होता है अक्सर
जी हाँ!
बस में, ट्रेन में
पैदल यात्रा में
दिशा भ्रम
सही रास्ते पर होने के बावजूद
लगता है उल्टी दिशा के
यात्री हैं हम
पढ़ने जाता हूँ
साइन बोर्ड्स, लेकिन
भटक जाता है मन
देख चमकीले विज्ञापन
रुकता हूँ तब
और पूछता हूँ
साथ खड़े सहयात्रियों से
उनकी बातें सुनकर
आँखों के नेह स्वर
देखता हूँ स्थिर मन से
इतने पर भी जब
मन नहीं मानता
झटक देता हूँ
विचार, विकार
और चल पड़ता हूँ एक ओर
या तो लौट जाता हूँ
थोड़ी दूरी से ही
या बढ़ते जाता हूँ
यह सोचकर कि
गिरते पड़ते चलना
संभलना
ही तो जीवन है
चलते ही जाता हूँ
और तब आप ही
दूर हो जाता है
दिशा भ्रम ||
- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'
Disha Bhram, Poem on Life Confusion in Hindi by Mithilesh
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