हिंदी पखवाड़ा चल रहा है. .... और मुझे आश्चर्य हो रहा है कि 'स्वभाषा, स्वरोजगार' की बात करने वाले महान जन चुप क्यों हैं? क्या उनको सच समझ नहीं आ रहा है या... कुछ और !
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मेरी फ्रेंड लिस्ट में भी 500 से ज्यादा शुद्ध साहित्यकार जुड़े हैं, जिनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. क्या वह सभी बुद्धिजीवी चीन के साथ इस तरह के सम्बन्ध से सहमत हैं? क्या वह नहीं जानते कि चीनी सामान हमारे लघु और कुटीर उद्योगों के साथ बड़ी देशी कंपनियों की क्या गत करेंगे?
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तो फिर चुप क्यों हैं प्रबुद्ध जन? क्या वह भी किसी ख़ास मैजिक में बंध गए हैं?
Hindi Diwas, Pakhwara and China Relations with India in Hindi.
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