Wednesday 29 April 2015

लेखन की शर्त - Condition for being a writer, lekhak, hindi short story

बेटा, चाय लाना, तुम्हारे रमाशंकर अंकल आये हैं.
मैं चाय लेकर बैठक में गया. पाँव छूने पर उनका आशीर्वाद था, बेटा तुम बड़े लेखक बनो. वह जब भी घर आते थे, मेरी लिखी कविताओं, छोटी कहानियों को पढ़ते थे और उसकी गलतियां मुझे बड़े प्यार से समझाते. कई बड़े अख़बारों/ पत्रिकाओं में उन्होंने अपने जीवन के 42 साल से ज्यादा लगा दिए थे. आज उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी की लकीर थी.
मेरे पापा उनके अभिन्न मित्रों में थे.
बात चलने पर मेरे पापा से कहने लगे, यार केडी, 42 वर्षों की नौकरी के बाद कल मैं ने पूर्व रिटायरमेंट़ ले ली जब कि अप्रैल 2017 तक काम करना बाकी रह गया था. हालात सामने ऐसे थे कि अब ज़्यादा दिनों तक वरिष्ठ उप संपादक बने रहना कठिन होते जा रहा था. मैंने पत्रिकाओं के पहले संपादकों से लेकर आज तक के छठे संपादकों के नीचे काम किया. संपादन का काम किया पर कभी संपादक नहीं बनने दिया गया. संपादकीय लिखा पर संपादक नहीं बना. उन्हीं दफ्तरों में किसी किसी ने एक पंक्ति कभी लिखी नहीं पर मुख्य संपादक बने और मैं भरपूर सहयोग करने से कभी पीछे नहीं हटा. कभी किसी को एक पंक्ति हिन्दी और आधी पंक्ति अँग्रेज़ी लिखनी नहीं आयी, वह भी संपादक बने फिर भी मैंने सहयोग किया. टीवी शैक्षणिक प्रोग्राम, प्राथमिक तथा माध्यमिक सरकारी पाठशालाओं के पाठ्य-लेखन, अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में लगाातार शोध लेख का प्रकाशन, भारत के नामी विश्वविद्यालयों में शोध-पत्र की प्रस्तुति, कई प्रदेश की साहित्य अकादमी द्वारा बुलाए जाना, अँग्रेज़ी तथा हिंदी में 21 पुस्तकें प्रकाशित करवाने के बावज़ूद भी मेरे तमाम संस्थानों में मुझे अधीनस्थ ही रखा गया, जबकि एक मज़दूर को उठा कर वरिष्ठ लेक्चरार की बराबरी का ओहदा दिया.
रमाशंकर जी, आपने आवाज नहीं उठायी, मेरे पापा ने कहा!
आवाज उठाता कि नौकरी करता?
बहुत सी अन्याय, शोषण, जात- पात, भाई भतीजेवाद की कहानियाँ हैं जो आने वाले समय में लिखूँगा. अब मैं स्वतंत्र हूँ.
अपनी उदंडता के लिए माफ़ी चाहूंगा, किन्तु असल में लेखक आप अब बने हैं अंकल, स्वतंत्र होकर. मेरे ख़याल से यही तो शर्त है लेखन की, आपने ही तो सिखाया है मुझे. यह कहते हुए चर्चा में मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
वाह ! वाह !! 'स्वतंत्रता' लेखन की शर्त अवश्य होती है, लेकिन हम जैसे नौकरीपेशा लोगों को इसे भूलना ही पड़ता है. पर याद दिलाने के लिए तुम्हारा धन्यवाद राजू बेटे.
वैसे, अब मैं स्वतंत्र हूँ और 42 साल के अनुभव के बाद असली लेखक भी बन गया हूँ, यह कहते हुए रमा अंकल खिलखिला उठे और साथ में मेरे पापा भी. और मैं साफ़दिल रमा अंकल के 'असली लेखक' बन जाने पर मन ही मन खुश हो रहा था.
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'

Condition for being a writer, lekhak, hindi short story

poet, editor, up sampadak, lekhan, independant writing, swatantra lekhan

No comments:

Post a Comment

Labels

Tags