एक महोदय ने केजरीवाल की वकालत करते हुए उसके प्रति सहानुभूति प्रकट की और दिल्ली की जनता से उसके पक्ष में सोचने की अपील की तो मेरा जवाब था- आपकी पीड़ा उचित है महोदय. दिल्ली की जनता बड़ी उदार है, उसने केजरीवाल को मौका दिया भी था. लेकिन, वह लंगूर के मुंह में अंगूर जैसी बात हो गयी. याद कीजिये उस 26 जनवरी को, जब वह सीएम थे... अड़ गया बन्दा कि 26 जनवरी नहीं मनाने देंगे और उनका वह बेवकूफाना बयान 'शिंदे कौन होता है मुझे बताने वाला, मैं उसे बताऊंगा वह कहाँ बैठेगा'. राजनीति की गंभीरता को अभी भी केजरी जी समझ नहीं पाये हैं. यदि दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को सच में बहुमत दिया (जिसकी उम्मीद भूल से भी नहीं है),, तो इस बन्दे का पूरा समय 'मोदी-सरकार' से टकराहट में ही जायेगा और उसका परिणाम इसकी बर्खास्तगी ही होगी. फिर मध्यावधि चुनाव...
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राजनीतिक मुर्ख है वह! हाँ! आंदोलनकारी अच्छा है बंदा. बाकि निर्णय दिल्ली की जनता स्वयं करेगी, वह सब जानती है, उसे सब ड्रामा याद है.
Kejriwal as chief minister in delhi
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