Wednesday 24 December 2014

भारत रत्न व राजधर्म - Bharat Ratn and Rajdharm!

आखिर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नायकों में से एक अटल बिहारी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार देने की घोषणा कर ही दी गयी. साथ में आज़ादी के नायक एवं कांग्रेस के पांच बार अध्यक्ष रह चुके पंडित मदन मोहन मालवीय को भी यह पुरस्कार देने की घोषणा भी की गयी है. निश्चित रूप से दोनों महापुरुषों का योगदान अपने-अपने समय में अतुलनीय रहा है और देश का आम जनमानस इनसे सुपरिचित भी है. एक तरफ मदन मोहन मालवीय को आज़ादी के पहले के उन शिक्षाविदों में अग्रणी माना जाता Bharat-Ratn-Atal-Bihari-Bajpayeeहै, जिन्होंने मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली, जो कि भारतीयता को नष्ट करने के इरादे से ही लागू की जा रही थी, उसका न सिर्फ उचित विरोध किया बल्कि आपने उसकी वैकल्पिक शिक्षा-नीति पेश की एवं बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के माध्यम से भारतीय विचारों की अलख जगाये रखा. महामना मालवीय सिर्फ शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि गंगा, हिंदुत्व, संस्कृति के प्रबल संरक्षक के तौर पर उभरे. जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित श्री राजेंद्र सिंह इतिहास के पन्नों से श्री मालवीय का उद्धरण देते हुए कहते हैं कि 'जब अंग्रेज प्रशासक भारतीय संस्कृति की प्रतीक गंगा नदी में नाले के माध्यम से शहर की गन्दगी डालने का प्रस्ताव लाये तो श्री मालवीय ने हर स्तर पर इस बात का विरोध किया'. वहीं अटल बिहारी बाजपेयी का योगदान इस मायने में अद्वितीय है कि एक अपरिपक्व लोकतंत्र, जिसमें एक परिवार का लगभग कब्ज़ा हो गया था और लोग लोकतंत्र में भी राजशाही की घुटन महसूस करने लगे थे, उसका न सिर्फ सार्थक विकल्प दिया, बल्कि आपने उस विकल्प को 5 साल तक सफलतापूर्वक आजमा कर आगे के लिए भी रास्ता साफ़ कर दिया. वस्तुतः बाजपेयी को यदि आधुनिक लोकतंत्र का सर्वश्रेष्ठ नायक कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. बिना किसी रक्तरंजित, अतिवादी उदाहरण के आपने सद्भावना, देशभक्ति, विकास की अद्भुत मिसाल पेश की, जिसको समझने में वर्तमान भारतीय नेतृत्व को भी सालों लग सकते हैं. आपके प्रशंसक न सिर्फ देश में बल्कि पाकिस्तान, अमेरिका सहित तमाम देशों में भी रहे हैं, जो आपके विराट व्यक्तित्व का प्रतीक है. देश की राजनीति में भी आपने भारतीय जनता पार्टी को स्वीकृत बनाने का सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया. यह बताना आवश्यक नहीं है कि आप जिस विचारधारा से जुड़े रहे, उसे आम जनमानस में स्वीकृत होने में 70 सालों से ज्यादा समय लग गया, और देश इस बात का कृतज्ञ रहेगा कि आपने राष्ट्रवादी विचारधारा को अतिवादी होने से बचाया एवं उसे मुख्य धारा में समाहित करने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया.

अटल बिहारी बाजपेयी को भारत-रत्न देने पर कुछ महत्वपूर्ण बयानों का ज़िक्र करना सामयिक होगा. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि- यूपीए(कांग्रेस) सरकार को पहले ही भारत-रत्न दे देना चाहिए था. वहीं बाजपेयी के सहयोगी रहे एवं अब भाजपा के प्रबल विरोधी नितीश कुमार ने बाजपेयी को भारत-रत्न देने की प्रशंसा करते हुए उनके उदार-हृदय की प्रशंसा करते हुए वर्तमान सरकार पर राजनैतिक निशाना साधने में देरी नहीं की. भाजपा के लौह-पुरुष कहे जाने वाले लाल कृष्ण More-books-click-hereआडवाणी ने भी बाजपेयी को भारत-रत्न पुरस्कार का सच्चा हकदार बताया. आडवाणी जी के अतिरिक्त भाजपा से कोई ख़ास उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी. आप यदि इन तीनों ज़मीनी व्यक्तित्वों पर गौर करें तो कहीं न कहीं भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इनकी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता कटु रूप में जगजाहिर है. भाजपा के दो शीर्ष पुरुष, जिन्होंने भारतीय सत्ता पर अपना अधिकार सिद्ध किया है, वह अटल बिहारी बाजपेयी और नरेंद्र मोदी ही हैं. इसके साथ बिडम्बना यह भी है कि दोनों शीर्ष नेताओं की छवि जनता में बिलकुल अलग तरह की है. निसंकोच रूप से कहा जा सकता है कि भारत रत्न बाजपेयी और नरेंद्र मोदी दोनों अपने-अपने समय में जनता में बेहद लोकप्रिय हैसियत के नेता रहे हैं, लेकिन दोनों के प्रशंसकों में भी ज़मीन-आसमान का अंतर है. पिछले दिनों संघ के एक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला. उस कार्यक्रम में एक संघ के पुराने प्रचारक आये हुए थे. अपने भाषण (बौद्धिक) के दौरान वह उद्धृत करना नहीं भूले कि दिल्ली में अब 'राष्ट्रीय विचार एवं सत्ता के विचार' में एकरूपता आ गयी है. वह यह बताने से भी नहीं चूके कि 'अटल बिहारी बाजपेयी' के शासन काल में कथित 'राष्ट्रीय विचार एवं सत्ता के विचार' में एकरूपता नहीं थी, बल्कि कहीं न कहीं कन्फ्यूजन था. उस कार्यक्रम में ही क्यों, दिल्ली में पिछले दिनों हुई बहुचर्चित 'हिन्दू-कांग्रेस' में विहिप के अंतर्राष्ट्रीय पदाधिकारी अशोक सिंघल ने सीना ठोक कर कहा कि दिल्ली में 800 सालों बाद राष्ट्रीय विचार की सरकार बनी है. कितनी अजीब एवं कृतघ्न विडम्बना है कि जिन दो महापुरुषों ने संघ परिवार को मुख्य धारा में चलने लायक बनाया, उसको गांधी-हत्या, अतिवादी विचारधारा से बाहर निकाल कर लाने में मुख्य भूमिका निभाई, उन दोनों को हासिये पर डाल दिया गया है. आडवाणी को राजनैतिक रूप से परे धकेल दिया गया है, वहीं बाजपेयी से वैचारिक रूप से दूरी बनाने की कोशिश की जा रही है. खैर, अटलजी का कद इतना बड़ा है कि भारत रत्न उनको मिलना ही था, लेकिन संघ परिवार की तरफ से इस पुरस्कार पर कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं आयी है, जिसको नोटिस किया जा सके, हाँ! सामान्य प्रतिक्रिया तो आएगी ही, क्योंकि बाजपेयी भी तो स्वयंसेवक ही रहे हैं. बाजपेयी की तरह संघ से तालमेल बिठाने में नरेंद्र मोदी भी कसरत कर रहे हैं, लेकिन वह सफल होंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा. हाँ! एक बात स्पष्ट है कि यदि नरेंद्र मोदी को भी भारत-रत्न कहलाना है तो उन्हें बाजपेयी से प्रेरणा लेनी ही होगी एवं उनके समरस, सद्भावना इत्यादि गुणों को ग्रहण करना ही होगा. 25 दिसंबर को बाजपेयी जी का जन्मदिवस है, मोदी भी उनसे 'राजधर्म' के आशीर्वाद की अपेक्षा कर रहे होंगे, क्योंकि असली 'राजधर्म' के ज्ञान की जरूरत नरेंद्र मोदी को अब है. तीन-चार दिन पहले बाजपेयी जी के ऊपर दो-पंक्तियाँ लिखीं थीं-

हे युगपुरुष! तुमको नमन
सींचा है तुमने नव चमन
दिया तंत्र सच में लोक को
जन जन के तुम आलोक हो


सद्भावना के कर्म फल
अनेकता में भी सफल
समरसता के प्रयत्न हो
तुम सच में ‘भारत रत्न‘ हो


- मिथिलेश कुमार सिंह, उत्तम नगर, नई दिल्ली.

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