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अगर इस तथ्य को सेना के मामले में अप्लाई करते हैं तो आज के जो जवान सेना में जा रहे हैं, वह पढ़ लिखकर जा रहे हैं न कि पहले की तरह वह दसवीं या आठवीं पास हैं. गौर करने वाली बात है कि पहले जहाँ यह अपवाद होता था, अब यह सामान्य हो गया है. बेशक पद और क्रम में फ़ौज का कोई मेजर उन्हें हुक्म दे और वह मान लें, किन्तु अपने अधिकार और सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं को वह जानते भी हैं, समझते भी हैं. तो ऐसे में एक जवान को सरकार खाने में क्या-क्या देती है, इसका आंकड़ा उनके पास भी है और फिर जब उसमें कमी आती है तो मामला यहाँ से बिगड़ने लगता है. कहने का तात्पर्य है कि अब चाहे घर हो अथवा सेना जैसा कोई बड़ा संगठन हो, इन बदली हुई परिस्थितियों को हर एक को ध्यान रखना चाहिए. शीर्ष स्तर के लोगों को इस बाबत अवश्य ही विचार करना चाहिए कि हर संगठन में एक डेमोक्रेसी और ट्रांसपेरेंसी का होना समयानुसार आवश्यक हो गया है. यह बात भी ठीक है कि 'फ़ौज' जैसी संस्था में हम बहुत आज़ादी भी नहीं दे सकते तो सुविधाओं की भरमार भी नहीं कर सकते. सोशल मीडिया पर अपनी समस्याओं का रोना रोने वाले सिपाही भाइयों को यह भी समझना चाहिए कि अगर लड़ाई के दौरान वह किसी देश में बंदी बना लिए गए तो क्या वहां भी 'तड़का लगी दाल' और सूखे मेवा की मांग करेंगे? अगर बर्फीले इलाकों में सभी सुविधाएं पहुंचाई ही जा सकती तो फिर वह क्षेत्र दुर्गम ही क्यों होता और कोई भी आम नागरिक वहां जाकर ड्यूटी कर लेता फिर तो! यह बात ठीक है कि सेना के कुछ अधिकारियों और उससे जुड़ी टोली भ्रष्ट है और वह आम जवानों का हक़ मार लेती है, किन्तु सिस्टम में रहकर इस भ्रष्टाचार से लड़ने की राह उन्हें खोजनी ही होगी, अन्यथा अनुशासन टूटने से तो फिर सेना का मतलब ही 'शून्य' रह जायेगा. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जिस तरह से सेना और सुरक्षा बल के जवानों की शिकायतें आ रही हैं, वह बेहद दुखद है. सेना में जाने का सपना देखने वाले 'देशसेवा' और दुश्मन के दांत खट्टे करने का अरमान पाले रहते हैं और उन्होंने इस तरह के वाकयों की कल्पना भी नहीं की होगी. सेना के जवानों की जो शिकायतें सामने आयी हैं, उन शिकायतों में रत्ती भर भी झूठ नहीं है, इस बात को सभी जानते हैं, किन्तु सवाल वही है कि क्या कुछ अधिकारियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार के लिए समस्त सेना पर प्रश्नचिन्ह उठाया जाना न्यायसंगत है. Reform in Indian Army, Transparency, Corruption, Technology, Hindi Article, New
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किसी मित्र ने फेसबुक पर लिखा कि "सैन्य अधिकारियों की ईमानदारी पर ज्यादा भावुक मत होइए. अगर आप सेना /अर्द्ध सेना के सिपाहियों की भर्ती प्रक्रिया के बारे में या कुछ सिपाहियों को व्यक्तिगत जानते हैं तो आपको ये भी पता होगा कि फिजिकल, जो सबके सामने ग्राउंड पर होता है, निकालने के बाद लिखित और मेडिकल आदि निकलवाने के लिए अधिकारी लोगों का समय समय पर क्या रेट चलता है?" वस्तुतः भ्रष्टाचार एक ऐसा 'कोढ़' हो गया है, जो हमारे देश के विभिन्न संस्थानों को दीमक की भांति खोखला करता जा रहा है. और यह आज से नहीं हो रहा है, बल्कि आज़ादी के बाद से अनवरत हो रहा है. इसे लेकर सेना और सरकार को विभिन्न पहलुओं पर कार्य करना चाहिए. सबसे अधिक कार्य भ्रष्टाचार पर रोक, दूसरा सेना में ट्रांसपेरेंसी लाने की कवायद, खासकर जवानों से जुड़ी सुविधाओं को लेकर और इससे आगे आवश्यकता है नए ज़माने के हिसाब से सेनाधिकारियों और जवानों को शिक्षित करने की! सोशल मीडिया क्या है और उस पर विडियो पोस्ट करने से क्या परिणाम निकल सकते हैं और कैसे वह हमारे देश की सुरक्षा से जुड़ा विषय है, इन सभी पर ट्रेनिंग दिए जाने की आवश्यकता है. सेना के जवान और अधिकारी दुश्मन देशों द्वारा किये गए जासूसी कांडों में खूब फंसे हैं और इसका हथियार सोशल मीडिया जैसा प्लेटफॉर्म ही बना है, तो क्या उचित नहीं होगा कि अब सेना को इस तरह के माध्यमों की उपयोगिता और खतरों के प्रति लगातार जागरूक करते रहा जाए. ऐसे कदम बहुत पहले उठा लिए जाने चाहिए थे, तो शायद यह दिन देखने को न मिलता. खैर, अभी भी बहुत देर नहीं हुई है और जिन तीन जवानों द्वारा सोशल मीडिया पर विडियो पोस्ट किया गया है, उससे सेना को सीख लेने और आगे बढ़ने की आवश्यकता है. जम्मू कश्मीर में तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवान तेज बहादुर यादव ने फ़ौजियों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता को लेकर प्रश्न उठाया तो सीआरपीएफ़ में कार्यरत कॉन्सटेबल जीत सिंह ने फ़ेसबुक और यूट्यूब पर वीडियो डाला, जिसमें सुविधाओं की कमी और सेना-अर्धसैनिक बलों के बीच भेदभाव की बात कही गई थी. ऐसे ही, लांस नायक यज्ञ प्रताप सिंह ने आरोप लगाया कि अधिकारी, जवानों का शोषण करते हैं. आप ध्यान से देखें तो इन तीनों ने सेना से असंतोष नहीं जताया है, बल्कि भ्रष्टाचार और नीतिगत मामलों पर ही अपनी राय रखी है. क्या अब यह आवश्यक नहीं है कि सेना खुद ही सेमिनार रखे जिसमें जवानों को खुलकर बोलने दिया जाए और उस अनुरूप रणनीति बनाकर मामलों को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ा जाए. Reform in Indian Army, Transparency, Corruption, Technology, Hindi Article, New
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने मन की बात कहना चाहता है और सेना जैसे संस्थानों को भी अनुशासन के दायरे में ही रहकर इसका मंच उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि एक व्यापक समझ का दायर विकसित हो. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर लोगबाग सोशल मीडिया की ओर जाएंगे ही. हालाँकि, अभी गृह मंत्रालय ने पैरामिलिटरी जवानों द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है, किन्तु यह प्रतिबन्ध बहुत देर तक नहीं लगाया जा सकता है और बेहतर यह होगा कि दूरगामी परिणामों के लिए इस सम्बन्ध में दूरगामी योजनाएं भी निर्मित की जाएँ. द टेलिग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, अगर कोई भी जवान ट्विटर, फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम या यू ट्यूब आदि सोशल मीडिया पर तस्वीर या विडियो पोस्ट करना चाहता है तो उसके लिए अपनी फोर्स के डायरेक्टर जनरल से इजाजत लेनी होगी. खैर, तात्कालिक रूप से यह कदम जरूरी था, अन्यथा सेना का अनुशासन भंग होने का खतरा था, पर आगे के लिए स्थाई रणनीति का निर्माण करना ही होगा, इस बात में दो राय नहीं!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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