Thursday 10 September 2015

बहन कहने वाले हैं मुझे... (लघुकथा)

छोटे ऑफिस में नयी आयी थी वह, थोड़ी शर्मीली भी. फ्रेशर्स को किसी ऑफिस में किस सिचुएशन से गुजरना पड़ता है, यह बात नेहा को जल्द ही पता चल गयी थी. उसकी सीनियर रजनी पहले तो उससे ठीक से पेश आयी लेकिन कुछ ही समय बाद उसका व्यवहार रूखा होने लगा. इसके विपरीत नेहा के मेहनती स्वभाव को ऑफिस में पसंद किया जाने लगा. उसे जो नहीं समझ आता था, वह दीदी- दीदी कहकर रजनी से भी पूछ कर सीखने का प्रयत्न करने लगी. उधर रजनी के मन में ईर्ष्या अपना आकार बढ़ाने लगी, जिसे नेहा के साथ-साथ उसके बॉस ने भी महसूस कर लिया. उसने सोचा कि दोनों को बुलाकर सामंजस्य बनाने का प्रयास करना चाहिए. अपने संक्षिप्त लेक्चर में बॉस ने दोनों को बताया कि उन्हें आपस में मिल जुलकर रहना चाहिए, तभी ऑफिस का कार्य ठीक प्रकार से हो सकेगा. नेहा ने सहज भाव से कहा कि रजनी उसकी बड़ी बहन जैसी ही हैं!
'बहन कहने वाले हैं मेरे पास ...'
मुझे और बहनों की जरूरत नहीं है! यह कहकर रजनी गुस्से में केबिन से बाहर अपनी सीट पर आ गयी.
ईर्ष्या और क्रोध का यह रूप देखकर नेहा के साथ उसके बॉस भी अवाक भी रह गए. हालात को समझते हुए उन्होंने कठोर निर्णय लिया और रजनी की मेल पर 1 महीने का नोटिस- पीरियड आ गया.
मेल देखते ही उसे सांप सूंघ गया, मगर ईर्ष्या कब गुस्से के रास्ते अहम तक पहुँच गयी, यह उसकी समझ में आता तो वह बहन बनने से इंकार ही क्यों करती भला! मेल में वह कभी नोटिस तो कभी अपने रिज्यूम फोल्डर को पलटने लगी ... आगे का सफर जो उसे तय करना था. मन-मस्तिष्क उसका यह प्रश्न भी पूछ रहा था कि अगर दूसरी जगह भी उसे 'बहन' कहने वाली मिल गयी तो ...
 
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