Wednesday 29 April 2015

भूकम्प - Short story by Mithilesh Anbhigya on Earthquake in Hindi

दूसरे की तकलीफ़ तुम्हें ज़रा भी समझ नहीं आती है, कभी किचेन में दो रोटियां बनाओ फिर एक हाउसवाइफ का दर्द पता चलेगा, रागिनी ने भड़कते हुए कहा!

उसका पति रमेश भी कहाँ कम था, ताना मारते हुए बोला- कभी हमारी तरह धूप में बाहर निकलो और ऑफिस की पॉलिटिक्स झेलो, तुम्हें भी आटे-दाल का भाव पता चल जायेगा.
उन दोनों की शादी को 5 साल होने को आये और इस तरह की नोक झोंक सप्ताह में एक बार हो ही जाया करती थी, कभी-कभी तो दो बार भी. आज namak-swadanusarभी शनिवार का दिन था और रमेश का हाफ डे था. दोनों के बीच बच्चे को स्कूल से लाने को लेकर किच-किच होती रहती थी, विशेषकर तब जब रमेश घर पर होता था.
अब पलंग क्यों हिला रहे हो?
मैं नहीं तुम हिला रही हो, रमेश ने आदतन तुरंत उत्तर दिया.
फिर ... ये ... हिल . ... ? ?
भू ... क ... म्प !!
भागिए.
रमेश अचकचा गया. हड़बड़ा कर उठा और शर्ट पहनने लगा.
छोड़िये शर्ट.. और उसका हाथ पकड़ कर रागिनी सीढ़ियों की ओर भागी.
तब तक बिल्डिंग हिलना बंद हो चुकी थी और सामने लगी टीवी पर नेपाल में आये भीषण भूकम्प की ब्रेकिंग-न्यूज आने लगी. 7.9 रिक्टर स्केल से दिल्ली भी अछूती न रह सकी थी. सैकड़ों, हज़ारों लोग मरे, घायलों की संख्या और नुकसान हुए मकानों के आंकलन आने लगे.
रागिनी और रमेश की साँसे अभी थमी नहीं थीं. यह दोपहर का ही समय था जब नर्सरी में पढ़ने वाले उनके बच्चे की छुट्टी होती है. रमेश बिना कहे, पास में स्थित स्कूल की ओर दौड़ा.
सब कुशल था.
रागिनी अपने बेटे को गोद में लेकर बैठी थी. रमेश ने माँ बेटे को गले लगा लिया. उधर टीवी पर भूकम्प की भयावहता का आंकलन लगातार बढ़ता जा रहा था.
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'

Short story by Mithilesh Anbhigya on Earthquake in Hindi

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