Wednesday 2 September 2015

लीडरशिप 

मित्रों के समूह में लीडरशिप पर ज़ोरदार चर्चा चल रही थी. कोई लीडर्स में उद्देश्य के क्लियर होने की बात कर रहा था तो कोई उसकी डायनामिक पर्सनालिटी को लीडरशिप के लिए आवश्यक बता रहा था. 
इसके अलावा भी समर्थकों का हजूम, पैसे की पॉवर, अच्छा वक्ता, हाजिरजवाब जैसे अनेक गुण गिनाये गए, बल्कि कई लोगों ने तो आधुनिक काल में दबंगई को भी जरूरी बताया. हर कोई एक से बढ़कर एक खूबियों की बातें कर रहा था, मगर कोने की चेयर पर बैठा राजीव सबको सुन रहा था और उसे अपनी डायरी में नोट करता जा रहा था. 
अरे तू भी कुछ बोल राजीव! यह मोंटी का स्वर था.
'लीडरशिप इज़ एन एक्स्ट्रा क्वालिटी', राजीव का स्वर साफ़ और स्पष्ट था.
मतलब?
तो? सबने एक साथ बोला.
तो, लीडर जिस जगह हैं पहले उस काम को बेहतर तरीके से करना शुरू करते हैं और उस कार्य को बेहतर तरीके से करने के लिए दूसरों को प्रेरित भी करते हैं, यही तो लीडरशिप है. मतलब, जो काम करना हम जानते हैं, उसके लिए दूसरों को प्रेरित करना ही तो लीडरशिप है!
और यह प्रेरित करना हमारी 'एक्स्ट्रा क्वालिटी' ही तो है. 
शायद नहीं! क्योंकि जो अपने काम से पीछा छुड़ाता रहता है, वह तमाम चोंचलों के बाद भी अपनों को सच्चाई से प्रेरित नहीं कर सकता है और कुछ ईंटों के बाद ही उसका झूठा महल भरभरा कर गिरने लगता है. उन ईंटों को बचाने के लिए ही भ्रष्टाचार, अपराध, छल, स्वार्थ का साथ ले लेता है और अपनों को दूर धकेल देता है... एक सूर में राजीव ने कह डाला!
चलो चलो, कैंटीन चलते हैं, माहौल को हल्का करने की गरज से मोंटी ने कहा. 
हाँ! हाँ ... और मित्रों का समूह कैंटीन की ओर चल पड़ा, मगर सामान्यतः ऐसी बैठकों के बाद ठहाकों और हल्केपन की बजाय एक गंभीरता व्याप्त थी और लीडर बनने को उत्सुक लड़के सोचने में लगे थे कि वह कौन-कौन से कार्य बेहतर तरीके से कर सकते हैं, क्योंकि 'लीडरशिप इज एन एक्स्ट्रा क्वालिटी'.

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