पारिवारिक मूल्यों पर विचार करते हुए यह बात ध्यान आती है कि किसी एक लड़के को उसके माँ-बाप और कई बार उसके भाई मेहनत-मजदूरी करके, मिलकर पढ़ाते हैं, उच्च शिक्षा दिलाकर उसे सरकारी या बढ़िया प्राइवेट जॉब दिलाते हैं. कई बार उसके बीजा के लिए लाखों खर्च करके उसे विदेश भिजवाते हैं... ...
लेकिन, वह लड़का सेटल हो जाने के बाद उसी परिवार को पिछड़ा समझकर उससे पीछा छुड़ाने लगता है. अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए, वह तमाम तरह की व्यवहारिक / अव्यवहारिक समस्याओं को दोष देने लगता है, मसलन गाँव में माँ-बाप के पास जाना उसके लिए संभव नहीं है (कई बार इंडिया में आना उसके लिए असंभव हो जाता है), उसके माँ-बाप जिद्दी हैं, उसके भाई उससे जलते हैं, गाँव में गंदे और ईर्ष्यालु लोग रहते हैं इत्यादि-इत्यादि. ... प्रश्न यह है कि
1. योग्य और सक्षम व्यक्तियों के द्वारा अपनाया जाना वाला यह दोहरापन किस प्रकार सही है ? और
2. क्या उन्हें भी कुछ समय बाद ठीक इसी प्रकार की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा?
यह एक्सेप्शनल केस नहीं है, बल्कि 99 फीसदी कथित योग्य और सभ्य लोग इसी श्रेणी के हैं. शायद, आप और हम भी, इसलिए अपनी राय जरूर दें.
[From the Facebook wall of Mithilesh]
Family and their good products, Joint Family Discussion in Hindi.
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