Friday 17 October 2014

हल ढूंढ लो 'कुटुंब' भारतीय आस्था में - Suicide Poem

suicideकुछ तो हुआ होगा
जो 'संकल्प' टूट गया
कुछ तो छुटा होगा
जो 'स्नेह' लुट गया

पितृ उसके नामचीन गीतकार हैं,
फिर भी उसके ये भला संस्कार हैं
रह गयी कमी कहाँ ये भी सोचो तुम जरा
सूखने पर साख के 'जड़' को तुम देखो जरा

कर लो फिर चाहे 'इस और उस' की 'लाख' बातें,
लेकिन बताना हल्के हुए क्यों रिश्ते-नाते.
आखिर भला ये सोच आयी है कहाँ से,
संघर्ष बिन सब भागने लगे इस जहाँ से

आखिर पढ़ाई आ रही किस काम में,
बन 'भ्रष्ट' वो फंस जाए जब जंजाल में
हाँ! कहता हूँ कि दोष है व्यवस्था में
हल ढूंढ लो 'कुटुंब' भारतीय आस्था में
– "मिथिलेश", उत्तम नगर, नई दिल्ली.

 

(नामचीन गीतकार संतोष आनंद के बहु-बेटे की ख़ुदकुशी की मार्मिक घटना पर मिथिलेश का दर्द उपरोक्त पंक्तियों में बाहर आया)
Professionals Suicide Poem, based on Indian environment, by mithilesh

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