी तालिबान की जिस प्रकार हिमायत कर रहे हैं, उससे नुक्सान सिर्फ पाकिस्तान का ही हुआ है.

पाकिस्तानी हुक्मरानों को यह बात साफ़ समझ आ जानी चाहिए थी कि भारत में पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान हैं और आज़ादी के बाद से अब तक उनके मन में पाकिस्तान के प्रति बेहद सॉफ्ट कार्नर रहा है. यदि पाकिस्तान ने इस सॉफ्ट कार्नर का प्रयोग अपने यहाँ उद्योग, व्यापार को बढ़ाने में किया होता तो पाकिस्तान आज खिलौना नहीं बना More-books-click-hereरहता. बेहद आंतरिक राजनीति की बात है यह. अब तो उसकी नालायकी से भारत के मुसलमान भी कन्नी काटने लगे हैं और जैसे-जैसे समय बीतेगा भारत का मुसलमान पाकिस्तान से दूर होता जायेगा. लाखों पाकिस्तानियों का जीवन-यापन भारत के ऊपर निर्भर है. बॉलीवुड से लेकर, कपडे तक के कारोबार को यदि तरजीह दी गयी होती तो पाकिस्तान कहाँ से कहाँ पहुँच सकता था. लेकिन अब स्थिति बेहद तेजी से बदल रही है और पाकिस्तान गृह-युद्ध की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. उसे ग़लतफ़हमी है कि चीन या अमेरिका भारत के खिलाफ उसका साथ देंगे. उसकी ग़लतफ़हमी कश्मीर मुद्दे को लेकर दूर हो जानी चाहिए थी, जब वह चिल्लाता रहा और कोई देश सुनने को राजी न हुआ. लेकिन धर्मांध लोगों को अक्ल कब आयी है, जो आज आएगी. यूं भी विश्व पर काबिज़ ईसाई समुदाय की मंशा कुछ और ही है, जिसकी झलक मुस्लिम समाज को मिल ही गयी होगी, लेकिन उसके पुरोधा भारत के साथ 130 निरीह बच्चों के खिलाफ जिहाद करें तो इसे धर्मान्धता के अतिरिक्त कुछ और नहीं कहा जा सकता. जहाँ तक भारतीय मुसलमानों की बात है, उनमें से अधिसंख्य मुसलमान इन बातों को समझ चुके हैं और कम से कम पाकिस्तानी मुहाजिरों के साथ असली पाकिस्तानियों की दुर्गति से उनकी सोच काफी बदली है. जो थोड़ा बहुत बदलाव है, वह भी समय के साथ हो जायेगा, इस बात में कोई दो राय नहीं है. ईश्वर, अल्लाह उन बच्चों की रूह को शांति दे, हाँ उन बच्चों को 72 कमसिन हूरें न दे, आखिर वह बच्चे अभी बालिग़ नहीं थे, नवीं-दसवीं के बच्चे थे. उन बिचारों को क्या पता होगा कि जिहाद की असलियत क्या है? पाकिस्तानी आर्मी स्कूल पर हुए हमले में घायल एक बच्चा टीवी पर रोते हुए कह रहा था कि वह बड़ा होकर- इन जिहादियों, आतंकियों की नस्ल को ख़त्म कर देगा. आह! उस मासूम को क्या पता... उसके अब्बु, चाचू, अम्मी और उसके पड़ोसी ही उन जिहादियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं या खुद ही जिहाद करते हैं. काश! वह बच्चा समझ पाता... !!! और समझ पाते यह बातें पाकिस्तानी हुक्मरान... !!

मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Pakistan Army School Attack and  Jihadism
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Pakistan Army School attack fb comment in Hindi

by on 04:27
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हे भगवान, अल्लाह!! तूने शैतानों को खुला क्यों छोड़ दिया है ...
तेरे नाम पर ये जिहाद करते हैं, कश्मीर में आवाम को मारते हैं, ऑस्ट्रेलिया में बंधक बनाते हैं,... और अब बच्चों को ... छी !!

Pakistan Army School attack fb comment in Hindi

Monday 15 December 2014

बच्चा भाई के 'मन की बात' - Man ki baat - Bachcha Bhai!

by on 15:14
आज बच्चा भाई बड़े नाराज दिख रहे थे. नाराजगी में उनका चेहरा और भी बिचारा बन जाता है. मैंने सोचा कि उनकी बगल से नजर बचाकर निकल जाऊं, पर आज तक कभी बचा जो आज बच जाऊंगा. उनके घर के सामने से सड़क जाती है, और वही हमारे निकलने का मुख्य रास्ता है, साथ में मैं हूँ- हाँ करता रहता हूँ, बातचीत में वाह-वाह भी कर देता हूँ, इसलिए बच्चा भाई शाम के समय मेरे इन्तेजार में अपनी बैठक को छोड़ते नहीं हैं. देखते ही बोले- मिथिलेश जी ! रविवार को नहीं दिखे, घर में दुबके रहे, अब क्या सोमवार को भी नहीं मिलने का इरादा है. मैंने ही-ही करते हुए कहा, अरे नहीं भाई जी! कल वो बिजली के साथ बरसात हो रही थी और मुझे 'बिजली' से हमेशा डर लगता है? हाँ- हाँ, क्यों नहीं, बिजलीबाई डराने वाली चीज ही है! मैंने कहा, अरे नहीं भाई जी! वो वाली बिजली नहीं, मैं तो आसमान वाली चमकती, कड़कती बिजली की बात कर रहा हूँ. हाँ! हाँ! आओ बैठो मेरे पास. वो भाई जी! मैं,... मैं ... ... मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह बोले, अरे सुन यार! यहाँ देश की ज़िंदगियाँ दांव पर लगी हुई हैं और तुझे अपनी पड़ी है. देश की बात, वह भी बच्चा modi-ji-conversionभाई की चाय के साथ, मेरी कमजोरी बन चुकी थी. सब्ज़ी लाने निकला था, पर हिम्मत कर के सोचा कि थोड़ी देर देश के लिए निकाल लिया तो कौन सी आफत आ जाएगी. हिम्मत इसलिए करनी पड़ी क्योंकि दो दिन से सब्ज़ी लाने के बहाने बना रहा था, और आज घर पर खूब जली-कटी सुनने के बाद निकला था. मन में सोचा! भगवान जाने, क्या हाल करायेगा ये बच्चा भाई! फिर देशभक्ति के भाव ने भगत सिंह से लेकर वीर सावरकर के कालापानी को याद किया और भावी भय को हृदय के किसी कोने में दुबका दिया. बच्चा भाई से किसी खांटी देशभक्त की तरह पूछा- क्या हो गया है देश और उसकी ज़िन्दगियों को. बच्चा भाई ने कहा- मोदी जी ज़िन्दगी ज़ीने से मना कर रहे हैं! मैंने कहा मोदी जी! क्यों मजाक कर रहे हो आप? मैंने देश के ऊपर कभी मजाक किया है, जो मजाक कर रहा हूँ, बच्चा भाई ने संजीदगी से कहा. अरे भाई, तुम्हें ग़लतफ़हमी हुई होगी, कान साफ़ किया करो, मैंने थोड़ा कड़े स्वर में कहा. यूं भी देश और देशभक्ति के साथ मोदीजी के बारे में कुछ सुनना मुझे पसंद नहीं हैं, इन तीनों शब्दों को मैं पर्यायवाची कहता हूँ. लेकिन बच्चा भाई ने मेरे गुस्से की परवाह न करते हुए मेरी ही जानकारी पर प्रश्नचिन्ह लगते हुए प्रश्न दागा- रेडियो-टीवी नहीं देखते हो का! इसी इतवार को मन की बात में तो कह रहे थे देशवासियों से कि ज़िन्दगी जीना छोड़ दो! मैंने कहा कि वह तो 'नशा छोड़ने' की बात कह रहे थे. हाँ! वही तो ... पंकज उधास की गाई उस गजल की लाइन भूल गए हो मिथिलेश जी, जो कहती है- 'ज़िन्दगी एक नशे के सिवा कुछ नहीं, तुमको पीना न आये तो मैं क्या करूँ'. अभिप्राय समझते ही हम दोनों ठहाका लगाने लगे.

third-frontमैंने कहा बात कुछ जमी नहीं भाई जी! नशे से कितने लोग बर्बाद हो रहे हैं, उनको सही रास्ते पर लाने की कोशिश ही तो की मोदी जी ने और आप उनको खिंच रहे हो. बच्चा भाई भी पूरे मूड में बैठे थे, बोले- तुम्हें तो फ़िल्मी नगरी का ज़रा भी ज्ञान नहीं है, करोड़ों-अरबों का वारा-न्यारा करने वाली इंडस्ट्री का दर्द भी तो समझो. वह देवदास में शराब पीकर लड़खड़ाता हुआ हीरो कहता है न कि- हम तो इसलिए पीते हैं कि बर्दाश्त कर सकें. यह तो मोदी नहीं हुए पारो हो गए, जो प्यार में नाकाम रहे देवदास से कहती है- शराब छोड़ दो. अरे जो लोग ज़िन्दगी में नाकाम होते हैं वह कहाँ जायेंगे. मैंने बच्चा भाई की बात काटते हुए कहा कि मोदी जी ने इसका हल भी अपने मन से बता दिया है कि माता-पिता बच्चों को कुछ लक्ष्य दें और फेल होने पर उनका उत्साह बढ़ाएं. मेरे इतना कहते ही ज़ोर-ज़ोर हँसते हुए बच्चा भाई बोले, यार तुम भी कलम चलाते हो, अकल को भी चला लिया करो. अब आडवाणी जी, सुषमा जी, सोनिया जी और बिचारे तीसरे मोर्चे की झालर के फ्यूज बल्बों का कौन से माँ-बाप उत्साह बढ़ाएंगे, इसलिए वह गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने से लेकर धर्मान्तरण, जेहाद और जाने क्या-क्या नशा करने और कराने पर उतारू हैं. मैंने कहा- बच्चा भाई! इसके लिए भी मोदी जी ने रेडियो द्वारा सोशल मीडिया पर जागरूकता के लिए मुहीम चलाने की बात भी तो की है. बच्चा भाई लगभग चिल्ला उठे! सोशल मीडिया, फेसबुक, ट्विटर तो खुद एक नशा है, आफिस में, घर में, बिस्तर में हर जगह विवाद ही विवाद. देश की प्रोडक्टिविटी बढ़ाने का सपना दिखाने वाले मोदीजी को सोशल मीडिया के कारण समर्थन मिलता है, उनके मुफ्त के अंधभक्त उस पर विरोधियों की खाल खींचने को तैयार रहते हैं, इसलिए वह हैशटैग की बात करेंगे ही, लेकिन बॉस से लेकर बीवी तक इस सोशल मीडिया से परेशान हैं.

लगे हाथ बच्चा भाई ने एक चुटकुला भी सुना डाला, एक बुढ़िया का मजाक उड़ाती हुई किसी नवविवाहिता ने उससे कहा कि दादी माँ- आप लोगों के समय में दस-बारह बच्चे कैसे हो जाते थे. बुढ़िया ने तपाक से उत्तर दिया- बेटी! हमारे ज़माने में सोने के समय हम लोग फेसबुक, वाट्सअप पर अपना समय खराब नहीं करते थे. मैंने सोचा कि इससे पहले कि घर पर मेरी बखिया उधड़े, मैं वहां से सरक जाऊं, बहाना बनाया कि- चलो! योग दिवस तो मोदीजी ने घोषित करवा दिया, आप तब तक दो-चार आसान करो, मैं सब्ज़ियाँ लेकर आता हूँ. योग की बात कहनी थी कि बच्चा भाई फूट पड़े- अरे! योग पहले अपने मंत्रियों को तो सिखाएं महोदय! किसी को भी 'जीभ में गाँठ' वाले योग की प्रेक्टिस ही नहीं है. मोदीजी, चीन से मुकाबले की बात कह कर देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए ज़ोर लगा रहे हैं, वहीं उनके मंत्री देश को पाकिस्तान की तरह 'धार्मिक-एडवेंचर' का अखाड़ा बनाने पर तुले हैं. कभी रामज़ादों, हरामजादों, कभी गोडसे तो कभी पृथ्वीराज चौहान की तरह हिन्दू शासक का निरर्थक बयान. आखिर, अकेले बाबा के योग करने से क्या होगा? वैसे 'जीभ में गाँठ लगाने' वाला योग तो उनको भी नहीं आता था, तभी तो लड़कियों की सलवार.... !! मैंने आखिरी दांव फेंका और कहा कि BACHCHA-BHAI-CHARACTER-mithilesh2020बच्चा भाई! आप केवल आलोचना करना जानते हो, देश में पहला ऐसा प्रधानमंत्री हुआ है, जिसने देश के मुख्यमंत्रियों के साथ बिना नौकरशाही की कृपा के 'दिल से दिल मिलाओ' अभियान चलाया और पूरे ढाई घंटे तक मोदी के साथ दिल विल प्यार व्यार खेलते रहे. चिढ़ते हुए बच्चा भाई बोले! काहे का दिल मिलन! उत्तर प्रदेश का युवा तो कहता है कि जबरदस्ती मुझे झाड़ू पकड़ाने पर मोदी जी उतर आये हैं, मैं झाड़ू नहीं पकडूँगा, मैं अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का बच्चा हूँ तो क्या मोदीजी भी मुझे बच्चा ही समझ बैठे हैं. वहीं पश्चिम बंगाल की नायिका तो मोदीजी का जुबानी बुरा हाल करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं. फिर काहे का दिल-मिलन. इससे पहले की हमारी लड़ाई आगे बढ़ती, बच्चा भाई मेरे गुस्से को भांपते हुए बोले- जाओ, तुम्हें सब्ज़ी भी तो लेनी है, घरवाली खाना नहीं देगी तो फिर मेरे खिलाफ ही गुस्सा निकालोगे. फिर मेरे घावों पर लेप लगाते हुए बोले- वैसे सब्ज़ियाँ सस्ती हुई हैं, जाओ नहीं तो बरसात फिर शुरू हो जाएगी. मैं भुनभुनाता हुआ बैठक से बाहर निकल आया और प्रतिज्ञा की कि अगली बार इसके सामने ही नहीं पडूंगा.  इस बच्चा भाई की तो ... !!

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Man ki baat - Bachcha Bhai, article by Mithilesh in Hindi.
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Friday 12 December 2014

एक नया पैगंबर लाइए, ... जनाब! - Hindu, Muslim and The Nation !

by on 10:37
भारत में इस समय जिस घटना पर सड़क से संसद तक हंगामा मचा हुआ है, वह निश्चित रूप से धर्मान्तरण का मुद्दा है. विपक्ष तो इस बात पर जो हंगामा मचा रहा है, वह है ही, लेकिन हिन्दू संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवी भी इस पूरे प्रकरण पर अंदरखाने बेहद नाराज बताये जा रहे हैं. उनके अनुसार आरएसएस कोई आज से हिंदुत्व के समर्थन में कार्य तो कर नहीं रही है, बल्कि इससे बेहतर कार्य, जिनमें घर-वापसी और मिशनरियों से आदिवासी, पिछड़ों की रक्षा के कार्य शामिल थे, पिछली यूपीए सरकार के दौरान हो रहे थे. संघ के कई नेताओं का मुस्लिम नेटवर्क बहुत जबरदस्त था (अब भी है) और लाखों मुसलमानों को राष्ट्रवादी विचार से जोड़ने का श्रेय इसी संगठन को है. तब चूँकि कार्य बेहद सुनियोजित ढंग से हो रहा था और छुटभैये और हल्के लोग सरकारी डर के कारण सामने आने से कतराते थे. अब जिसको देखो, संघ, बीजेपी और मोदी की नज़रों में अपना नंबर बढ़ाने में लगा हुआ है और इस चक्कर में बहस कहीं से कहीं रास्ता भटक रही है. इसके अतिरिक्त आम चुनावों के बाद मोदी की छवि जिस प्रकार आम जनता में और मजबूत हुई है, उसने संघ को कहीं न कहीं चिंतित भी किया है. पत्रकारीय हलकों में इस बात पर जोरदार चर्चा हो रही है कि मोदी को साधने में संघ ने अपने घोड़ों को तेजी से दौड़ाया है.

संसद में इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू से यह कहते हुए सदन से वाकआउट किया कि आप के हाथ में यदि सत्ता रही तो आप देश को तोड़ दोगे. खैर, मुलायम का चरित्र भी कोई कम सांप्रदायिक नहीं रहा है, जो उनको देश का खैरख्वाह माना जाय. मसला यह है कि अंदरखाने More-books-click-hereइन बातों से पक्के हिंदूवादी छवि वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खुश नहीं बताये जा रहे हैं. वह चूँकि भारत के प्रधानमंत्री हैं और उनके नाम पर ही आम भारतवासियों ने वोट किया है, इसलिए यह दोहराना आवश्यक है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर उनका रूख अपनी छवि के विपरीत ही रहा है. गुजरात में जब वह मुख्यमंत्री थे, तब कहा जाता है वहां संघ या उसके आनुषंगिक संगठनों की बोलती बंद थी. आग उगलने वाले प्रवीण तोगड़िया को तो उन्होंने कई बार चुप कराया था. यही नहीं, सड़कों के विकास में कई मंदिरों को तोड़ने में उन्होंने ज़रा भी संकोच नहीं दिखाया. अब जब उन्हें प्रधानमंत्री बने 6 महीने से ज्यादा हो चुके हैं, तो खालिस संघी राजनीति से उन्हें भी दो-चार होना पड़ रहा है. हाल ही में आयोजित हिन्दू कांग्रेस बड़ी चर्चित हुई. उस सम्मलेन में विहिप के अशोक सिंघल ने कहा कि 800 सालों बाद कोई हिन्दू शासक दिल्ली की गद्दी पर बैठा है. इसके तुरंत बाद जब सांसद साध्वी ने रामज़ादों, हरामजादों का बयान दिया तो मोदी फूट पड़े. कड़ी चेतावनी देते हुए उन्होंने संघी राजनीति को नियंत्रित करने की कोशिश भी की, जिसमें साध्वी को मांफी तक मांगनी पड़ी. लेकिन केंद्रीय राजनीति और प्रदेश की राजनीति में अंतर मोदी को अब समझ आ रहा होगा. साध्वी को दी गयी चेतावनी का कोई खास असर संघ पर हुआ नहीं, बल्कि उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने का असमय मुद्दा छेड़ा गया और अब धर्मान्तरण के मुद्दे पर एक राष्ट्रीय बहस छेड़ दी गयी है. कितने मुसलमान या ईसाई हिन्दू बने, यह प्रश्न पीछे छूट गया और मीडिया में यह छवि प्रचारित हो गयी कि इस सरकार पर हिंदूवादी हावी होने की कोशिश कर रहे हैं, या हिंदूवादी राजनीति के जरिये समाज को बांटने की कोशिश में सरकार साथ दे रही है. नरेंद्र मोदी की आम चुनाव से पहले चाहे जो छवि रही हो, लेकिन आम चुनाव के समय से उनके बारे में जो धारणा बनी, विशेषकर युवा-वर्ग में, वह निश्चित रूप से यही थी कि यह बंदा किसी खास सम्प्रदाय का तुष्टिकरण नहीं करेगा, बल्कि उससे आगे बढ़कर लोगों की रोजी-रोटी की समस्या सुलझाने पर जोर देगा.

नरेंद्र मोदी खुद भी इस अपेक्षा से अनजान नहीं हैं. उनका राजनैतिक कौशल ही कहा जायेगा कि एक के बाद एक विदेश यात्राएं, निवेश कार्यक्रम, आर्थिक अवधारणाएं इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति में इतनी तेजी से चले हैं कि किसी और विवाद के लिए बीते छः महीनों में किसी को समय ही नहीं मिला है. विरोधी तो विरोधी संघ के गहन विचारकों तक को उनकी इस योजना को समझने में समय लग रहा है. संघ बेशक, विचारकों को तैयार करता है, राष्ट्रवाद - हिन्दुवाद की घुट्टी पिलाकर उन्हें जवान करता है, मुसलमानों के बारे quran-islamमें तमाम ऐतिहासिक चर्चाओं को सुन सुनकर, रट रटकर वह विचारक प्रौढ़ होता है, और यह बात उद्धृत करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि मुसलमानों को हिंदुत्व और राष्ट्र के लिए संघ बड़ा खतरा मानता है. यह विचार कोई नया नहीं है और इस्लाम को लेकर यह अवधारणा स्थानीय या भारतीय भर नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक अवधारणा बन चुकी है. लोग अपने आस पास किसी मुसलमान को देखकर सजग हो जाते हैं, अपनी सोसायटी में उन्हें रखना उन्हें सहज नहीं लगता है. आखिर विश्वास जमे भी तो कैसे, अलकायदा के लादेन को गए अभी कुछ साल भी नहीं हुए कि ख़लीफ़ाई, कबीलाई तर्ज पर इस्लामिक स्टेट नामका संगठन खड़ा हो गया. यही नहीं, भारत के कई मुसलमान युवक इसमें पकडे गए. और तो और यह लेख लिखे जाने तक पता चला है कि 'आईएस' के आफिशियल ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट भारत के 'बंगलौर' से की जा रही थी. ऐसे में सिर्फ आरएसएस को मुस्लिम विरोधी कैसे कहा जा सकता है. यह एक कटु सच है कि इस्लाम की मतान्धता को लेकर सम्पूर्ण विश्व में उसको संदिग्ध नजर से देखा जा रहा है. चरमपंथी, आतंकवादी, जेहाद, हिंसा, मुसलमान जैसे शब्द अब समानार्थी लगने लगे हैं. पर हल क्या है? हल इतना सरल भी नहीं है कि तुरत फुरत में मिल जाय और दुनिया में शांति व्याप्त हो जाय. विचारकों के अनुसार इस्लाम और दुसरे धर्मों में जो सबसे मूल अंतर समझ आता है, वह इसका जड़ होना बताया जाता है. इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरआन की कई आयतों का उदाहरण देकर विरोधी उसे हिंसा को बढ़ावा देने वाली बातें मानते हैं. ऐसा नहीं है कि यह पहला ऐसा धर्म-ग्रन्थ है जिसकी कमियों की चर्चा होती है, बल्कि हाल ही की बात है जब रूस में गीता को कुछ ऐसे ही कारणों से प्रतिबंधित करने की गलत कोशिश हुई थी. हालाँकि रूसी सरकार को अपना प्रतिबन्ध वापस लेना पड़ा. लेकिन हिंदुत्व के बारे में सोचने पर यह लगता है कि इसमें विचारों की आज़ादी से बदलते युग के साथ धर्म में नूतनता तो आती ही है, धर्म के नियम-कायदे भी प्रैक्टिकल बने रहते हैं. ज़रा सोचिये, यदि हिन्दू धर्म में सिर्फ एक ही ग्रन्थ की मान्यता होती और यदि वह गीता होती तो हिन्दुओं का जीवन कैसा होता. लेकिन यह हिंदुत्व का सौभाग्य है कि किसी परिस्थिति में गीता के श्लोक मानव जीवन को अपना कर्त्तव्य करने की प्रेरणा देते हैं तो दूसरी परिस्थिति में रामायण के राम त्याग करने की प्रेरणा देते हैं. स्वामी दयानंद उसी विशेष परिस्थिति में मूर्ति पूजा का विरोध करते हैं तो स्वामी विवेकानंद हिन्दू-दर्शन को एक नयी ऊंचाई प्रदान करते हैं. कोई ग्रन्थ, व्यक्ति कितना भी महान क्यों न हो, लेकिन परिस्थिति के अनुसार उसमें बदलाव आवश्यक है, नहीं तो उसका अस्तित्व मिट जायेगा. श्रीमदभगवद गीता के ही शब्दों में कहें तो 'परिवर्तन संसार का नियम है', इस्लाम और उसके फालोवर इस परिवर्तन के सिद्धांत को नकार देता है. जहाँ तक आम लोगों की समझ है, इस मान्यता में न तो नवीन विचारों की जगह है और नवीन विचारों के प्रति असहिष्णुता तो जगजाहिर है.

एक चुटकुला इस सन्दर्भ में बड़े ज़ोरों से चलता है. एक किसी दुसरे धर्म के व्यक्ति को मुसलमान बनने का शौक चढ़ा, तो उनका खतना किया गया, बिचारे को बड़ा दर्द हुआ. बातूनी थे महाशय, वहां गए तो बोलने पर पाबन्दी लगा दी गयी, इसलिए उक्त कर इस्लाम छोड़ने की बात बोल दी. बस फिर क्या था- चार धर्मांध युवक तलवार लेकर उनके Buy-Related-Subject-Book-beसामने खड़े हो गए और बोले- इस्लाम से जाने की बात बोलोगे तो गला काट देंगे. बिचारे डरते हुए बुदबुदाये- अजीब जगह है यार! आओ तो नीचे से काटते हैं, जाओ तो ऊपर से ... !! जिस धर्मान्तरण पर इतनी हाय-तौबा मची है, वह बिचारे गरीब मुसलमान डरे हुए हैं. हालाँकि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 1977 के अपने एक फ़ैसले में कहा था कि अपनी मर्ज़ी से धर्म परिवर्तन करना ग़लत नहीं है, लेकिन इस्लाम इस मामले में अब तक उदार नहीं बन पाया है. यदि ऐसा नहीं होता तो तस्लीमा नसरीन, सलमान रूश्दी जैसे व्यक्तियों को अपनी जान बचाने की खातिर यहाँ-वहां भागना नहीं पड़ता. यदि गौर से देखा जाय तो तस्लीमा जैसे लोग वास्तव में इस्लाम का भला चाहते हैं, इसलिए उसे अपडेट करने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं. इन उदाहरणों के अतिरिक्त नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफ़ज़ई का नाम हमारे सामने है. जहाँ एक तरफ पूरे विश्व में उसकी सोच और हिम्मत की ख्याति हो रही है, वहीं दूसरी ओर मुस्लमान उसे बुर्के वाली पर्दानशीं बनाये रखने पर आमादा हैं. भारत में भी आमिर खान बड़े समाज-सुधारक के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं. 'सत्यमेव जयते' नामक कार्यक्रम से उन्होंने बड़ी ख्याति अर्जित की है, लेकिन इस्लाम की तमाम बुराइयों में एक की तरफ भी देखने की हिम्मत वह नहीं कर सके हैं, क्योंकि वह जानते हैं यदि उन्होंने बुरका-प्रथा, बहु-विवाह, हिंसा का मुद्दा छुआ भी तो भारत जैसे धर्म-निरपेक्ष देश की पुलिस और प्रशासन भी उनकी रक्षा नहीं कर पायेगी और उन्हें भी किसी लन्दन या पेरिस में शरण लेना पड़ेगा. यही नहीं, वह हज की यात्रा करके अपनी मुस्लिम छवि को पुख्ता करने का प्रयास करते हैं. यह हालत तो तब है जब अधिकांश बड़े मुस्लिम नाम समाज सुधारक का चोला ओढ़ने की कोशिश करते हैं, bhagavad-gita-lord-krishnaयदि उन्होंने धर्म पर एक शब्द भी बोला तो उनकी जान गयी समझो. एकाध जो निकलते हैं, वह राजनीति के शिकार बन जाते हैं और किसी जिन्ना की भांति मानवता का खून बहाने की ठान लेते हैं. लेकिन इसके अलावा रास्ता क्या है? मुझे नहीं लगता कि यदि खुद मुसलमान अपने धर्म को आधुनिक नहीं बना सकते, ज़माने के साथ तालमेल नहीं बिठा सकते तो यह कार्य कोई हिन्दू संगठन या किसी ईसाई देश की राजनीति कर सकती है. जरूरत इसी बात की है कि इस्लाम के अंदर से विचारक बाहर निकलें और उन्हें दुनिया सपोर्ट करे, यदि जरूरत हो तो कोई नया पैगंबर बनाया जाय. यदि हिन्दुओं के अवतार हो सकते हैं, ईसाइयों के ईसामसीह दुबारा आ सकते हैं या पोप के माध्यम से ईसाई समाज का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं तो मुसलमानों के दुसरे पैगंबर भी हो सकते हैं और अपने धर्म को मानव समाज के कल्याण के लिए प्रेरित कर सकते हैं. यदि मुसलमान आज शक की निगाह से देखे जा रहे हैं, गुमराह हो रहे हैं, अशिक्षित बन रहे हैं, जेलों में नारकीय जीवन बिता रहे हैं, उनकी वैश्विक पहचान संदिग्ध हो रही है तो उनको बेहतर जीवन दर्शन देने के लिए एक नया पैगंबर क्यों नहीं बनाया जा सकता है. आरएसएस ने मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाने का जो क्रम शुरू किया था और अमेरिका ने मलाला के माध्यम से इस्लाम की बुराइयों को उभारने का जो प्रयास शुरू किया है, इन प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. हाँ! इन प्रयासों में दिक्कत तब शुरू हो जाती है जब अमेरिका लादेन जैसों को, मुशर्रफ जैसों को पहले पैदा करता है और बाद में अत्याचारों पर पर्दा डालने उसके सीआईए के अधिकारी सामने आकर जासूसी संस्था द्वारा मानवाधिकारों को कुचले जाने को जायज़ ठहराते हैं. यही बात हिंदुत्व के समर्थकों को भी समझ लेनी चाहिए कि क्या वह देश के 20 करोड़ मुसलमानों को हिन्दू धर्म में वापिस लाने की सोच रखते हैं या उनकी सोच को राष्ट्रवादी बनाने का विकल्प बेहतर है. और 20 करोड़ ही क्यों, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के बारे में अमेरिका का आंकलन भी बदल गया है. मेरे ख़याल से इस्लाम को अपनी रूढ़िवादिता पर विचार करने के लिए तैयार करना ज्यादा बेहतर विकल्प साबित होगा.

एक तो भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में प्रत्येक नागरिक अपने धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन यदि कहीं कुछ राष्ट्रहित में नहीं दिखता है तो उसके प्रति व्यापक rss-sanghदृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है. यह बात अब कुतर्क की श्रेणी में ही आएगी कि 'मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्याचार करके उन्हें मुसलमान बनाया, तो अब हम वही करेंगे.' आँख के बदले आँख वाले सिद्धांत से पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी. हिन्दू संगठनों को यह बात याद रखनी चाहिए कि आम हिन्दू उदार है और उस सिद्धांत का पोषक है जिसमें उसके भगवान विष्णु की छाती पर एक व्यक्ति लात मार देता है और वह सह जाते हैं. बहुत खून बह चूका है पिछले 800 सालों में, जिम्मेवार कौन है इस पर बहस से क्या फायदा! वैसे भी यदि बाबर ने 500 सालों पहले तलवार के बल पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया और अब हिन्दू संगठन वही करने की कोशिश करें तो इसे निरा बेवकूफी ही कही जाएगी. यूं भी हमारे देश के युवक मंगल पर जाकर पूरी वसुधा का मंगल करने की कोशिश कर रहे हैं और हम इस बहस में उलझे हैं कि भगवान या खुदा की प्रार्थना हाथ जोड़कर करें या घुटने मोड़कर. सोच बदलो, देश बदलेगा!

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Hindu, Muslim and The Nation, Article by Mithilesh in Hindi

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Priyanka Gandhi Political Symptoms by Indira Gandhi in a book

by on 05:00
Priyanka Gandhi Political Symptoms by Indira Gandhi in a book

 

 

गांधी परिवार के किसी करीबी ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि- स्व.इंदिरा गांधी ने प्रियंका गांधी के बचपन में ही उनकी राजनीतिक प्रतिभा को पहचान लिया था.

बच्चा भाई बोले- सही कहा, जवानी में प्रियंका ने एक ही काम किया, जो उनकी राजनीतिक समझ पर मुहर लगा देता है. ..... अरे भाई, खालिस हीरे जैसा दूल्हा चुना है. क्यों वाड्रा जी!

 

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मन को अपने क्या समझाऊँ - Poem on Humanity

by on 02:43

वह कुछ कहता, उससे पहले
चिल्ला उठी मेरी ईमानदारी
सही खुद को, गलत उसे बताऊँ


 

वह कुछ मांगता, उससे पहले
खुसर-फुसर करने लगी सच्चाई
झूठ सब कहते, मैं क्यों शरमाऊँ


 

जुल्म हो जाय, उससे पहले
सिकुड़ गयी मेरी तरुणाई
फट्टे में टांग क्यों अड़ाऊँ


 

रुक मत, और डाल कमीने
रंगीन पानी पी तन ने ली अंगड़ाई
खुद को अब क्या कहलाऊं


 

Buy-Related-Subject-Book-beदेखते ही उसे, पहले पहल
मन नाचा, मचली तन्हाई
इस सोच पर क्यों न डूब मर जाऊं


 

बगुलों की देख चहल पहल
मेहनत की टांग लड़खड़ाई
मन को अपने क्या समझाऊँ


 

दुनिया के दोहरेपन को देख
मानवता है शरमाई
देख, सोच यही घबराऊँ


-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

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Wednesday 10 December 2014

गूगल एडसेंस का सपोर्ट हिंदी वेबसाइट/ ब्लॉग के लिए शुरू - Google Adsense in Hindi

by on 09:37
एक लम्बे इन्तेजार के बाद गूगल ने अपनी लोकप्रिय सेवा 'एडसेंस' को हिंदी वेबसाइट और ब्लॉग के लिए भी शुरू कर दिया है. 2008 में अचानक गूगल ने हिंदी एडसेंस की सेवाएं स्थगित कर दी थीं. इसके पीछे कोई ठोस कारण सामने नहीं आया, लेकिन माना जाता है कि एडवर्ड में हिंदी विज्ञापनों की संख्या कम होने को इसका मुख्य आधार बनाया गया. तब हिंदी के इस्तेमाल में अनेक व्यवहारिक कठिनाइयाँ, यूनिकोड इत्यादि की दिक्कतें थीं और इससे बड़ी बात हिंदी के ऑनलाइन उपभोक्ता कम थे. तब 2008 और अब 2014 की स्थिति में इन सभी दृश्यों में काफी परिवर्तन हो चूका है और जिस प्रकार केंद्र की भाजपा सरकार हिंदी के उत्थान को लेकर सजग नजर आ रही है, गूगल ने इस स्थिति को भाँपने में देर नहीं लगाई है. खैर जो भी हो, खुशखबरी है यह हिंदी के लेखकों, ब्लॉगर्स के लिए. आपमें से अधिकांश को जानकारी होगी ही कि गूगल एडसेंस, ऑनलाइन पैसा कमाने का बेहतरीन एवं विश्वसनीय जरिया है. ऑनलाइन पैसा कमाने के लिए जो टूल्स बहुतायत में प्रयुक्त होते हैं, उनमें हैं:

इंटरनेट से कमाई के नुस्खे-



  1. ब्लॉगिंग (Blogging)

  2. थीम डिज़ाइन (ब्लॉगर एवं वर्डप्रेस के लिए - Theme Design)

  3. ऑनलाइन पढ़ाएं (स्किलशेयर / UDEMY  - Online Teaching )

  4. अपनी किताब लिखें ऑनलाइन (Online Book Publishing)

  5. ऑनलाइन डिजायन बनाएं, बेचें (ZAZZLE - Online Design Selling)

  6. वीडियो बनाएं, यूट्यूब पर अपलोड करें, मोनिटाइज करें. (Youtube Channel Earning)

  7. ऑनलाइन नौकरी ढूंढें (ओडेस्क, गुरु, इलैंस डॉट कॉम पर -  Different Online Jobs)

  8. अफिलिएट मार्केटिंग का तरीका काम में लाएं (Affiliate Marketing)


Google Adsense in Hindi, article on online earning by Mithilesh in Hindi.

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Tuesday 9 December 2014

परिवर्तन संसार का नियम है - Bhagwad Geeta Gyan and Youth

by on 13:58
भारत की संस्कृति में विचारों की इतनी सुन्दर व्याख्या की गयी है कि दुनिया की किसी संस्कृति से इसकी तुलना नहीं हो सकती. ज्ञात तथ्यों के आधार पर यदि कहा जाय तो किसी कार्य के तीन आयाम होते हैं, जो क्रमशः मन, वचन और कर्म की यात्रा करते हुए अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता है. उदाहरणार्थ यदि किसी छोटे बच्चे को विद्यालय भेजने का समय है तो सर्वप्रथम यह विचार हमारे मन में पनपता है, तत्पश्चात हम अपनी वाणी द्वारा घरवालों को, उस बच्चे को अपनी बात बताते हैं, अपने विचार से अवगत कराते हैं और तब आखिर में उस बच्चे का दाखिला उस विद्यालय में होता है. लेकिन जरा सोचिये, यदि यह बात हमारे मन में ही दबी रह जाय तो... !! अथवा हम इसे बस विचार के रूप में प्रतिष्ठित करके इतिश्री कर लें तो ... !! निश्चित रूप से हमारा कार्य तब सफल अथवा पूरा नहीं कहा जा सकता है.

आज कल उन तमाम बातों पर बेहद संकुचित दायरे में पुनर्चर्चा शुरू हो रही है या शुरू की जा रही है, जिन बातों पर आम जनमानस की अगाध श्रद्धा रही है. यह अलग बात है कि महान भारतीय विचारों के कई मर्मज्ञ अपनी चारित्रिक निष्ठा को लेकर इस काल में संदिग्ध साबित हो रहे हैं. गीता के नाम से कोई अनजान नहीं है आज. इस ग्रन्थ को यदि सर्वाधिक प्रतिष्ठित ग्रन्थ कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. धर्म की बड़ी कठोर एवं स्पष्ट व्याख्या करने वाला ग्रन्थ, जिसके बारे में कहा गया है कि यदि तराजू के एक पलड़े पर समस्त वेद, शास्त्र रख दिए जाएँ तो भी भगवद्गीता की महिमा उन सभी ग्रंथों से ज्यादा होगी. यूं तो गीता के प्रत्येक अध्याय में मानव जीवन की तमाम दुविधाओं का निराकरण है, किन्तु उसकी जो सीख सर्वाधिक प्रभावित करने वाली है, वह है 'परिवर्तन संसार का अटल नियम है'. जो आज है कल वह नहीं होगा, कल कुछ और होगा और इस तरह से यह श्रृंखला अनंत है. दुनिया में कोई भी सिद्धांत तभी मान्यता प्राप्त करता है, जब वह सिद्धांत समय की कसौटी पर खरा उतर सके. गीता के परिवर्तनशील सिद्धांत को समय ने अपनी कसौटी पर कई बार कसा है, लेकिन सवाल इससे अलग है. और सवाल उठाना जरूरी इसलिए है क्योंकि लाखों लोगों की भीड़ में गीता के मर्म की व्याख्या करने वाले कई विशेषज्ञ, उन्हें आप संत कह लें या कुछ और आज सलाखों के पीछे पड़े हैं. आखिर क्यों? तर्क यह भी दिया जा सकता है कि गीता को ये लोग जानते भी नहीं, सिर्फ दिखावा करते हैं. वैसे यह सच ही है कि यह लोग गीता को मानने और समझने की बजाय सिर्फ उसकी क्रेडिबिलिटी को कैश कराने में ज्यादा यकीन करते हैं. मार्केटिंग के दौर में गीता जैसा पवित्र ग्रन्थ भी अछूता नहीं बचा है. एक से एक सजावटी पुस्तकें, जिनकी जिल्दें और फ्रेम्स आपको किसी महँगी पेंटिंग का अहसास कराएंगी, वह वर्ग विशेष के ड्राइंग हाल में या कार की डैशबोर्ड पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही होंगी, बेशक उस किताब को कभी खोला न गया हो.
उद्धृत करना थोड़ा अजीब होगा किन्तु गीता तो इस मामले में बहुत पहले से प्रचलन में रही है. आज़ादी के काल में महात्मा गांधी इसको अपने हाथ में लेकर घुमते थे तो आज के वर्तमान प्रधानमंत्री इसको अंतर्राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. ठीक है, यहाँ तक भी कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जिस ग्रन्थ के सिद्धांत सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रतिष्ठित हों, उसे राष्ट्रीय-ग्रन्थ की मान्यता देने की बात कहने से सिवाय विवाद के आखिर क्या हासिल हो जायेगा, यह बात समझ से पर है. वैसे राष्ट्रीय ग्रन्थ का मसला भारत की जिन मंत्री महोदय ने उठाया है, उन्हें गीता के सिद्धांतों की सबसे ज्यादा जरूरत बताई जा रही है. जिस प्रकार उनकी इच्छा और महत्वाकांक्षा कहीं कोने में दुबक गई है, उस स्थिति में उन्हें 'स्थितप्रज्ञ' होना ही पड़ा है. गीता का सहारा लेकर पार्टी में वह अपनी पुरानी प्रतिष्ठा प्राप्त करने का प्रयास जरूर कर रही हैं, लेकिन गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अध्याय 'परिवर्तन संसार का नियम है' को वह भूल गयी सी लगती हैं. राजनीतिक विश्लेषक तो यही समझते रहे हैं. खैर, राजनीतिक विश्लेषकों का क्या, उनका काम है समझते रहना, हमारा काम है कहते रहना. लेकिन देखने पर यह बात भी लगती है कि कुशल वक्ता मंत्री महोदया की बात को उनकी ही पार्टी और संगठन के लोगों ने कुछ ख़ास तवज्जो दी नहीं. शायद! ठीक से होमवर्क हुआ नहीं था इस मुद्दे पर.

वैसे इसमें मंत्री महोदया का दोष भी नहीं है, क्योंकि आप उन्हें मंत्री तो बनाते हो लेकिन विदेश मंत्रालय खुद संभालते हो तो वह क्या करें? अचानक उन्हें कुछ कर्म करने की सूझी। अब कर्म की बात करनी हो तो सबसे पहले गीता का स्मरण होता है. उन्होंने कर्म किया- गीता को ही राष्ट्रीय ग्रन्थ बनाने की बात उठा दी जबकि गीता तो अपने प्रथम क्षण से ही धर्म. जाति, क्षेत्र, सम्प्रदाय से ऊपर होकर सभी के लिए है इसलिए अंतरार्ष्ट्रीय है. अनेक विदेशी विद्वानो ने गीता की भूरि भूरि प्रशंसा की है, जर्मनी में संस्कृत और गीता को जानने वाले बहुत है, गीता को ही राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करने की मांग को उग्र नहीं होना चाहिए क्योकि गीता कर्म की बात करते हुए 'फल' की चिंता न करने का उपदेश भी देती है। गीताकार ने स्पष्ट कहा है-


सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज।
अहम् त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामी मा शुचः।। - गीता 18/66


एक मेरे देशभक्त मित्र इस मुद्दे पर बड़े परेशान नजर आये. कहने लगे गीता की बात करने वालों को गीता का ज़रा भी ज्ञान होता तो वह कर्म करने की कोशिश कर रहे अपने प्रधानमंत्री का साथ देते न कि उसे कभी रामजादों - हरामजादों की बहस में उलझाते और न कभी गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ की बहस में. आगे बढ़ते हुए बोले- बहुत सालों के बाद देश में एक ऐसा व्यक्ति कुर्सी पर बैठा है जिससे आम जनमानस को थोड़ी उम्मीद बंधी है, लेकिन इस उम्मीद को कोई यह बात कह कर पलीता लगाने की कोशिश करता है कि पृथ्वीराज चौहान के बाद देश में पहली बार कोई हिन्दू शासक हुआ है, तो कोई मंत्री ज्योतिष और विज्ञान की बहस में उसे उलझा देता है. गीता का गुणगान करने का दावा करने वाले उसके मूल सिद्धांत को क्यों नहीं समझ रहे हैं कि उनका समय अब परिवर्तित हो चूका है. मित्र महोदय का पारा चढ़ता जा रहा था और उन्होंने आगे राजनीति के उन जानकारों की बखिया उधेड़नी शुरू की जो यह कहते नहीं अघाते कि वर्तमान प्रधानमंत्री की जीत उनकी कथित हिंदूवादी छवि के कारण हुई है. ऐसे आत्म केंद्रित लोग आज के बदलते युवा को तब समझ ही नहीं पाये हैं. ऐसे युवा, जो वास्तव में बकवास बातों को छोड़कर गीता के सिद्धांत 'कर्म करो' को मानता है. क्या यह सच नहीं है कि प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री बनाने में उस बड़े वर्ग का हाथ है जिसे किसी भी कीमत पर विकास चाहिए, जिसे रामज़ादों और हरामजादों से कोई मतलब नहीं है, जिसे राष्ट्रीय पशु और राष्ट्रीय ग्रन्थ की प्रतीकात्मकता से भी कोई ख़ास मतलब नहीं है. हाँ! उसे देश से मतलब है, उसे देशवासियों और उनकी खुशहाली से भी मतलब है और वह सभी युवा विचारों की भूलभुलैया में आत्ममुग्ध होने की बजाय गीता जैसे महान ग्रन्थ को, आज के समाज में क्रियान्वित करने की सोच रखते हैं और उन्हें निश्चित रूप से सलाखों के पीछे पड़े किसी संत, बापू या कुंठित राजनेता की आवश्यकता नहीं है, गीता का मर्म समझने के लिए. ध्यान से देखो, बीते समय के कर्णधारों, आज का युवा 'गीता को जी रहा है. देखो और अपने बदलते समय को स्वीकार करो.

-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Shri Mad Bhagwad Geeta Gyan and Youth, article on political statements on religious issues, in Hindi by Mithilesh.
Keyword: bhagwan, change, culture, dharm, failure, geeta, gita, god, Karm, krishna, Man, marketing, Mind, nation, practical, rashtra, Soul, success, theory, Vachan, world, youth, yuva

Monday 8 December 2014

Sunday 7 December 2014

राष्ट्र-किंकर - Rashtra Kinkar

by on 23:51

राष्ट्रभक्ति ले कर चला, किंकर का अभियान
कार्य हो रहा अनवरत, रखा सभी का मान
रखा सभी का मान, साधना कर दिखलाया
ग्यारह सालों से, संस्कृति-अलख जगाया
हम नन्हें-मुन्नों को, मिलती रहे यूं शक्ति
भाषा-जाति विभेद भुला, हम करें राष्ट्रभक्ति.


 

सीख दिया हमको, डंटे रहना तुम हरदम
ना तजना वह राह, जहाँ हो सच का दम
जहाँ हो सच का दम, भला हो जन-जन का
श्रमेव जयते मन्त्र हो, मोह नहीं हो तन का
बड़े-बुजुर्गों की सुनें, समझें भारत की रीत
'राष्ट्र-किंकर' पत्रिका से, मिले सभी को सीख.


(-मिथिलेश की कुण्डलिया)


Mithilesh Ki kundaliya, Guru Charno me samarpit, Rashtra Kinkar Hindi weekly magazine.

Thursday 4 December 2014

इंटरनेट, सोशल मीडिया पर सुरक्षा - Important security tips on Social Media, Internet

by on 14:24

इंटरनेट से सम्बंधित यहाँ कुछ सामान्य टिप्स हम लिख रहे हैं. बाकि धीरे-धीरे इनकी संख्या निश्चित ही बढ़ेगी



  1. सोशल नेटवर्किंग साइट्स के लिए अलग पासवर्ड रखें, न कि वही पासवर्ड जो आप अपने मेल या दुसरे महत्वपूर्ण अकाउंट में यूज करते हैं.

  2. सोशल मीडिया पर ज्यादा व्यक्तिगत सूचनाएं देने से आपके विरोधी इसका मानसिक फायदा उठा सकते हैं, वहीं विभिन्न विज्ञापन कंपनियां आपको जगह-जगह टारगेट कर सकती हैं, जिनसे आप दुखी हो जायेंगे.

  3. पब्लिक कम्प्यूटर पर किसी भी ऐसी वेबसाइट को खोलने से परहेज करें, जिसमें पासवर्ड की जरूरत हो. आपका पासवर्ड गलत हाथों में जाने के पूरे चांस हैं. यदि बहुत जरूरी ही हो तो आप प्राइवेट ब्राउज़िंग/ इन्काग्निटो विंडो का इस्तेमाल करें और उठने से पहले विंडो बंद कर दें.Internet Security

  4. अपडेटेड एंटीवायरस प्रोटेक्शन के बावजूद सॉफ्टवेयर या फाइल डाऊनलोड करने के लिए 'सिक्योर' सर्वर का इस्तेमाल करने को तरजीह दें. https:// से शुरू होने वाली वेबसाइट अपेक्षाकृत सुरक्षित होती हैं.

  5. यूं तो स्पैमर्स अलग-अलग तरीके ईजाद करते रहते हैं, आपको अपने जाल में फंसाने के लिए, लेकिन जो तरीके सबसे कॉमन रूप में इस्तेमाल होते हैं, वह हैं लड़कियों के रूप में आपसे इमोशनल बातें करना और एक लम्बे प्लान के तहत आपसे लाभ लेना, इसमें सब कुछ आपको ओरिजिनल दिखेगा, लडकियां भी, लेकिन इनका नेटवर्क बेहद सफाई से अपने टारगेट को घेरता है. इसके अतिरिक्त आप इतने डॉलर या पौंड का इनाम जीत गए हैं अथवा कोई अमीर औरत मरने से पहले काफी धन आपके लिए छोड़ गयी है इस प्रकार की मेल या सोशल मीडिया पर मेसेज आम बात हैं. मुझसे बात करने वाले कई लोग इन चक्करों में काफी कुछ गँवा चुके हैं.

  6. कई बार आपको फोन, मेल्स, मेसेज इस प्रकार के आ सकते हैं, जिसमें सामने वाला व्यक्ति आपके बैंक का कर्मचारी होने का दावा कर सकता है और आपसे गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने की कोशिश कर सकता है. यही नहीं, कई बार जीमेल, हॉटमेल या याहू के लोगिन पेज की तरह दिखने वाले लिंक आपके पास आते हैं और आप अपनी मेल का पैनल समझ कर उसमें लोगिन करते हैं तो सावधान हो जाएं और अपना पासवर्ड तुरंत बदल दें. आपका पासवर्ड हैकर्स के पास पहुँच चूका है.  तकनीकी रूप से इस धोखाधड़ी को फिशिंग(Fishing) कहा जाता है.

  7. अपनी कई मेल, सोशल नेटवर्क, बैंक के लोगिन एवं ट्रांसैक्शन समेत तमाम पासवर्ड आपके पास हो चुके हैं, तो भी अपने पासवर्ड को कहीं लिखिए मत. यदि बार-बार भूलने की समस्या हो तो आप पासवर्ड को हिंट के रूप में लिखें जैसे यदि आपका पासवर्ड RAMESH@12THk है तो आप सिर्फ R.... @1...k लिखें, जिसे सिर्फ आप समझ पाएं, दूसरा नहीं. इसके बावजूद आप किसी एक मेल में कई सारे पासवर्ड न रखें, क्योंकि हैकर बेहद तीक्ष्ण दिमाग के होते हैं. कुछ पासवर्ड आप डायरी में, कुछ एक मेल में तो कुछ दूसरी मेल में. पासवर्ड को छः महीने में जरूर बदलें और पासवर्ड में कैपिटल, स्माल लेटर के साथ स्पेशल कैरेक्टर और नंबर्स का प्रयोग आप More-books-click-hereजानते ही हैं.

  8. अधिकतर वेबसाइट में दोहरे लेवल की सुरक्षा होती है, जिसमें पासवर्ड के साथ मेल और मोबाइल भी कनेक्ट होते हैं. विशेषकर जीमेल में आपने यदि टू-लेवल सिक्युरिटी ऑन की है तो पासवर्ड के बाद ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) आएगा, उसके बाद आगे प्रोसेस होगा. इसी तरह से फेसबुक या दूसरी वेबसाइट में अपने मोबाइल को अटैच रखें और उसे कन्फर्म भी करें.

  9. अपने घर के छोटे बच्चों को जिन वेबसाइट से बचाना चाहते हैं, उन वेबसाइट को आप एंटीवायरस की सहायता से या ब्राउज़र की सहायता से ब्लॉक करें. इसके बावजूद बच्चे के काम करने के तुरंत बाद ब्राउज़र हिस्ट्री चेक करें. बच्चे द्वारा कुछ गलत देखे जाने के बावजूद अपना आप न खोएं, बल्कि सूझबूझ से उसे इनडायरेक्ट रूप में समझाएं. अपने बच्चों के सोशल नेटवर्क प्रोफाइल पर बारीक़ नजर रखें, उन्हें अजनबियों से दूर रहने की सलाह लगातार देते रहें.

  10. असुरक्षित (बिना पासवर्ड प्रोटेक्शन के) वाईफाई का प्रयोग ट्रांसेक्शन के लिए कदापि न करें.

  11. अटैच फाइल डाउनलोड करने से पहले उसके एक्सटेन्सन की तरफ ध्यान दें और अपरिचित एक्सटेन्सन होने पर उसे डाउनलोड करने या खोलने से बचें. (Familiar Extensions like-  .pdf, .jpg, .png, .doc, .rtf etc.)

  12. किसी भी लिंक को क्लिक करके बैंक की वेबसाइट पर न जाएँ. अपने बैंक की वेबसाइट का यूआरएल, यूजर नेम, पासवर्ड टाइप करके डालें, बजाय कॉपी/ पेस्ट करने के.

  13. अपने कंप्यूटर को घर या ऑफिस में चालू न छोड़ें, बल्कि उसे स्लीप मोड में करके जाएँ. असावधानी से आपकी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं पब्लिक हो सकती हैं. यही हाल आपके स्मार्टफोन का है. एप्स-लॉक लगाकर रखें, अन्यथा कई बार अनचाहे आपकी गुप्त सूचनाएं, फोटो या वीडियो फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्क पर पब्लिक हो सकता है.


-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

Important security tips on Social Media, Internet in Hindi, collected by Mithilesh.

Kejriwal as Chief Minister in Delhi

by on 05:49
kejriwal as chief minister in delhi

 

एक महोदय ने केजरीवाल की वकालत करते हुए उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की और दिल्ली की जनता से उसके पक्ष में सोचने की अपील की तो मेरा जवाब था- आपकी पीड़ा उचित है महोदय. दिल्ली की जनता बड़ी उदार है, उसने केजरीवाल को मौका दिया भी था. लेकिन, वह लंगूर के मुंह में अंगूर जैसी बात हो गयी. याद कीजिये उस 26 जनवरी को, जब वह सीएम थे... अड़ गया बन्दा कि 26 जनवरी नहीं मनाने देंगे और उनका वह बेवकूफाना बयान 'शिंदे कौन होता है मुझे बताने वाला, मैं उसे बताऊंगा वह कहाँ बैठेगा'. राजनीति की गंभीरता को अभी भी केजरी जी समझ नहीं पाये हैं. यदि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को सच में बहुमत दिया (जिसकी उम्मीद भूल से भी नहीं है),, तो इस बन्दे का पूरा समय 'मोदी-सरकार' से टकराहट में ही जायेगा और उसका परिणाम इसकी बर्खास्तगी ही होगी. फिर मध्यावधि चुनाव...
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राजनीतिक मुर्ख है वह! हाँ! आंदोलनकारी अच्छा है बंदा. बाकि निर्णय दिल्ली की जनता स्वयं करेगी, वह सब जानती है, उसे सब ड्रामा याद है.


Kejriwal as chief minister in delhi

Rohtak Brave Girls and Public Debate

by on 05:31
Rohtak Brave Girls and Public Debate

 



... रोहतक की दो लड़कियों का चरित्र- हनन खूब किया जा रहा है. गाँव की राजनीति से लेकर, जाट-राजनीति तक पूरा पुरुष-समाज एक होकर उनको गलत साबित करने में लग गया है, जैसे वह लडकियां 'इस्लामिक स्टेट' की सदस्य हों-
"आक थू ... ऐसी मानसिकता पर"
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इन सभी के अनुसार उन लड़कियों को चुपचाप अपना 'रेप' करा लेना चाहिए था, ओह सॉरी, रेप नहीं 'गैंग-रेप' !!






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  • Ranbir S Phaugat कुछ ज्यादा ही आगे का सोच लिया है. आप और हम वहाँ नहीं थे, इसलिये ऐसी टिप्पणी को मैं उचित नहीं मानता.















  • Mithilesh Kumar Singh महोदय, हम यहाँ हैं और देख रहे हैं नारी का बलात्कार किसी प्रकार हो रहा है. और हाँ! लोग सच्चाई की बहुत दुहाई दे रहे हैं... आखिर सच्चाई-प्रिय देश के नागरिक जो हैं. बहुत खूब!















  • Mithilesh Kumar Singh ... सच्चाई की दुहाई देने वालों की असलियत आप और हम सभी जानते हैं. यदि उन सभी के सामने सड़क पर कोई बलात्कार हो तो वह लड़की को बचाएंगे कम और उसे 'छूने' की कोशिश ज्यादा करेंगे. उसे बचाकर किसी कोने में ले जाना चाहेंगे. आप हम क्या सुनना चाहते हैं. आंकड़े उठकर देख लीजिये, रोज देश में, दिल्ली में, हरियाणा में यही होता है. कोई शोर नहीं होता, कोई सच्चाई की बात नहीं होती, कोई आंदोलन नहीं होता. आज इतना शोर क्यों?? क्यों पुरुष घबरा गए हैं ?? क्यों डर गए हैं ??















  • Arun Kumar पुरुष सदा से ही कमजोर था, रहा है और रहेगा ...................उसे फिर से याद दिलाना होगा की जीवन का पहला थपड़ उसे नारी ने ही मारा था ................और अपने जीवन के ऐसे कई थप्पड़ वो............. १०-१२ साल कहा चुका है
    इसलिए उसके अन्दर हीन भाव स्थापित हुआ है...................ये सब उसके हीन भाव ग्रसित होने के लक्षण है















  • Dheeren Singh Janab ye mat bhuliye bina aag dhunaa nahi uthata....















  • Mithilesh Kumar Singh उन लड़कियों को निर्दोष साबित नहीं कर रहा हूँ मैं, लेकिन उनको माध्यम बनाकर पूरी औरत जात को गलत साबित करना का पिछले तीन-चार दिन से बेहद घिनौना प्रयास हो रहा है. यह प्रयास उसकी मुखरता को कुचल देने का है और टीवी चैनल से लेकर सोशल मीडिया पर जिस प्रकार की एकतरफा टिप्पणियां चल रही हैं, वह निश्चय ही शर्मनाक है. कोई इस बात के लिए आवाज नहीं उठा रहा है कि यदि किसी भी लड़की के आत्मसम्मान पर कोई लड़का, युवक, पुरुष आँख उठा कर देखता है, तो उसकी उसी रूप में नारी जवाब दे सकती है.















  • Manoj Kamboj भाई साहब कहानी कुछ अोर ही हैं















  • Mithilesh Kumar Singh काम्बोज जी, इस मैटर को इतना हाईलाइट होना ही नहीं चाहिए था. पर न्यूज चैनलों की फितरत कौन बदले... अब यह मुद्दा कहीं से कहीं पहुँच गया है. अब इस चर्चा को अतिवादियों ने लड़कियों के खिलाफ हथियार बनाना शुरू कर दिया है. आपत्ति इस बात से है. लड़कियों पर कितना अत्याचार हो रहा है, इस बात को कौन नहीं जानता है. कोई चूं नहीं होती है, और इस एक व्यक्तिगत मैटर पर इतना हंगामा क्यों?? इसे कुंठित लोग अपनी आदत और वासना से जोड़कर इसको फैला रहे हैं और खूब मजे ले लेकर लड़कियों की इस वीडियो को, उस वीडियो को शेयर कर रहे हैं. न्यूज चैनलों की क्या कहें, वह तो ग्राम प्रधान से लेकर, पता नहीं किसको-किसको बैठा कर ... !!

















  • Ananadsuman Singh SEHMAT, YEH MANSIKTA UCHIT NAHIN















  • Rohit Yadav I agree with you Mithilesh Ji. I appreciate those girls for blowing the whistle. She herself mentioned in an interview that it was not the first time she has beaten such cheap boys. She claimed that she will continue doing so until people around her st...See More















  • Abhiraj Singh Thakurela Jaanch ke bad hi kuchh kaha ja skta h..aap aise kisi jati ki mansikta par thook ni skte Bhaisahab...Bina jaanch padtal ke natije nahi sunane chahiye aur na hi raay kayam krni chahiye...















  • Abhiraj Singh Thakurela Agar ladke doshi hn to saza jaroor honi chahiye...agar nahi to ldki ko saza honi chahiye...bat sahi aur galat ki h...kisi case ko lkr kisi jati ki mansikta tay ni ki ja skti...















  • Abhiraj Singh Thakurela Aur dusri bat is matter ko aapsi baton se suljha lena chahiye tha...ise itna badha diya ki ldko ke career pe aanch aa gyi...aur career se khilwaad hone se ek yuva galat raah pakad leta h...iske kai examples b hn...Aur dusri bat jat yuva ka dimag kharab ho to museebat duguni ho jati h kyunki wo ghayaal sher se jyada aakramak ho uthta h...















  • Kumar Chandra Bhushan Is episode ke baad girls jab bhi resist karengi to unhe apne pavitra hone ka certificate pahle dena parega,shame on this male dominated society















  • Merapata In मिथलेश जी लड़कियों को छेड़ना, परेशां करना गलत है लेकिन इस केस मैं ऐसा नहीं लगता है. एक बार ट्रेन मैं मेरे सामने एक लडकी ने एक अधेड उम्र के व्यक्ति को उठा कर बैठगई.और उस व्यक्ति को तमाम गन्दी गलिया देती रही. बार बार चप्पल से मारने कि धमकी देती रही.















  • Mithilesh Kumar Singh आपकी बात अपवाद ही है अभी। सवाल है कि पचास अत्याचार या कहें कि पचास हजार अत्याचार हम करते हैं, उनकी ओर से एक आवाज आयी तो तूफ़ान मच गया। हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा है जी यह... ढोंग की पराकाष्ठा तो हम पहले ही पार कर चुके हैं।















  • Abhiraj Singh Thakurela Dhong koi b kar skta h chahe ldka ho ya ldki...koi patent ni h dhong ka ki ldke hi krenge ya ladkiyan krengi...justified bat honi chahiye...Bharat ke kanoon me likha h ki chahe nirdoshi ko bachane k liye 1000 gunahgaar chhodne pade to wo jaayaj h...Hum...See More

















  • Mithilesh Kumar Singh अभिराज बाबू, आपकी लाइब्रेरी में काफी किताबें हैं. इतिहास पढ़ो और समझो, फिर देखोगे कि ढोंग का ठेका पुरुष समाज ने अकेले उठा रखा है, तब से अब तक. ईमानदारी से तुलना करो... फिर आपको उनका दर्द पता चलेगा. और यही कारण है कि देश में साल भर में .२५००० रेप केसेज द...See More


















    Rape in India is the fourth most common crime against...


    EN.WIKIPEDIA.ORG



























  • Kumar Chandra Bhushan Salute these two brave girls who assaulted the boys may be on the reason of petty fight and not molestation but it will certainly inspire lakhs of girls who are subjected to all kind of atrocities by males on daily basis and every where.










  • Mithilesh Kumar Singh







Rohtak Brave Girls and Public Debate

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