Tuesday 20 January 2015

दरियां बिछाने वाले हमारे बच्चा भाई - व्यंग्य लेख, Satire on Political Workers, Bachcha Bhai!

बच्चा भाई! एक राजनीतिक पार्टी के बहुत पुराने सक्रीय कार्यकर्त्ता रहे हैं. उस पार्टी के एक नेता के पीछे-पीछे घूमना हो, या उसकी सभा की व्यवस्था करना हो अथवा उस सभा में कुर्सियां, दरियां लगाने का काम हो, बच्चा भाई बड़े मनोयोग से अपना दायित्व निबाहते हैं. उनकी बैठक के सामने से गुजरा तो सोचा उनसे मिलता चलूँ. राम राम के बाद मैंने महसूस किया कि बिचारे कुछ उदास बैठे थे. उन्होंने चाय मंगाई, तो मैंने पूछ ही लिया, क्या बात है आज अपना भाई उदास क्यों है? मेरा इतना पूछना ही था कि वह भड़क उठे. कहा! तुम्हारी आदत केवल मजाक उड़ाने की है, ऐसे पूछ रहे हो जैसे जानते ही नहीं. अरे नेताजी को इस बार टिकट नहीं मिला है. मर जाएँ यह सारे 'पैराशूटिये'! चार दिन पहले वह विरोधी पार्टी से अपनी पार्टी में शामिल हुआ और उसे टिकट मिल गया. यह कहते-कहते बच्चा भाई भावुक हो गए. मैंने भी रोनी सी सूरत बना कर कहा, अरे चिंता क्यों करते हो भाई! तुम्हारी पार्टी में हाई कमान बड़ा समझदार है, वह कहीं न कहीं तुम्हारे नेताजी को भी एडजस्ट कर देगा. यह सुनकर वह और भी भड़क गए, कहा, कौन हाई कमान? उसे क्या पता, पार्टी के समीकरण क्या हैं? वह तो खुद भी पैराशूट से ही हाई कमान बना है. उसे क्या पता, हम दरी बिछाने वालों का दर्द! ज़िन्दगी लगा दी इस पार्टी में, और अब हमारे ही नेता को बेटिकट घोषित कर दिया.

मैंने मरहम लगाते हुए कहा कि तुम्हारे नेताजी कम जुगाड़ू नहीं हैं, वह सरकार में कोई न कोई रास्ता निकाल कर किसी आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तो बन ही जायेंगे और इस तरह दरी बिछाने वालों की क़द्र भी रह जाएगी. मेरी इस बात पर बच्चा भाई का रहा सहा धैर्य भी जवाब दे गया और उन्होंने तपाक से कहा, सरकार! अरे जिस पार्टी में जीवन लग गया, उसमें ही नहीं सुनी जा रही है तो सरकार में क्या ख़ाक सुनी जाएगी. वैसे भी सरकार का मतलब दलाल और पूंजीपतियों का गठजोड़ होता है. देखा नहीं, पुणे के एक रेस्टोरेंट से किस तरह एक गरीब बच्चे को धक्का देकर बाहर निकाल दिया गया. सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर पायी, जिसके लिए चुनकर आयी तो दुसरे की भला क्या बिसात! टिकट तो तुम्हें मिलना नहीं था, फिर तुम क्यों रो रहे हो? मैंने जरा कठोर होकर पूछा!

हाँ! लेकिन मेरे नेताजी को मिल जाता तो मैं तीसरे प्लाट पर अपना मकान तो बनवा लेता और बच्चे का दाखिल करवाया है इंजीनियरिंग में, उसकी फीस अब कहाँ से आएगी?More-books-click-here पार्टी के समर्पण की गाने वाले बच्चा भाई अब अपने असली दर्द को बयाँ कर रहे थे. मैंने मन में कहा, यह बात तो पूरा मोहल्ला जानता है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप में उनसे हमदर्दी जताते हुए कहा कि आपने दूसरी उभरती हुई पार्टी में जाने की सलाह नहीं दी नेताजी को, शायद काम बन जाता. वह भी ईमानदारी की राजनीति करने का दम भरते हैं. बच्चा भाई तो सभी दांव पेच पहले ही आजमा कर हार चुके थे, बोले- आप स्थिति से 'अनभिज्ञ' हैं. उस नयी पार्टी में अब कई करोड़पति आ चुके हैं, और टिकट उसी को मिल रही है, जो कई करोड़ चढ़ावे के साथ चुनाव में टक्कर देने का दम भी रखता हो. आप क्या यह चाहते हो कि दरियां बिछा - बिछा कर हमने जो पाई-पाई जोड़ा है, वह सब लुट जाए. यह सलाह भूलकर भी हम नेताजी को नहीं दे सकते.

मैंने हार मानते हुए कहा- तो फिर आप ही बताओ, रास्ता क्या है आपकी मुक्ति का. अब जाकर उनके चेहरे पर दरी बिछाने वाले कार्यकर्त्ता से अलग भाव दिखे और आँखें नचाते हुए बोले- हमने भी दरियां बिछाते-बिछाते राजनीति का ककहरा सीख लिया है. जिस नए पैराशूटिये महोदय Parachute-Candidate-mla-ticket-netaji-satire-vyangya-lekh-bachcha-Bhai-writer-mithilesh-in-Hindiको टिकट मिला है, आज शाम को उसके चरणों में लोटना शुरू कर देंगे. आखिर, क्षेत्र की समझ है हमें और पार्टी की भी समझ है. हमारी निष्ठा पार्टी के प्रति है और पार्टी हाई कमान का आदेश सर माथे पर. आप तो 'अनभिज्ञ' ही रहे, हमें देखिएगा, हम तीसरे प्लॉट पर भी कैसी चार-मंजिला ईमारत खड़ी कराते हैं, इस बार राजस्थानी पत्थर भी लगवाएंगे. मैं अवाक सा बच्चा भाई का मुंह ताक रहा था. नहले पर दहला जड़ते हुए बच्चा भाई बोले- तुम्हें भी कितनी बार कहा है, दरियां बिछाने का काम शुरू कर दो. आज कल काम होता ही क्या है, बस नेताजी के आने पर थोड़ा शोरगुल करना पड़ता है, उनके सामने दूसरी ओर से कुर्सी खिंच कर रखनी पड़ती है और अपनी सेवा के बदले ईनाम के लिए झोली फैलाना पड़ता है. उनका मुंहलगा बनने का सुख मिले, सो अलग. तुम 'अनभिज्ञ' ही रहे, कलम घिसते रहते हो, परिवार-परिवार, देश-देश चिल्लाते रहते हो, इधर-उधर टक्कर मारते रहते हो. मैं बच्चा भाई के ज्ञान की अनुभवयुक्त बातें सुनता जा रहा था, बिना किसी टोका-टाकी के. तभी बच्चा भाई का फोन घनघना उठा, चेहरे पर ख़ुशी के भाव आ गए. नए 'पैराशूटिये', माफ़ कीजियेगा, 'नेताजी' के स्वागत के लिए जिला-कार्यालय पर दरी बिछाने वालों को बुलाया गया था. फोन रखते ही बच्चा भाई उछलते हुए बोले! मुझे नए उम्मीदवार ने ख़ास तौर पर बुलाया है, मैं तुमसे शाम को मिलता हूँ. और हाँ! मेरी दरी बिछाने वाले काम के बारे में सोचना, लेकिन कलम को कहीं छुपा देना तब ... !!
उनके जाने के बाद मैं धीरे-धीरे अपने घर की ओर लौटने लगा, और 'दरी बिछाने' वाले काम के बारे में गंभीरता से मनन भी जारी था!

- मिथिलेश ‘अनभिज्ञ’

Satire on Political Workers, Bachcha Bhai, Hindi vyangya by Mithilesh 'Anbhigya'

Keyword: निन्दोपाख्यान, प्रहसन, व्यंग्य, हंसी,  व्यंग, निंदागर्भ लेख, कटुवाक्य, कटूपहास, sarcasm, satire, cyncism, irony, SQUID, vitriol, scoff, corcher, hit, hindi article by Mithilesh, Politics, Political workers, Articles about BJP Workers, Articles about Congress Workers, Article about Aam Aadmi Party workers, Rajnaitik Karykarta, Parachute Candidate articles in Hindi.

Read Book on 'Indian Politics' ...

No comments:

Post a Comment

Labels

Tags