Friday 5 June 2015

पर्यावरण असंतुलन की ओर

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में दुनिया भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है और उन सबका मकसद एक ही होता है, "धरती को बचाना।" संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद 1972 में यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन का एकमात्र मकसद यही होता है कि आने वाली पीढ़ी पर्यावरण की रक्षा का महत्व समझ सके। सकारात्मक दृष्टि से देखा जाय तो सबसे ज्यादा वृक्षारोपण इसी दिन होते हैं। तमाम देशों में इस एक दिन लाखों पेड़ लगाये जाते हैं। जनसँख्या के लिहाज से बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक जनसंख्या में 9.6 बिलियन का इजाफा हो जायेगा, तब हमारे सामने पर्यावरण का गंभीर संकट आन खड़ा होगा। इससे सम्बंधित दूसरी सबसे बड़ी चिंता है ग्लोबल वॉर्मिंग की। इसकी वजह से हमारे पर्यावरण को बड़ा नुकसान हो रहा है, जो समय के साथ बढ़ता ही जायेगा। ग्लेश‍ियर्स के पिघलने की वजह से समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और अगर हम पर्यावरण की रक्षा नहीं कर पाये तो दुनिया भर के हजारों द्वीप डूब जायेंगे। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ही अब हर साल गर्मी के मौसम में जरूरत से ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है। वहीं वर्षा  पिछले कई सालों से औसत से कम होती जा रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के एक नहीं हजारों कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण बेतरतीब शहरीकरण और औद्योगिकीकरण है। इस सन्दर्भ में और ज्यादा से ज्यादा लोगों को पर्यावरण प्रेमी बनाने के लिये जागरूक करने के अलावा दूसरा कोई रास्ता बचता नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने अपने आवासीय लॉन में कदम्‍ब का एक पौधा लगा कर प्रत्‍येक परिवार से आने वाली वर्षा ऋतु में एक पेड़ लगाने का आग्रह करते हुए कहा कि जैसे हम सांसारिक वस्‍तुओं को धारण करने में गर्व महसूस करते हैं, वैसे ही हमें परिवार द्वारा लगाए गए वृक्षों के लिए भी गर्व होना चाहिए। जागरूकता की दृष्टि से प्रधानमंत्री का यह कथन भी सर्वथा उपयुक्त है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रखना ही धरती पर प्रलयकारी स्थिति से बचने का एकमात्र उपाय है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने पौधे के निकट एक परंपरागत मटका भी रखा, जो जल संरक्षण का पारंपरिक तरीका है और इससे पौधे को नियमित जल आपूर्ति भी सुनिश्चित होती है। देखा जाय तो जल संरक्षण और वृक्षारोपण के बीच बेहद गहरा सम्बन्ध है और दोनों प्रक्रियाएं एक दुसरे की पूरक हैं। पूरे विश्व में जलपुरुष के नाम से विख्यात  और जल का नोबल पुरस्कार कहे जाने वाले स्टॉकहोम पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह नदियों के पुनर्जीवन को पर्यावरण संतुलन से गहराई से जोड़ते हुए कहते हैं कि तमाम संस्थाओं और उद्योगों द्वारा नदी-क्षेत्र का अतिक्रमण घातक साबित हो रहा है।  जब तक इन तमाम समस्याओं से सीधे तरीके से नहीं निपटा जाता है, तब तक विश्व पर्यावरण दिवस का सही उद्देश्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि तमाम वैश्विक संस्थाएं और नागरिक, अपने स्तर पर वृक्षारोपण, कचरे से परहेज, वायु प्रदूषण से परहेज करें और इस बारे में सरकारों द्वारा सख्त कानून न सिर्फ बनाएं जाएं, बल्कि लागू भी किये जाएँ। पिछले यूपीए सरकार के कार्यकाल में पर्यावरण मंत्रालय की एक मंत्री के ऊपर वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा किया गया एक कटाक्ष बड़ा चर्चित हुए था, जिसमें उन्होंने आम चुनाव से पूर्व, चुनावी सभा में कहते थे कि पर्यावरण के नाम पर तमाम उद्योगों पर तथाकथित 'जयंती - टैक्स' लगाकर उन्हें परेशान किया जाता है. इस सन्दर्भ में हमें एकतरफा सोच रखने से भी परहेज करनी होगी, क्योंकि यदि हमें बिजली चाहिए तो, नदियों के ऊपर बाँध बनाये ही जायेंगे। इसके साथ यदि हम सबको शहरी सुविधाएं चाहिए तो पर्यावरण असंतुलन की ओर बढ़ेगा ही। इस असंतुलन को किस प्रकार नियंत्रित किया जाय, इसी में समाज और सरकार का तालमेल मुख्य रोल निभाएगा।  स्पष्ट है कि हमें बिजली, पानी, एसी, वाहनों इत्यादि का बेहद सावधानी से उपयोग करना होगा, क्योंकि एक-एक व्यक्ति का योगदान पर्यावरण संतुलन पर बेहद प्रभावी असर छोड़ेगा। "बात अगर वैश्व‍िक संकट की हो तो भले ही किसी एक व्यक्त‍ि का निर्णय बहुत छोटा लगता है, लेकिन जब अरबों लोग एक ही मकसद से आगे बढ़ते हैं, तो बड़ा परिवर्तन आता है।" संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून की यह बात भले ही आपको छोटी लग रही हो, लेकिन बात जब पर्यावरण की आती है, तो ये दो लाइनें दो किताबों का रूप ले सकती हैं। "बात अगर वैश्व‍िक संकट की हो तो भले ही किसी एक व्यक्त‍ि का निर्णय बहुत छोटा लगता है, लेकिन जब अरबों लोग एक ही मकसद से आगे बढ़ते हैं, तो बड़ा परिवर्तन आता है।" संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून की यह बात भले ही आपको छोटी लग रही हो, लेकिन बात जब पर्यावरण की आती है, तो ये दो लाइनें दो किताबों का रूप ले सकती हैं। भारतीय संस्कृति में नदी, वृक्ष और प्रकृति का पहले से ही बेहद महत्वपूर्ण स्थान है, जरूरत बस अपने प्राचीन स्वरुप को आधुनिकता के लिहाज से ढालने भर की है, फिर शायद हमें पर्यावरण को लेकर डरने की आवश्यकता ही न पड़े।


World Environment Day, hindi article by mithilesh2020 in hindi

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