जैकेट पहन चले नेताजी,
छुपा लिए सब पाप
उस श्रेणी में न रखियो हमें
उतार दियो मैंने ‘आप’
उतार दियो मैंने ‘आप’,
पड़ी यह जैकेट भारी
देह, ह्रदय पर बोझ पड़ा
हुआ मैं दुखियारी.
मिथिलेश हुए कन्फ्यूज,
कुछ समझ न आया
छोड़छाड़ कर धन्य हुए,
जैकेट की मोहमाया.
-मिथिलेश, उत्तम नगर, नई दिल्ली
Poem by mithilesh on Indian Leaders and their leadership
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