आज के युवाओं में एक सबसे बड़ी समस्या दृष्टिगत होती है और वह है 'आर्थिक - कुप्रबंधन' की. जी हाँ! कोई युवक कमाए, न कमाए, 4 अंकों में उसकी सेलरी या आय हो या 5 अंकों में अथवा 6 अंकों में ही क्यों न हो... वह परेशान है, असुरक्षित महसूस करता है, अपनों से नजरें चुराता है, डिप्रेस्ड होता है, और कई बार आत्महत्या तक करने की सोच लेता है और कर भी लेता है. इसका यथार्थ कारण बहुत विचार करने पर भी उलझन पैदा करता है. यूं तो तमाम संस्थान, बैंकर, इन्वेस्टमेंट एजेंसीज उच्च आय-वर्ग का आर्थिक प्रबंधन करती हैं, किन्तु फिर भी यही वर्ग कुप्रबंधन की समस्याओं से सर्वाधिक पीड़ित भी है.
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मेरे एक विचार के अनुसार कोई भी एजेंसी, संस्थान कुछ भी कर ले लेकिन व्यक्ति को वह संयम, मितव्ययिता, उपयोगिता कैसे सिखा सकती है. यह गुण तो परिवार के बड़े-बुजुर्ग ही बता सकते हैं. दादी, जिस प्रकार बटुवे में एक-एक पैसा बचाकर रखती हैं, दादा जिस प्रकार मितव्ययिता करते हैं, परिवारजन जिस प्रकार सहयोग करते हैं और सहयोग से व्यक्ति के अंदर संस्कार पनपता है... आदि, आदि. ... तो फिर क्या संयुक्त परिवार जैसी संस्था के टूटने से, आर्थिक प्रबंधन सिखाने वाला व्यवहारिक-तंत्र भी बिखर गया है? आप क्या सोचते हो मित्रों??
[From the Facebook wall of Mithilesh]
Economic Mismanagement for an Individual in India, Joint Family Discussion in Hindi by Mithilesh.
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